
पटना। यूपी और बिहार की सियासत में क्षेत्रीय दलों का दबदबा रहता है। यूपी में एसपी-बीएसपी के महागठबंधन से अलग कांग्रेस अपने दम पर अकेले बीजेपी से टक्कर ले रही है, लेकिन बिहार में बीजेपी से लड़ने से पहले महागठबंधन के सियासी दल सीट बंटवारे को लेकर आपस में भिड़ गए हैं।
आज कल और फिर आज, खुद जीतनराम मांझी को भी एतबार नहीं कि वो आज आएगा कब। क्योंकि दिल्ली में हफ्ते भर के महामंथन से अमृत तो निकला नहीं, जहर जरूर रिसने लगा। बिहार में बीजेपी को पटखनी देने का दम भर रहे विपक्षी कुनबे के नेता आपस में ही उलझ गए। दो दो हाथ करने लगे, मोल तोल और सीटों की खींचतान में महागठबंधन टूट की कगार पर खड़ा हो गया। हालात खतरनाक स्थिति में इसलिए पहुंचा कि कांग्रेस ने घटक दलों के ऐलान से पहले ही बिहार में ग्यारह सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया। बिहार कांग्रेस प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश सिंह के इस बयान ने तेजस्वी के सब्र का बांध तोड़ दिया। ट्वीटर पर तेजस्वी की नसीहत चेतावनी बन गई, दो टूक कहा कि चंद सीटों के लिए अंहकार मत करो, वरना महागठबंधन का बेड़ागर्क होना तय है।
सूत्रों की मानें तो आरजेडी बिहार में कांग्रेस को आठ से ज्यादा सीटें देने को कतई राजी नहीं है। ये फैसला किसी और का नहीं बल्कि पार्टी आलाकमान लालू प्रसाद यादव का है, लेकिन कांग्रेस को किसी भी सूरत में 11 से कम कबूल नहीं है। हफ्ते भर से दिल्ली में इसी पर पेंच फंसा था, लेकिन तेजस्वी के तीखे तेवर के बावजूद कांग्रेस झुकने के मूड में नहीं है और अखिलेश सिंह कांग्रेस के दावेदारों की सूची लेकर लालू से मिलने रांची निकल गए। तेजस्वी अब भी दिल्ली में ही डटे हैं। बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सदानंद सिंह को आलाकमान ने दिल्ली तलब कर लिया है। कुशवाहा भी आनन-फानन में दिल्ली लौट आए हैं। महागठबंधन के लिए कयामत की घड़ी है, लेकिन पटना पहुंच चुके जीतन राम मांझी को उम्मीद है कि सबकुछ ठीक हो जाएगा। आज नहीं तो कल जरूर हो जाएगा।
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में जीत से उत्साहित कांग्रेस बिहार में आरजेडी की बराबरी चाह रही थी। शुरुआत में पार्टी ने 16 सीटों के लिए दबाव बनाया और आरजेडी ने 8 का ऑफर दिया। यही नहीं आरजेडी ने कांग्रेस को ये सलाह भी दे डाली की वो सिर्फ अपनी फिक्र करे साथी दलों की चिंता न करे, लेकिन कांग्रेस उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के सहारे गठबंधन के भीतर एक नया त्रिकोण रचने लगी। तभी तो तीन सीटों पर मान चुके मांझी 5 सीटों की रटमारी करने लगे। मुकेश सहनी भी दरभंगा की जिद पर फिर से अड़ गए। पप्पू यादव भी राहुल राग गाने लगे। लिहाजा आरजेडी ने अनंत सिंह पर नए तरीके से अड़ंगा डाला और मधुबनी व दरभंगा पर फिर से दांवा ठोंक दिया। 11 सीटों पर बनी सहमति अचानक टूट गई। कांग्रेस उपेंद्र कुशवाहा और वामदलों के साथ लड़ने की बात कर रही है तो आरजेडी मांझी और मुकेश सहानी को साथ रखने की जुगत में जुटा है। साफ है कि बिहार में महागठबंधन बनने से पहले ही टूट के मुहाने पर पहुंच गया है।
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