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यूनिक समय, मथुरा। गरीब हैं राशन फ्री चाहिए पर रुपये देकर शराब खरीदेंगे और उसे पीएंगे तो बन जाएंंगे धनवान। इन पंक्तियों को पढ़कर चौंकिए नहीं। जी हां यह बात बिल्कुल सत्य है। हर माह सरकारी सस्ते गल्ले (राशन की दुकानों) पर फ्री में राशन लेने के लिए लोगों की भीड़ नजर आएगी, लेकिन कुछ लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, लेकिन वह फ्री वाले राशन को लेने के लिए लाइन में खड़े दिखाई देते हैं।
दिन छिपने के साथ ही शराब के ठेकों पर शराब पीने के शौकीनों को भीड़ लगी देखी होगी। इन शौकीनों में कई लोग फ्री का राशन वाले शामिल होने वाले होते हैं। इन लोगों को सरकारी राशन तो फ्री चाहिए और शौक पूरा करने के लिए शराब पैसे से चाहिए। सरकारी ठेके से शराब खरीदने वालों से बात की जाए तो हर कोई हैरान रह जाएगा। आखिर शराब खरीदने के लिए रुपया कहां से आता है। मथुरा जिले के शहरी, कसबा और ग्रामीण इलाकों में खुले शराब के ठेकों पर सायं होते ही शराब पीने के शौकीनों की हलचल देखी जाती है।
वह अपनी पॉकेटों से रुपये निकालकर ठेकों से शराब खरीदते देखे जाते हैं। आखिर रोजाना ठेकेों से शराब खरीदने के लिए रुपये से कहां से जाते हैं। एक अनुमान से एक व्यक्ति करीब दो सौ रुपये की शराब खरीदता है। यानि की महीने में करीब छह हजार रुपये शराब के शौक पर खर्च करता है, लेकिन सरकारी योजना का गेहूं, चावल और चीनी के लिए वह गरीब की श्रेणी में आता दिखाई देता है। कुछ लोगों की जेहन में यह सवाल हर दिन उठता है और आपस में चर्चा करते हैं। सरकार का यह कौन सा फार्मूला है। सरकार किस आधार पर लोगों को गरीब की श्रेणी में मानती है।
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