यूपी उपचुनाव की सात सीटों का राजनीतिक समीकरण

यूपी उपचुनाव की सात सीटों का राजनीतिक समीकरण
यूनिक समय, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सात सीटों पर होने वाले विधानसभा के उपचुनाव की तैयारियां जोरों पर है। एसपी, बीएसपी, बीजेपी और कांग्रेस सहित तमाम दल इन सभी 7 सीटों पर जीत के लिए जद्दोजहद में लगे हुए हैं। इन सभी सीटों पर आगामी 3 नवंबर को वोटिंग होगी और 10 नवंबर को चुनाव के नतीजे आएंगे। उत्तर प्रदेश की जिन 7 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं उनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद की टूंडला, अमरोहा की नौगांवा, कानपुर नगर की घाटमपुर, उन्नाव की बांगरमऊ,  जौनपुर की मल्हनी और देवरिया सदर के साथ-साथ बुलंदशहर सीट शामिल है। इन सभी विधानसभा सीटों पर क्या है राजनीतिक समीकरण आइए जानते हैं।
1- देवरिया सदर
उत्तर प्रदेश के देवरिया विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। इस सीट से भाजपा विधायक जन्मेजय सिंह के असामयिक निधन के बाद से यह सीट खाली हुई थी। यहां से सभी प्रमुख पार्टियों ने ब्राह्मण कार्ड खेला है यहां लगभग 50 हजार ब्राह्मण वोटरों की संख्या है। सपा से कद्दावर नेता ब्रम्हाशंकर त्रिपाठी, कांग्रेस से मुकुंद भास्कर मणि त्रिपाठी, बसपा से अभयनाथ त्रिपाठी और भाजपा से डॉक्टर सत्य प्रकाश मणि त्रिपाठी मैदान में हैं। हालांकि बीजेपी ने स्वर्गीय विधायक जन्मेजय सिंह के बेटे अजय प्रताप उर्फ पिंटू सिंह जो पिछड़ी जाति से आते हैं को टिकट देने का आश्वासन दिया था, लेकिन सभी प्रमुख दलों द्वारा ब्राह्मण कंडिडेट उतारने के बाद बीजेपी ने पिन्टू का टिकट काट दिया है। इसके बाद पिंटू सिंह निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं और इन्हें सुहेल देव, अपना दल जैसी छोटी छोटी आठ पार्टियों का समर्थन मिल रहा है। कुल मिलाकर इस सीट पर निर्दलीय समेत 14 प्रत्याशी मैदान में हैं। इस विधानसभा में 3,34,177 वोटर 381 बूथों पर जाकर वोट करेंगे. यहां वैश्य 45 हज़ार, ठाकुर 32 हज़ार, यादव 20 हज़ार, मुस्लिम 22 हज़ार, एससी एसटी मतदाता 35 हज़ार के लगभग है. यहां की लड़ाई त्रिकोणीय मानी जा रही है।
2- मल्हनी (जौनपुर)
जौनपुर जिले की मल्हनी सीट पर भी 3 नवंबर को मतदान होना है। यह सीट पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा के कद्दावर नेता पारसनाथ यादव के निधन से रिक्त हुई है। मल्हनी (पूर्व में रारी ) सीट पर 1962 को छोड़कर कभी भाजपा (पूर्व में जनसंघ) को सफलता नहीं मिली है। वर्ष 2002 के बाद से इस सीट पर बाहुबली नेता और पूर्व सांसद धनंजय सिंह केंद्र बिंदु में रहे हैं। 2002 में बाहुबली धनंजय सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की। इसके बाद 2007 में जद (यू)-भाजपा गठबंधन से विधानसभा में पहुंचे। 2009 में बसपा से सांसद होने के बाद इन्होंने रारी उपचुनाव में अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा के टिकट पर जीत दिलाई। 2012 में जेल में रहते हुए धनंजय सिंह ने अपनी पत्नी डॉक्टर जागृति सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा वे 50,000 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहीं। इस चुनाव में सपा के कद्दावर नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव ने बाजी मारी. 