मथुरा। ब्रज की होली अपने अंतिम पड़ाव पर 09 मार्च, 2023 को दाऊजी मंदिर के प्रांगण में पहुंचेगी। लठामार, छड़ीमार, फूल होली, लड्डू होली, सांस्कृतिक होली के तमाम पड़ावों से गुजरते हुए दाऊजी मंदिर के रंगों से भरे प्रांगण में होली, होरा में तब्दील हो जाती है। यहां नंदगांव, बरसाना की तरह हुरियारिनों के हाथों में लठ नहीं होते हैं और नहीं हुरियारों के पास ढाल होती है। गोकुल की तरह हुरियारिनों के हाथों में छड़ी भी नहीं होती। मल्ल विद्या के देवता बलदाऊ के दरबार में होली का अंदाज भी अनूठा होता है। यहां हुरियारिनें हुरियारों के कपड़ों को फाड़कर उनके कोड़े बनाती हैं और इन्हीं कोड़ों की प्रेमपगी मार से हुरियारों की खबर लेती हैं।
ब्रज मंडल में होली के अलग-अलग आयोजन किए जाते है। मथुरा जनपद के बलदेव में होली के बाद गुरुबार को हुरंगा खेला जायेगा। ब्रज में होली के बाद शुरू होता है हुरंगा का दौर। बलदेव के हुरंगा में सराबोर होने को देश-दुनिया के श्रद्धालु एकत्रित होते है। मंदिर प्रांगण की छत पर श्रद्धालु जमा होते है। परंपरागत समाज गायन होता है । भांग घोट कर दाऊजी महाराज का भोग लगाया जाता है । भांग की मस्ती में सभी भक्तजन डूबे नजर आते है। जैसे ही भगवान श्री कृष्ण और बलदेव के स्वरूपों ने होली खेलने की इजाजत दी, तो मानों कुछ ही देर में आसमान से फूलों की और अबीर गुलाल की बरसात होने लगती है। हुरियारे और हुरियारिनों ने रसिया गाते हुए मंदिर में प्रवेश करते है। झंडा लेकर दाऊजी महाराज को आमंत्रित किया जाता है ।
मंदिर में जहां हुरियारे झूम रहे तो वहीं दूसरी तरफ हुरियारिन टेसू के रंग बरसा रहीं होती है। वहीं दूसरी तरफ हुरियारों पर हुरियारिन कपड़े के बनाए गए कोड़े से वार करती है। भक्तों की भीड़ और टेसू के रंग में रंगे हुए लोगों से मंदिर का आंगन पूरी तरह से भर होता है। कोड़ा मार होली से बलदेव का वातावरण भी हुरंगामय हो गया जाता है। मंदिर में सभी मौजूद श्रद्धालु बस यही गा रहे होते है कि ‘ब्रज में होली खेल रहौ, दाऊदयाल बड़े भागन ते हुरंगा आयौ, बरसाओ री रंग बरसाओ’ रसियाओं पर भक्तजन नृत्य करते है।
होली के बाद शुरू हुआ हुरंगा का दौर
ब्रज में होली के बाद हुरंगा का दौर शुरू हो जाता है. बलदेव के हुरंगा में सराबोर होने के लिए देश-विदेश स तमाम श्रद्धालु पहुंचते हैं. मंदिर प्रांगण में हुरंगा के दिन इतनी भीड़ होती है कि पैर रखने की भी जगह नही होती. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु बलदाऊ महाराज और रेवती मैया के दर्शन कर अपने आप को सौभाग्यमय मानते हैं।
मंदिर की सजावट बनती है आकर्षण का केंद्र
बलदाऊ मंदिर में सुबह से ही परंपरागत समाज गायन शुरू हो जाता है। श्रद्धालुओं के लिए मंदिर की आकर्षक सजावट भी आकर्षण का केंद्र बन जाती है. सबसे पहले हुरियारिनों ने भांग घोट कर दाऊजी महाराज का भोग लगते है। जिसके बाद श्री कृष्ण बलराम के स्वरूप सखियों के साथ विराजमान हो जाते है।
फूलों की खुशबू से महक उठता है पूरा वातावरण
दोपहर 12 बजे के बाद हुरियारे और हुरियारिन रसिया गाते हुए मंदिर में प्रवेश कर करते है। रसिया गायन में श्रद्धालु पूरी तरह से झूम रहे होते है। जिसके बाद झंडा लेकर दाऊजी महाराज को आमंत्रित किया जाता है। बलराम कुमार होली खेले के स्वर के साथ हुरंगा शुरू किया जाता है। मंदिर में फूलों और अबीर गुलाल की बरसात होती है। जिससे बलदेव का आसमान सतरंगी हो जाता है, और दूसरी तरफ फूलों की खुशबू से पूरा वातावरण महक जाता है।
श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव के उपासक
भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ की नगरी बलदेव में 09 मार्च, 2023 को हुरंगा का आयोजन किया जायेगा। ब्रज की होली अन्य आयोजन भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम पर केंद्रित हैं तो दाऊजी का हुरंगा का मुख्य आकर्षण हैं। श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव के उपासक गोस्वामी श्रीकल्याणदेव जी के वंशज सेवायत पांडेय समाज के स्त्री पुरुष इस हुरंगा का आयोजन करते हैं।
बलदाऊ को तामपत्र लगी भांग का भोग लगाते हैं
बल्देव नगर पंचायत ने बताया कि हुरंगा का आकर्षण ऐसा है कि देश-विदेशों से आए भक्त इस अद्भुत नजारे को देखने मात्र से आनंदित हो जाते हैं। ब्रज के राजा बलदाऊ की प्रतिमा के समक्ष खेले जाने बाले हुरंगा से पहले उनके सेवायत ताम्र पत्र लगी भांग का भोग लगाते हैं। इसके बाद भांग के प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
बलदाऊ के विग्रह की स्थापना 1582 में हुई थी
दाऊजी मंदिर के रिसीवर बताते हैं कि बलदाऊ की नगरी बलदेव में हुरंगा की परंपरा पांच सौ साल पुरानी है। माना जाता है कि श्री बलदाऊ के विग्रह की यहां प्रतिष्ठा स्थापना 1582 में हुई थी। उनके स्थापत्य काल से बलदाऊ के हुरंगा खेलने की परंपरा पड़ी। हुरंगा को भव्य रूप देने के लिये बृहद स्तर पर तैयारियां की गई हैं। बाहर से आये श्रद्धालु एवं दर्शकों के बैठने आदि की विशेष व्यवस्था की गई है।
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