नई दिल्ली। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कम बोलते हैं. आमतौर पर बहुत खामोशी से, लो प्रोफाइल रहकर काम करते हैं. कांग्रेस के तमाम अच्छे-बुरे दिनों और उठापटक से वह खुद को पिछले चार दशक से भी ज्यादा समय से बचाते रहे हैं. उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया है. इस दौरान कभी भी वह पार्टी के साथ अपनी प्रतिबद्धता दिखाने से पीछे नहीं हटे हैं।
कुल मिलाकर संक्षिप्त में कहा जाए तो तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके गहलोत अपने दौर के किसी भी कांग्रेसी नेता की तरह हर कामयाबी का श्रेय कांग्रेस के प्रथम परिवार को देते रहे हैं. इसी तरह, हर बार नाकामी के लिए संगठन की सामूहिक जिम्मेदारी बताई जाती रही है.
लगातार दूसरा लोकसभा चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने इस प्रथा को झकझोरा, जिसने काफी लोगों को परेशानी में डाल दिया. पार्टी अध्यक्ष ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया. अब सवाल यह था कि क्या बाकी ताकतवर लोग या पदों पर आसीन लोग राहुल के पदचिह्नों पर चलेंगे?
एक कांग्रेसी ने कहा, ‘हाथी के पांव में सबका पांव.’
दरअसल, पिछले एक महीने में ज्यादा लोगों ने ऐसा किया नहीं है. पार्टी के पावर पिरामिड में आराम से बैठे सत्ताधारी लोगों ने महज इतना किया कि वे राहुल गांधी से अपने पद पर बने रहने की अपील करते रहे. एक कांग्रेसी ने कहा, ‘हाथी के पांव में सबका पांव.’
बुधवार के दिन गहलोत ने इस पूरे मामले को दिलचस्प मोड़ दिया. उनके कदम ने केंद्र और राजस्थान दोनों जगह कांग्रेस में एक असहजता का माहौल बना दिया. अपने पहले टर्म का पहला बजट पेश करने के बाद गहलोत ने मीडिया से कहा कि विधानसभा चुनाव में जनता उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी.
अन्य शब्दों में कहा जाए तो गहलोत ने यह साफ कर दिया कि पिछले चुनाव उनके नाम और चेहरे पर लड़े और जीते गए. इसलिए उन्हें पूरे पांच साल सरकार चलाने का मौका मिलना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुझे काम करने का मौका दिया है.’
अपनी लोकप्रियता और नेतृत्व को लेकर इस कदर अड़ जाना या मुखरता से बात रखना यकीनन हैरान करने वाला है. खासतौर पर गहलोत जैसे आदमी का ऐसे बात करना तो और भी ज्यादा. गहलोत जमीनी स्तर से उठकर आए हैं. उन्हें अच्छी तरह पता है कि कांग्रेस में कामयाबी को लेकर इस तरह से बात करने के अपने मतलब निकाले जा सकते हैं. उसके बाद उनका नतीजा भी भुगतना पड़ सकता है.
शायद अपने बयान से गहलोत कई मुद्दे निपटाना चाहते हैं!
शायद अपने बयान से गहलोत कई मुद्दे निपटाना चाहते हैं. बड़ा मुद्दा यह कि वो राष्ट्रीय राजनीति में अपने रोल को लेकर दिल्ली जाने के इच्छुक नहीं हैं. इसे लेकर उन्होंने अपनी स्थिति साफ करनी चाही है. राजनीतिक गलियारे में बातें चल रही थीं कि उन्हें राहुल गांधी का उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है. जो नाम पार्टी अध्यक्ष के लिए चल रहे थे या अब भी चल रहे हैं, उनमें गहलोत शामिल हैं.
अपने व्यक्तिगत आकलन में कांग्रेसी इस बात को शायद बेहतर तरीके से समझ रहे हैं कि केंद्र में पार्टी की क्या संभावनाएं हैं. दिलचस्प है कि गहलोत के कुछ मंत्रियों ने इस साल हुए लोक सभा चुनाव लड़ने को लेकर अनिच्छा जताई थी.
चुनाव के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अब कोशिश कर रहे हैं कि उन कयासों को पूरी तरह खारिज कर दिया जाए, जिसमें कहा जा रहा था कि वो अपने नायब सचिन पायलट को बेटन सौंप देंगे. पायलट राज्य प्रमुख हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री के पद की लड़ाई में उन्होंने पीछे छोड़ा था.
पायलट खेमा नेतृत्व में बदलाव चाहता है
पायलट खेमा नेतृत्व में बदलाव चाहता है. उनका कहना है कि गहलोत को इसलिए चुना गया था, क्योंकि उन्होंने लोकसभा चुनाव में अच्छे नतीजों का वादा किया था. इसमें नाकाम रहने के बाद उन्हें अगली पीढ़ी को आगे आने देना चाहिए.
दूसरी तरफ गहलोत इस बात का दावा कर रहे हैं कि दिसंबर 2018 में हुए लोकसभा चुनाव में उनके नाम पर वोट पड़े थे. मई 2019 में कांग्रेस बहुत से राज्यों में हारी, इसमें राजस्थान शामिल था. लेकिन वो इन दो चुनावों को पूरी तरह अलग करके देखना चाहते हैं. गहलोत के इस बयान ने साफ कर दिया कि कांग्रेस में बुजुर्ग खेमा किसी भी तरह हटने को तैयार नहीं है.
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