2017 में सपा के टिकट पर पारसनाथ यादव ने दोबारा जीत हासिल की और निषाद पार्टी के बैनर तले बाहुबली धनंजय सिंह ने 48000 वोट पाकर दूसरा स्थान बरकरार रखा। इस चुनाव में बसपा को तीसरा और भाजपा को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा था। 11 जून को पारसनाथ यादव के निधन से रिक्त हुई मल्हनी सीट पर उपचुनाव चल रहा है। इस चुनाव में सपा प्रत्याशी लकी यादव निर्दली प्रत्याशी पूर्व सांसद धनंजय सिंह बसपा प्रत्याशी जयप्रकाश दुबे के बीच मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा प्रत्याशी मनोज सिंह लड़ाई को चतुष्कोणीय बनाने में जी-जान से जुटे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी राकेश मिश्र उर्फ मंगला गुरु जी जान से चुनाव मैदान में हैं। इस सीट पर कुल 16 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं।
3- नौगांवा ( अमरोहा)
अमरोहा में नौगांवा सादात विधानसभा से विधायक रहे कैबिनेट मिनिस्टर चेतन चौहान के आकस्मिक निधन के बाद सीट खाली होने पर यहां उपचुनाव हो रहा है। यहां पर सभी राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं और भारतीय जनता पार्टी ने चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान को अपना प्रत्याशी बनाया है तो समाजवादी पार्टी ने मौलाना जावेद आब्दी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस पार्टी से कमलेश चौधरी को नौगांव सादात विधानसभा से मैदान में उतारा गया है तो वहीं बसपा ने फुरकान अहमद को अपना प्रत्याशी बनाया है। यहां पर अल्पसंख्यक समाज के लगभग 40% वोटर मौजूद है। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने भी अल्पसंख्यक  प्रत्याशी पर दांव खेला है। यहां पर लगभग 20 प्रतिशत दलित वोट है। वहीं कांग्रेस ने जाट समाज के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है, यहां पर जाट मतदाताओं की संख्या 15 फीसद है। फिलहाल बीजेपी ओर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों में आमने सामने की टक्कर है, लेकिन चेतन चौहान के निधन के बाद उनकी पत्नी को उम्मीदवार बनाये जाने से इनको सहानुभूति के वोट भी मिलने की संभावना है और यहां बीजेपी का पलड़ा भारी हो सकता है।
4- बांगरमऊ (उन्नाव)
प्रदेश की राजधानी लखनऊ और हरदोई जनपद से सटा जनपदीय सीमा का 162 बांगरमऊ विधानसभा जनपद की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अब तक यहां की जनता ने 14 बार विधानसभा के चुनाव में मतदान कर प्रतिनिधियों का चुनाव किया है, जिसमें सबसे अधिक पांच बार कांग्रेस को प्रतिनिधित्व का मौका मिला है। उसके बाद समाजवादी पार्टी फिर बसपा शामिल है। आजादी के बाद प्रथम चुनाव में यह सीट सुरक्षित थी। उसके बाद सामान्य सीट बनी रही,परंतु बीजेपी नेताओं को एक बार भी बांगरमऊ की सीट से विधानसभा में जाने का मौका नहीं मिला। 2017 के चुनाव में यहां भाजपा से कुलदीप सिंह सेंगर विधायक चुने गए, लेकिन कुलदीप सिंह सेंगर जब माखी रेप कांड में दोषी हुए तो इसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। बांगरमऊ उपचुनाव में कुल 11 उम्मीदवार है, जिनमें भाजपा से श्रीकांत कटियार, कांग्रेस से आरती बाजपेयी, सपा से सुरेश पाल और बसपा से महेश पाल प्रत्याशी हैं। इस सीट पर भाजपा, सपा और कांग्रेस में त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है।
