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सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले व्यक्ति को ‘इरादतन चूककर्ता’ घोषित करने की बैंक या वित्तीय संस्थाओं द्वारा शुरू की जाने वाली आंतरिक कार्यवाही में वकील की मदद की जरूरत नहीं है। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस विनीत सरन की पीठ बीते बुधवार को दिए फैसले में कहा, ‘हमारा नजरिया है कि रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 1 जुलाई 2015 के संशोधित सर्कुलर के तहत ऐसे व्यक्ति को आंतरिक कार्यवाही में किसी वकील द्वारा प्रतिनिधित्व का कोई अधिकार नहीं है।’
चूक इरादतन या जानबूझकर की गई है या नहीं, यह तथ्य से जुड़ा सवाल है, जिसे उधार लेने वाला व्यक्ति निपट सकता है। ऐसे में उसे वकील की कोई जरूरत नहीं है।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एसबीआई की अपील में किए अनुरोध को स्वीकार किया।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कि फर्म जाह डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड का इरादतन चूककर्ता घोषित करने की बैंक की आंतरिक कार्यवाही में वकीलों की मदद ली जा सकती है।
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