
यूनिक समय, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संसद द्वारा पारित कानूनों को स्वाभाविक रूप से संवैधानिक माना जाता है और जब तक कोई ठोस संवैधानिक चुनौती सामने न आए, तब तक न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। जानिए इस सुनवाई से जुड़े 10 मुख्य बिंदु-
संसद के कानून पर न्यायिक टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून की संवैधानिकता को मान्यता दी जाती है। जब तक कोई स्पष्ट संवैधानिक आधार न हो, अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
सुनवाई को सीमित करने की केंद्र की मांग
केंद्र सरकार ने आग्रह किया कि सुनवाई को तीन मुख्य बिंदुओं तक सीमित रखा जाए, जिनमें वक्फ संपत्ति को कोर्ट, यूजर या डीड के आधार पर डि-नोटिफाई करने के बोर्ड के अधिकार पर चर्चा शामिल हो।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति
वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र की मांग का विरोध करते हुए कहा कि इस प्रकार टुकड़ों में सुनवाई करना उचित नहीं है क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मामला है।
संपत्ति की जब्ती का आरोप
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि संशोधित अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को जब्त करना है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया कि ऐसी दलीलों पर अदालत को फिलहाल टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है।
पंजीकरण पर बहस
सीजेआई ने पूछा कि क्या पूर्व के कानूनों में वक्फ संपत्ति का पंजीकरण अनिवार्य था। सिब्बल ने जवाब दिया कि ‘Shall’ शब्द का उपयोग इसे आवश्यक बनाता है। अदालत ने कहा कि ‘Shall’ का प्रयोग अपने आप में अनिवार्यता की पुष्टि नहीं करता।
1923 बनाम 1954 का मतभेद
सुनवाई के दौरान यह चर्चा हुई कि वक्फ संपत्ति का पंजीकरण कब से अनिवार्य था – क्या 1923 से या 1954 के बाद से। सिब्बल ने कहा कि इस मुद्दे पर कुछ भ्रम है।
पंजीकरण नहीं करने पर प्रभाव
सीजेआई ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की दलील को रिकॉर्ड में लिया जाएगा कि भले ही पंजीकरण आवश्यक था, परंतु यदि वह न किया जाए तो उसका कोई स्पष्ट दंडात्मक परिणाम नहीं था।
धार्मिक प्रथाओं पर प्रभाव का मुद्दा
सिब्बल ने तर्क दिया कि नया कानून अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह धार्मिक प्रथाओं के अधिकार को सीमित कर सकता है।
एएसआई संरक्षित स्थल पर पूजा
सीजेआई ने उदाहरण दिया कि उन्होंने खुद खजुराहो के एक एएसआई संरक्षित मंदिर में जाकर पूजा की है। सवाल किया गया कि क्या सिर्फ वक्फ मान्यता हटाने से धार्मिक अभ्यास प्रभावित होता है।
अदालत का निष्कर्ष
अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं का यह तर्क दर्ज किया गया है कि अधिनियम अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है और इससे नागरिकों के धार्मिक अधिकार प्रभावित हो सकते हैं। मामले की अगली सुनवाई में इसी पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
यह मामला अब संवैधानिक वैधता परीक्षण के दौर में है और आगे की सुनवाई में तय होगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 कितनी संवैधानिक कसौटियों पर खरा उतरता है।
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