सुप्रीम कोर्ट ने 89 साल के बुजुर्ग को तलाक देने से इन्कार कर दिया है। कोर्ट से बुजुर्ग ने 82 साल की पत्नी से तलाक की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह को आध्यात्मिक मिलन और पवित्र रिश्ता माना जाता है। इसलिए सिर्फ इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता कि शादी टूट के कगार पर पहुंच चुकी है। जिसके बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने की। दोनों जजों ने कहा कि आपकी पत्नी ने 60 साल तक रिश्ते की पवित्रता को बनाकर रखा। शादी 1963 में हुई थी। इस दौरान आपके 3 बच्चों की देखभाल की, लेकिन पति ने उनके प्रति दुश्मनों जैसा व्यवहार दर्शाया। पत्नी अब भी पति की देखभाल के लिए राजी है, वह तलाक का कलंक लेकर दुनिया से नहीं जाना चाहती है। जीवन के इस मोड़ पर भी वह आपको अकेला नहीं छोड़ना चाह रही है।
कोर्ट ने कहा तलाक की परमिशन नहीं दे सकते -Supreme Court Order
कोर्ट ने इसे अन्याय करार दिया है। कोर्ट ने ये भी कहा कि तलाक लेना समकालीन समाज में कलंक नहीं है। लेकिन हम आपकी पत्नी की भावनाओं को लेकर चिंतित हैं। इसलिए पत्नी की इच्छा को देखते हुए तलाक की परमिशन नहीं दे सकते। इसके बाद न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया।
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दोनों जजों ने कहा कि अगर 142 अनुच्छेद के तहत शादी टूट के कगार पर को आधार मान तलाक दे दिया, तो यह प्रतिवादी के साथ न्याय नहीं होगा। न्यायालय किसी के साथ अन्याय नहीं कर सकता। इसके बाद शीर्ष अदालत ने बुजुर्ग की याचिका को निरस्त कर दिया।
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