नई दिल्ली। अब 1000 ग्राम का एक नहीं रहा। भारत ने सात आधार इकाइयों में से चार- किलोग्राम, केल्विन, मोल और एम्पीयर को फिर से परिभाषित करने के वैश्विक प्रस्ताव को सोमवार को स्वीकार कर लिया। पेरिस में पिछले साल 16 नबंवर को हुए अंतर्राष्ट्रीय बाट व माप ब्यूरो (BIPM) की जनरल कॉन्फ्रेंस ऑन वेट्स एंड मेजर्स (CGPM) में 60 देशों के प्रतिनिधियों ने सात आधार इकाइयों में से चार को फिर से परिभाषित करने के प्रस्ताव को पारित किया. आपको बता दें कि इस बदलाव का आम लोगों पर कोई असर नहीं होगा।
नया मानक 20 मई से लागू
इसे दुनियाभर में 20 मई से लागू कर दिया गया। 100 से ज्यादा देशों ने माप की मीट्रिक प्रणाली को अपनाया जिसे इंटरनेशनल सिस्टम ऑफ यूनिट्स (SI) के तौर पर भी जाना जाता है जो 1889 से चलन में है। अन्य आधार इकाइयां सेकंड, मीटर और कंडेला हैं।
पहले ऐसे पता करते थे एक किलो कितना होगा
एक किग्रा का वजन एक अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल का हिस्सा है. जिस पर सहमति 1889 में बनी थी. इसे इंटरनेशनल प्रोटोकॉल किलोग्राम कहा जाता है. इस प्रोटोकॉल को ‘ल ग्रैंड के’ भी कहा जाता है. इसी के तहत प्लेटिनम और इरीडियम मिक्स धातु का छोटा सिलिंडर पेरिस की संस्था ब्यूरो इंटरनेशनल दे पॉइड्स एत मीजर्स इन सेवरेस में रखा है. इसी सिलिंडर के वजन को 1 किग्रा माना जाता है. जिसे हर 30-40 साल में जांच के एक बहुत बड़े अभ्यास के लिए बाहर निकाला जाता है और दुनिया भर के बहुत से बांटों और मापों को इससे नापा जाता है.
वैज्ञानिक अब माप के तौर पर प्लांक कॉन्स्टैंट का प्रयोग करेंगे. यह क्वांटम मैकेनिक्स की एक वैल्यू है. यह ऊर्जा के छोटे-छोटे पैकेट्स का भार होता है. इसकी मात्रा 6.626069934*10-34 जूल सेकेण्ड है. जिसमें सिर्फ 0.0000013% की ही गड़बड़ी हो सकती है. इससे एम्पीयर, केल्विन और मोल जैसी ईकाईयों में भी बदलाव आ सकता है.
हमारे एक किलो सब्जी खरीदने पर इसका क्या असर होगा
दरअसल, कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. सब्जी के ठेले पर सब्जीवाला आपको उसी काले लोहे के बाट से सब्जी तौलकर देगा. यह बस एक तौल को ज्यादा से ज्यादा सटीक बनाने का तरीका है, जिससे किसी भौतिक ईकाई से नापने की बजाए, नाप की ईकाई को प्राकृतिक बना दिया जाए.
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