फ्रेंचेस्का मैरिनो। पाकिस्तान में भारत की एयर स्ट्राइक की जगह पर मौजूद चश्मदीदों ने पाकिस्तान की पोल खोल दी है. चश्मदीदों के मुताबिक, 26 फरवरी को हुए एयर स्ट्राइक के घंटों बाद उन्होंने देखा कि घटनास्थल से एक एंबुलेंस के जरिए 35 शव वहां से बाहर भेजे गए.
चश्मदीदों के अनुसार मृतकों में 12 लोग ऐसे शामिल है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वह एक अस्थायी झोपड़ी में सो रहे थे. मारे गए लोगों ने कई ऐसे भी हैं जो पहले पाकिस्तानी सेना में काम कर चुके थे.
स्थानीय सरकारी अधिकारियों के लिए काम करने वाले सूत्रों ने पहचान छिपाने की शर्त पर जानकारी दी और कहा कि वे मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं. पत्रकार ने एन्क्रिप्टेड संचार साधनों का उपयोग करके चश्मदीदों से बात की थी.
एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, ‘बमबारी के तुरंत बाद स्थानीय अधिकारी घटना स्थल पर पहुंच गए’ लेकिन सेना द्वारा उस क्षेत्र को पहले ही बंद कर दिया गया था, जहां पुलिस को भी जाने की अनुमति नहीं थी. सेना ने मेडिकल के कर्मचारियों से से मोबाइल फोन भी छीन लिए थे.
सूत्रों ने कहा, एक पूर्व पाकिस्तानी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) अधिकारी जो स्थानीय रूप से ‘कर्नल सलीम’ के रूप में जाना जाता वह मारा गया जबकि एक ‘कर्नल ज़ार ज़ाकिरी'” घायल हो गया था. पेशावर के जैश-ए-मुहम्मद के ट्रेनर मुफ़्ती मोईन और विस्फोटक उपकरण-निर्माण विशेषज्ञ उस्मान गनी भी मारा गया.
प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा, फिदायीन ट्रेनिंग कर चुके बारह जैश-ए-मुहम्मद आतंकी अस्थायी झोपड़ी में रह रहे थे जो बमबारी में मारे गए. हालांकि इस क्षेत्र के चश्मदीद गवाह अलग-अलग बातें कह रहे हैं. विभिन्न गवाहों ने कहा कि जाबा टॉप में कोई जैश-ए-मुहम्मद के लड़ाके नहीं थे.
कई स्थानीय निवासियों ने टेलीविजन और प्रिंट पत्रकारों को बताया कि कुछ लोगों को चोट आई थी. हमले के कुछ दिनों बाद ही गवाहों से बातचीत की गई. कई मीडिया संस्थानों ने बताया कि उन्हें जाबा के सभी क्षेत्रों में बिना अनुमति के जाने की अनुमति नहीं थी.
ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित रणनीतिक संस्थान के नेथन रुजर ने स्वतंत्र तौर पर सेटेलाइट से ली गई फोटो का विश्लेषण किया. इस विश्लेषण में उन्होंने पाया कि ‘ज्यादा नुकसान के कोई स्पष्ट सबूत नहीं है इसलिए यह भारतीय मीडिया के दावों को सही साबित नहीं करता है.’ (फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट)
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