प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले इजराइल से एक ऐसी खबर आ रही है जो भारत के लिए चिंताजनक हो सकती है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 18 सितंबर को हुए आम चुनाव में सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत से दूर दिख रहे हैं। इससे यह संदेह पैदा हो गया है कि क्या वह सत्ता पर अपनी एक दशक पुरानी पकड़ को बरकरार रख पाएंगे। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर नेतन्याहू सत्ता से बाहर जाते हैं तो इसका सीधा असर भारत-इजराइल संबंधों पर भी दिख सकता है।
दरअसल बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यकाल में इजराइल ने कई मौकों पर खुलकर भारत का साथ दिया है। साथ भारत ने इजराइल के साथ कई बड़े रक्षा सौदे भी किए हैं। नेतन्याहू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच काफी अच्छा मेलजोल है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार दोनों नेता इस दोस्ती को जाहिर भी कर चुके हैं। पीएम नरेंद्र मोदी इजराइल जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं। भारत ने 1992 में इजराइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थपित किए थे। लेकिन, किसी भारतीय प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति ने कभी वहां का दौरा नहीं किया। वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन भारत की यात्रा पर आने वाले इजराइली के पहले प्रधानमंत्री थे।
हारित्ज अखबार ने केंद्रीय चुनाव समिति के हवाले से कहा है कि बेंजामिन नेतन्याहू की मध्य-दक्षिणी लिकुड पार्टी को 31 सीटें मिली हैं जबकि इनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी बेन्नी गैंट्ज की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी ने 32 सीटें हासिल कर ली है। लगभग 91 प्रतिशत मतगणना होने के बाद दोनों ही पक्ष दक्षिणपंथी समूह और मध्यमार्गी व वाम समूह 120 सदस्यीय संसद (नेसेट) में सरकार बनाने के लिए जरूरी 61 सीटों से दूर हैं।
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव के मद्देनजर इस नतीजे का मध्यपूर्व पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सहयोगी बेंजामिन नेतन्याहू अगर प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह फिलिस्तीन को लेकर अपने कठोर रुख को बरकरार रखेंगे। नेतन्याहू इजरायल के सबसे लंबे समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री हैं। वह 10 वर्षो से इस पद पर काबिज हैं।
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