बिहार: गया के ब्रह्मदेव चौरसिया जी पुश्तों से मगही-बनारसी पान की खेती कर रहे। पहले पूरा गाँव करता था और प्रसिद्ध बनारसी पान का यही क्षेत्र सप्लायर भी। अब 40-45 घर करते हैं, लॉस बिजनेस, बिचौलियों द्वारा शोषण, मौसम की मार पर कोई मुआवज़ा नहीं, एक शानदार खेती की परंपरा पतन की ओर। लेकिन पिपरा जैसे गाँवों के कैश-क्रॉप का इकोनॉमिक्स और चौरसिया जी जैसे कृषि उद्यमियों की सक्सेस स्टोरी 2020-30 में फिर से लिखी जानी है।
बी. के. प्रसाद जी, जिनके पिता 1934 से मिल में इलेक्ट्रिक फोरमेन थे, चमकती आँखों से बताते हैं- रोड-रेल नेटवर्क जंक्शन का स्ट्रेटजिक इंडस्ट्रियल लोकेशन, 27 एकड़ कैम्पस, बर्मिघम की मशीनरी, राज्य से बाहर तक के गन्ने की प्रोसेसिंग, हज़ारों मज़दूर-किसानों के जीने का आधार! लेकिन गुरारू सुगर मिल का सरकार ने नाश कर दिया। जिन्हें ढेवलपमेंट और इंडस्ट्री की परिभाषा ही नहीं मालूम, उनसे और क्या होना था! अब सब बदलने का वक्त! फिर से बिहार चीनी उत्पादन में नं-1 बनने को तैयार रहे।
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