इस विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस बिना मुख्यमंत्री चेहरे के मैदान में उतरेगी। वहीं इस बार भी चुनावी मैदान में मुकाबला आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के बीच होने की संभावना है। हालांकि, मुख्य मुकाबला अभी ‘आप’ और भाजपा के बीच माना जा रहा है। वहीं, कांग्रेस की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव आमतौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच होते रहे हैं। लेकिन, वर्ष 2012 में आम आदमी पार्टी के उदय के बाद से स्थिति एकदम से बदल गई। वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय हुआ और आम आदमी पार्टी सब पर भारी पड़ी। जबकि वर्ष 2015 में हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत मिला और कांग्रेस पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी।
भाजपा को भी सिर्फ तीन सीटों से संतोष करना पड़ा। वर्ष 2015 की तरह ही इस बार भी मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है। ‘आप’ और भाजपा की तुलना में कांग्रेस थोड़ा कमतर नजर आ रही है। पिछले विधानसभा चुनावों की तरह ही इस बार भी तीनों निगमों में भाजपा की सत्ता है और हालिया लोकसभा चुनावों में सातों सीटों पर भाजपा ने विजय हासिल की है।
पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की ओर से अरविंद केजरीवाल, तो भाजपा ने किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था। जबकि, कांग्रेस का चेहरा अजय माकन थे। लेकिन इस बार अभी तक भाजपा मुख्यमंत्री उम्मीदवार का नाम घोषित करने से बचती हुई नजर आई है। जबकि, कांग्रेस भी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कह रही है।
आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल के भरोसे
दिल्ली दंगल में भाजपा मोदी और अमित शाह के भरोसे उतर रही है। वहीं सत्ताधारी आम आदमी पार्टी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस चुनाव का ट्रंप कार्ड मान रही है। दूसरी ओर 15 साल तक दिल्ली की सत्ता संभालने वाली कांग्रेस को पंजाबी-पूर्वांचल गठजोड़ के साथ अपनी सरकार के पुराने प्रदर्शन का सहारा है। कच्ची कॉलोनी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलीला मैदान में धन्यवाद रैली कर चुके हैं। वहीं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल काम के नाम पर वोट मांग रहे हैं। मुख्यमंत्री चार लोकसभा क्षेत्रों में चार टाउनहाल कर चुके हैं। अभी तीन टाउनहाल और होने हैं।
भाजपा नए चेहरों और पूर्व पार्षदों पर लगा सकती है दांव
पिछली बार तीन सीट जीतने वाली भाजपा इस बार बड़ी संख्या में नए चेहरों पर दांव लगा सकती है। पार्टी कई पूर्व पार्षदों को चुनाव मैदान में उतार सकती है, जिनके टिकट 2017 में काटे गए थे। एक सप्ताह बाद विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। हालांकि खरमास होने के कारण उम्मीदवारों की पहली सूची 14 जनवरी के बाद ही आएगी।
भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक भी 14 जनवरी के बाद ही होगी। पहली सूची 15 जनवरी के आसपास आ सकती है। सूत्रों के अनुसार पहली सूची में 40 उम्मीदवारों के नाम जारी किए जाएंगे। रणनीति के हिसाब से कुछ नामों को आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के नामों को देखने के बाद घोषित किया जाएगा।
14 जनवरी के बाद उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की जाएगी।
40 उम्मीदवारों के नाम बैठक के बाद पहली सूची में तय किए जा सकते हैं।
पिछली बार चुनाव हारे कुछ ही लोगों को मौका
भाजपा के पास मौजूदा विधायक ज्यादा न होने से टिकट कटने जैसा ज्यादा विरोध सामने नहीं आने वाला है। ऐसे में पार्टी अधिकांश नए चेहरों पर दांव लगाएगी। पिछली बार चुनाव हारे कुछ ही लोगों को फिर से उम्मीदवार बनाया जाएगा। सूत्रों के अनुसार पार्टी उम्मीदवारों के लिए पूर्व पार्षदों के नामों पर गंभीरता से विचार कर रही है। गौरतलब है कि पिछले नगर निगम चुनावों में भाजपा ने सत्ता विरोधी माहौल से निपटने के लिए सभी पार्षदों के टिकट काट दिए थे। अब विधानसभा चुनावों में उनके नामों पर विचार किया जा रहा है।
मालिकाना हक के मुद्दे का सबसे ज्यादा भरोसा
सूत्रों के अनुसार भाजपा ने एक अंदरूनी सर्वे भी कराया है। साथ ही आरएसएस ने भी रिपोर्ट दी है। इसके मुताबिक पार्टी को नए चेहरों के साथ बेहतर सफलता मिल सकती है। पार्टी को सबसे ज्यादा मशक्कत आम आदमी पार्टी सरकार के मुफ्त बिजली, पानी व डीटीसी बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा जैसे मुद्दों से करनी पड़ रही है। इसके जबाब में कच्ची कॉलोनियों के मुद्दे पर भरोसा है।
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