नई दिल्ली। चुनावों से पहले नेताओं का पार्टी बदलने कोई नई बात नहीं है। हालांकि, मौजूदा दौर में इस सियासी ‘बदलाव’ का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 से लेकर 2021 के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस के 177 सांसद और विधायक पार्टी से अलग होकर दूसरे दलों में शामिल हुए। हाल ही में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने पार्टी को अलविदा कहा है। इस मामले में कांग्रेस के बाद दल-बदल का सामना सबसे ज्यादा मयावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी ने किया है। खास बात यह है कि इस दौरान सबसे ज्यादा फायदे में भारतीय जनता पार्टी रही। बीजेपी छोड़ने वालों की संख्या भी कम है और अन्य दलों के मुकाबले दल-बदलने वाले नेता भी बड़े स्तर पर पार्टी में शामिल हुए।
मीडिया रिपोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि इन 7 सालों में दल बदलने वाले उम्मीदवारों की संख्या 1133 है। इनमें से 22 फीसदी उम्मीदवारों ने भाजपा का दामन थामा. इस दौरान दल बदलने वाले कुल नेताओं में से 35% यानि 177 सांसद-विधायक कांग्रेस के थे। वहीं, भाजपा के मामले में यह आंकड़ा 33 यानि 7% है। हालांकि, पार्टी बदलने वाले नेताओं की दूसरी पसंद भी कांग्रेस ही रही। इसके बाद पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का नंबर है।
कांग्रेस-बसपा के दल-बदल गणित को ऐसे समझें
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस पार्टी दल-बदल की सबसे बड़ी गवाह रही। 7 सालों की अवधि में कांग्रेस के सर्वाधिक 222 नेता अन्य पार्टियों में शामिल हुए। वहीं, बसपा 153 सदस्य चुनाव से पहले अन्य दलों का हिस्सा बने. आंकड़े इस बात का सबूत देते हैं कि नेताओं के पार्टी बदलने का सबसे ज्यादा फायदा संख्या के लिहाज से बीजेपी को हुआ है. 1133 में से 253 नेता ने बीजेपी का दामन थामा था।
कांग्रेस की आंतरिक कलह ही बन रही परेशानी
2022 में चुनावी दौर से गुजरने के लिए तैयार पंजाब में कांग्रेस आंतरिक कलह का सामना कर रही है। यहां राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तनाव जारी है। कहा जा रहा था कि सिद्धू को राज्य में पार्टी की कमान देने पर विवाद खत्म हो सकता है, लेकिन पार्टी के ही कई नेताओं ने आशंका जताई थी कि इससे दोनों नेताओं बीच जारी विवाद और खुलकर सामने आएगा। जानकार अनुमान लगा रहे हैं कि इस पार्टी को इस तनातनी के चलते 2022 विधानसभा चुनाव में बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
राजस्थान में सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत के बीच भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। ताजा मामला छत्तीसगढ़ में सामने आया था, जहां राज्य में सीएम पद को लेकर ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले का मुद्दा उठा था. राज्य में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव समर्थकों ने नेतृत्व में बदलाव की बात की थी। फिलहाल, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में कमान सीएम भूपेश बघेल के पास है. मध्य प्रदेश में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल बदलने की कीमत कांग्रेस को सत्ता गंवाकर चुकानी पड़ी थी। वे बीजेपी में शामिल हुए थे और हाल ही में केंद्रीय मंत्री बनाए गए हैं।
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