स्वास्तिक में होता है श्री गणेश जी का वास, वास्तु दोष भी होते हैं दूर

Swastik

विघ्न हरण मंगल करण, श्री गणपति महाराज,

प्रथम निमंत्रण आपको, मेरे पूरण करिये काज।

हिंदू धर्म में इस मंत्र के उच्चारण और अर्थ से शायद ही कोई ऐसा होगा जो इससे परिचित न हो. सभी देवताओं में एकमात्र श्री गणेश जी ही ऐसे भगवान हैं, जिन्हें प्रथम पूज्य का आशीर्वाद प्राप्त है. हिंदू धर्म में किसी भी कार्य की शुरुआत में सबसे पहले गणेश जी का आह्वान और पूजन-अर्चन किया जाता है. चाहे वह भूमि पूजन, वाहन पूजन, गृह प्रवेश, विवाह या कोई विशेष पूजा पाठ ही क्यों न हो. अधिकांश लोग नए सामान का पूजन किए बिना उसका प्रयोग करना प्रारंभ नहीं करते हैं. यह परंपरा आज की नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही है.

यदि किसी नए सामान की खरीदारी करके घर लाते हैं तो उस पर रोली से स्वास्तिक का चिह्न बनाने के बाद दीया जलाकर पूजन करने के बाद ही उसका प्रयोग करते हैं. पूजा में जिस तरह श्री गणेश को सबसे पहले पूजा जाता है,  ठीक उसी तरह स्वास्तिक को मंगल कार्य शुरू करने से पहले बनाया जाता है.

विवाह निमंत्रण पत्र, व्यापारियों के बही खातों, दरवाजे की शाखाओं तथा पूजा की थाली में अंकित स्वास्तिक भगवान श्रीगणेश का प्रतीक चिह्न है. किसी भी बड़े अनुष्ठान या हवन से पहले स्वास्तिक चिह्न निश्चित रूप से बनाया जाता है. यह चिह्न न केवल शुभता का प्रतीक है, बल्कि इसे बनाने वाली जगह पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

स्वास्तिक के चिह्न को भगवान श्री गणेश का प्रतीक माना जाता है. इस स्वास्तिक की चार भुजाओं को गणेश की चारों भुजाओं का प्रतीक माना जाता है. स्वास्तिक के चारों बिंदु चारों पुरूषार्थों, धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष के प्रतीक हैं. भुजाओं के समीप दोनों रेखाएं गणेश जी की दोनों पत्नियों अर्थात ऋद्धि एवं सिद्धि की प्रतीक हैं और उनसे आगे की दोनों रेखाएं उनके दोनों पुत्र योग एवं क्षेम का प्रतीक है.

 

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*