5- बुलंदशहर
बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट पर उप चुनाव में 18 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं और चुनावी दंगल  रोचक होने के आसार हैं। 18 प्रत्याशियों में से केवल 5 प्रत्याशी निर्दलीय हैं और 13 प्रत्याशी पार्टियों से संबंधित हैं। इन तेरह प्रत्याशी में एक प्रत्याशी समाजवादी पार्टी और रालोद के गठबंधन का है। इस तरह 13 प्रत्याशी राजनैतिक दलों से संबंधित हैं और चुनावी समर में हैं। बात करें चुनावी और मतदाताओं के गणित की तो 18 प्रत्याशियों में से पांच प्रत्याशी मुस्लिम हैं और 13 हिंदू प्रत्याशी हैं, जिनमें केवल एक मुस्लिम प्रत्याशी निर्दलीय है। जातीय आंकड़ों की बात करें तो सदर विधानसभा सीट पर सर्वाधिक मतदाता मुस्लिम मतदाता हैं। उसके बाद दलित मतदाताओं की संख्या और उसके बाद लोधी राजपूत तीसरे स्थान पर हैं। ठाकुर जाट, ब्राह्मण व वैश्य संख्या के आधार पर अपना कमोवेश कम ज्यादा चौथे स्थान पर हैं, शेष अन्य जाति के मतदाता का भी अपना महत्व है। इस उपचुनाव में भी मुद्दे कई हैं, फिर भी अभी कोई भी मुद्दा मतदाताओं के जेहन में उभर कर नहीं आ रहा है। यहां पर मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में होता दिखाई दे रहा है।
6- घाटमपुर (कानपुर)
कानपुर की घाटमपुर विधान सभा सीट बीजेपी के पाले में थी, जहां की विधायक कमल रानी वरुण का कोरोना के चलते इलाज के दौरान निधन हो गया था, जिसके बाद इस विधान सभा को उप चुनाव के दायरे में आना पड़ा। उपचुनाव में रिजर्व सीट के चलते सभी प्रत्याशी दलित समुदाय से हैं। वहीं हाथरस कांड को मुद्दा बनाकर दूसरी राजनैतिक पार्टियां बीजेपी को घेरने का काम कर रहीं हैं। अब देखना होगा कि भारतीय जनता पार्टी के विकास का नारा और हाथरस कांड के आक्रोश की आग किसको फायदा और किसको नुकसान पहुंचाती है। यहां पर कुल 6 प्रत्याशी मैदान में हैं और अभी तक के आंकलन और माहौल के अनुसार यहां पर सपा, भाजपा, बसपा और कांग्रेस के बीच चतुष्कोणीय मुकाबला दिखाई दे रहा है।
7- टूंडला (फिरोजाबाद)
फिरोजाबाद के टूंडला विधानसभा में भी 3 नवंबर को उपचुनाव की वोटिंग होगी, जिसमें 3 लाख 64 हजार 312 मतदाता नया विधायक चुनेंगे। इस बार टूंडला विधानसभा उपचुनाव में फेरबदल भी हुआ है। कोरोना के चलते बूथों की संख्या 408 से बढ़ाकर 558 की गई है। करीब 6 लाख आबादी वाला टूंडला विधानसभा आगरा और एटा की सीमाओं के साथ जुड़ा हुआ है। फिरोजाबाद जनपद की टूंडला विधानसभा सीट 1952 में अस्तित्व में आई थी उल्फत सिंह चौहान यहां के पहले विधायक चुने गए थे। जातिगत समीकरण की बात करें तो टूंडला विधानसभा में ठाकुर, दलित, धनगर, वोट अधिक संख्या में है, लेकिन यादव तथा स्वर्ण समाज के वोट भी हार जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि इनमें से 2 जातियों का जिस प्रत्याशी को समर्थन हासिल होगा उसे ही विजय श्री मिलेगी। इसी आधार पर ही 2017 के चुनाव में एसपी सिंह बघेल लगभग 38 हजार वोटों से टूंडला विधानसभा से जीते थे, क्योंकि यह सीट भारतीय जनता पार्टी के पास थी। इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। उत्तर प्रदेश के दोनों उपमुख्यमंत्री दिनेश चंद्र शर्मा तथा केशव प्रसाद मौर्य टूंडला विधानसभा का दौरा कर चुके हैं।
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