विश्लेषण: यूपी में यादवों ने नहीं दलितों ने मायावती के साथ ‘धोखेबाजी’ की

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में यूपी के नतीजों ने सारे समीकरण उलट-पुलट कर रख दिए. मामला इतना पेचीदा है कि आज तक नतीजों के विश्लेषण हो रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर मजबूत जातीय समीकरण के बावजूद महागठबंधन फेल क्यों हो गया? क्या मायावती के हाथी ने साइकिल को सहारा नहीं दिया या अखिलेश की साइकिल, हाथी के साथ तालमेल नहीं बिठा पाई? इससे भी बढ़कर सवाल ये हो गया कि किसके वोटर्स ने गद्दारी की, समाजवादी पार्टी के, या बीएसपी के?

मायावती ने अपने तरीके से विश्लेषण कर नतीजा निकाला कि समाजवादी पार्टी के यादव वोटर्स ने बीएसपी उम्मीदवारों को वोट नहीं किया. उन्होंने उपचुनाव में बीएसपी के अकेले लड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि अखिलेश अपने परिवार की सीट तक नहीं बचा पाए. यादव वोटर्स ने चुनावों में महागठबंधन को ठगा है. 2014 के शून्य के मुकाबले 2019 की 10 सीटों पर जीत के बावजूद बीएसपी के इस विश्लेषण का अखिलेश ने संयमित जवाब दिया है. लेकिन फिर भी ये सवाल तो बनता ही है कि क्या सच में ऐसा है? यादव वोटर्स ने समाजवादी पार्टी को ठगा है या दलित वोटर्स ने मायावती को?

मायावती को दोबारा सोचना होगा
ताजा आंकड़े पर गौर करें तो मायावती को अपनी बात पर दोबारा से विचार कर अपने वोटबैंक की तरफ ध्यान देना चाहिए. क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि यादव वोटर्स ने नहीं बल्कि मायावती के दलित वोटबैंक ने महागठबंधन को धोखा दिया है. इंडिया टुडे एक्सिस माय इंडिया पोस्ट पोल सर्वे ने यादवों और दलितों की वोटिंग की स्टडी कर आंकड़े जारी किए हैं. इसके मुताबिक अनुसूचित जातियों में गैर जाटवों ने मायावती का साथ छोड़ दिया है. बीएसपी से मुंह मोड़कर इन्होंने बीजेपी को झोली भर-भर के वोट दिए हैं. आंकड़ों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में गैर जाटव जातियों के सिर्फ 30 फीसदी वोट महागठबंधन को पड़े. मायावती की बजाय इन्होंने बीजेपी पर भरोसा जताया है. करीब 60 फीसदी गैर जाटव जातियों ने बीजेपी को वोट दिया है.

जाटव समुदाय में भी भरोसा कम हुआ
जिस समुदाय से मायावती खुद आती हैं, उस जाटव समुदाय में भी मायावती के प्रति भरोसे में कमी दिखती है. गैर जाटवों की तरह उन्होंने बीजेपी को खुलकर वोट तो नहीं किया है लेकिन पुराने वक्त जैसा यकीन भी नहीं रख पाए हैं. लोकसभा चुनाव में 74 फीसदी जाटवों ने महागठबंधन को वोट दिया है. तो इस जाति से बीजेपी को वोट करने वाले भी कम नहीं हैं. 21 फीसदी जाटवों ने बीजेपी को भी वोट किया है.


इस मामले में यादव वोटबैंक महागठबंधन के साथ ज्यादा मजबूती से खड़ा दिखाई देता है. आंकड़ों के मुताबिक 72 फीसदी यादवों ने महागठबंधन को वोट किया है, जबकि 20 फीसदी यादव जाति के लोगों ने अपना वोट बीजेपी को दिया है. यानी यादव वोटबैंक भी बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुआ है लेकिन उतना नहीं जितना मायावती के समर्थन वाला दलित वोट बैंक. गैर जाटवों के वोटिंग पैटर्न में इतना बदलाव आ चुका है कि इसे अब बीएसपी समर्थित कहना भूल होगी.

2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने मायावती के दलित वोटबैंक में सेंध लगाई थी. उस वक्त भी गैर जाटव जातियों ने बीजेपी का खुलकर समर्थन किया था. दलित वोटबैंक के वोटिंग पैटर्न में आए बदलाव की वजह से 2014 में यूपी में बीएसपी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. इस बार समाजवादी पार्टी और आरएलडी से गठबंधन करने का फायदा बीएसपी को मिला है. गैर जाटव वोटबैंक के मुंह मोड़ लेने के बावजूद बीएसपी 10 सीटें जीतने में कामयाब रहीं.

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