16 वर्षीय बेटे को खोने के बाद माता-पिता ने लिया प्रण
भोपाल। यह घटना 4 साल पूर्व की है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की अरेरा कॉलोनी में रहने वाला 16 वर्षीय मंदार 10वीं की परीक्षा खत्म होने के बाद दोस्तों के साथ केरवा डैम पर घूमने गया था। सुरक्षा-व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम नहीं होने से मंदार की डैम में डूबने से मौत हो गई। वहीं उसके एक दोस्त को लोगों ने बचा लिया। इस घटना ने मंदार के मम्मी-पापा प्रतिभा और विश्वास घुषे को झकझोर दिया। पेशे से अंग्रेजी ट्रेनर प्रतिभा और मैनेजमेंट कंसल्टेंट विश्वास पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। अपने बेटे को तो वे खो चुके थे, लेकिन किसी और के साथ ऐसी घटना न घटे, यह सोचकर उन्होंने प्रण लिया कि वे इसके लिए अवश्य कुछ करेंगे। बेटे की मौत के महज दो दिन बाद उन्होंने केरवा डैम पर दुर्घटना स्थल के आसपास की जगह पर सुरक्षा के इंतजाम करने का काम शुरू कर दिया।
क्यों होते हैं ऐसे हादसे
प्रतिभाविश्वास ने डैम के खतरनाक हिस्सों को चिन्हित किया, जो दुर्घटना का कारण बने हुए थे। साथ ही, नगर निगम की ओर से सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त नहीं किए गए थे, ऐसी खामियों को भी उन्होंने चिन्हित किया। संकेतक व चेतावनी बोर्ड पर लिखे अक्षर मिटे हुए थे। कहां कितनी गहराई है, इसकी कोई जानकारी अंकित नहीं थी। इन्हीं अव्यवस्थाओं के कारण डैम में बीते कुछ वर्षों में 175 बच्चों व युवाओं की डूबने से मौत हो चुकी थी। बारिश के दौरान ज्यादातर घटनाएं हुई थीं। पत्थरों पर फिसलन के कारण लोग गहरे पानी में चले जाते थे और डूब जाते थे।
तो थम गईं दुर्घटनाएं
प्रतिभा और विश्वास ने पुख्ता सर्वे रिपोर्ट तैयार की और नगर निगम व पुलिस अधिकारियों को सौंपी। लेकिन जिम्मेदारों ने डैम पर सुरक्षा बढ़ाने के कोई इंतजाम नहीं किए। ऐसे में दंपती ने स्वयं के खर्चे पर खतरनाक जगहों को सुरक्षित बनावाया और लाइफ जैकेट, ट्यूब सहित त्वरित बचाव के अन्य सामान रखवाए। सुरक्षा की व्यवस्था करने से साल 2015 से अब तक एक भी बड़ी दुर्घटना नहीं हुई।
मंदार नो-मोर फाउंडेशन की स्थापना
बेटे की याद में दंपती ने 2018 में मंदार नो-मोर फाउंडेशन की स्थापना की। अब प्रदेश में जलाशयों पर होने वाली घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं। आसपास के जिलों के जलाशयों में डूबने की घटनाएं रोकने के लिए फाउंडेशन काम कर रहा है। भविष्य में पूरे देश में जलाशयों में डूबने की घटनाएं रोकने का काम करेगा
लेकिन शासन-प्रशासन को शर्म नहीं आई…
विश्वास घुषे बताते हैं कि बेटे के खोने का गम जिंदगीभर नहीं भूल सकते। हम नहीं चाहते कि जो दुखों का पहाड़ हमारे ऊपर टूटा, वो किसी और पर टूटे। जब नगर निगम ने नहीं सुनी तो दो गोताखोरों को केरवा डैम पर तैनात कराया। दो साल तक दोनों का करीब 14 हजार रुपये मासिक वेतन अपनी तरफ से दिया। पुलिस चौकी पर लाइफ जैकेट, ट्यूब सहित अन्य रेस्क्यू ऑपरेशन से संबंधित समग्री रखवाई, जिससे डूबने वालों को बचाया जा सके।
बेटे की याद में लगवाया मंदार टावर
केरवा डैम पर मोबाइल नेटवर्क नहीं आता था। जो लोग वहां घूमने जाते, उनके मोबाइल फोन काम नहीं करते थे। सर्वे में पता चला कि कुछ घटनाओं में ऐसा हुआ कि डूबने की घटनाओं के बाद त्वरित मदद नहीं उपलब्ध हुई। ऐसे में मंदार के पिता ने मोबाइल टावर लगवाने के प्रयास शुरू कर दिए। 10 जुलाई 2016 को बीएसएनएल के सहयोग से टावर लगवाया गया। इसका नाम मंदार टावर रखा गया। इसके बाद डैम पर मोबाइल से बातचीत होने लगी।
भारत में हर साल 40 हजार मौतें डूबने से होती हैं। इनमें 25 वर्ष से कम आयु के युवक-युवतियों की संख्या ज्यादा होती है। हमारी मांग है कि केंद्र व राज्य सरकारें जलाशयों पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए गंभीरतापूर्वक काम करें। मां-बाप भी अपने बच्चों को लेकर सावधानी बरतें। उन्हें जलाशय आदि स्थलों पर जाने की इजाजत देने से पहले हर पहलू पर सोचें और सावधान रहें।
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