लगी 15 गोलियां: शादी के 15 दिन बाद ही युद्ध पर पहुंचा, लेकिन उड़ा दिये आतंकी

इंदौर. करगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने वीरता की कई मिसालें कायम की हैं। रोंगटे खड़ी कर देने वाली एक ऐसी ही कहानी है सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र पाने वाले सूबेदार मेजर (तत्कालीन ग्रेनेडियर) योगेंद्र सिंह यादव की। शुक्रवार को अग्रवाल पब्लिक स्कूल में स्टूडेंट्स के सामने जब उन्होंने युद्ध के अविस्मरणीय क्षणों को जीवंत किया तो सभागृह में मौजूद हर शख्स का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। आइए सुनते हैं उन पलों की कहानी उन्हीं की जुबानी…

पिता करन सिंह यादव सेना से रिटायर्ड थे। उन्हें देखकर मैंने बचपन में ही तय कर लिया था कि सेना में जाना है। महज 16 की उम्र में मुझे यह अवसर मिला। ट्रेनिंग के कुछ साल बाद ही शादी हो गई। शादी को 15 दिन ही हुए थे कि करगिल युद्ध के लिए बुलावा आ गया। जम्मू-कश्मीर पहुंचा तो पता चला कि मेरी बटालियन द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची पहाड़ी तोलोलिंग पर लड़ाई लड़ रही है।

दुश्मन ने अंधाधुंध चलाई गोलियां

हमें टाइगर हिल पर हजारों मीटर ऊपर बैठे दुश्मन को मार गिराने का जिम्मा सौंपा गया। पहाड़ी पर चढऩा शुरू ही किया था कि दुश्मन ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी। इस हमले में कई साथी शहीद हो गए। इसके बाद अफसरों ने हमें ऐसे रास्ते से दुश्मनों तक पहुंचने का प्लान बताया, जिसके बारे में दुश्मन कभी सोच भी नहीं सकता था। अब 18,000 फीट ऊंची बिल्कुल खड़ी चट्टान की मदद से ऊपर जाना था।

शादी के 15 दिन बाद ही युद्ध पर पहुंचा, 15 गोलियां लगी, हाथ भी टूट गया पर आतंकियों को उड़ा दिया

गोलाबारी में शहीद हुए कई साथी

कुछ घंटों में ही हम वहां तक पहुंचने में कामयाब रहे, जहां से दुश्मन हम पर हमला कर रहे थे। पहुंचते ही दुश्मनों पर धावा बोला और उनके बंकरों को तबाह कर दिया। इस गोलाबारी में भी हमारे कई साथी शहीद हो गए और तय किया गया कि अभी कोई फायरिंग नहीं करेगा। इस वक्त तक मुझे 3 गोलियां लग चुकी थी। कुछ देर बाद जब दुश्मन को लगा कि हमारी पूरी टीम खत्म हो गई है तो वह थोड़े सुस्त हो गए और अपनी तसल्ली के लिए आगे बढ़े। इस मौके का फायदा उठाकर हमने दुश्मन पर हमला कर दिया। इस हमले में कई आतंकी मरे लेकिन एक भाग निकला। इसने हमारी टुकड़ी की जानकारी आगे अपने साथियों को दे दी।

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मरने का नाटक किया और बंकर में दाग दिया ग्रेनेड

हम अभी भी आगे बढ़ रहे थे लेकिन दुश्मन अब छिपकर हमारा इंतजार कर रहा था। जैसे ही हम पहुंचे उन्होंने गोलियों की बौछार शुरू कर दी। मेरी टीम के सारे साथी शहीद हो चुके थे और मुझे भी 15 गोलियां लग चुकी थी, लेकिन सांसें चल रही थी। दुश्मन को पास आता देख मैंने मरने का नाटक किया। मेरे पास एक ग्रेनेड था, जिसे दुश्मनों के बंकर में दागकर मैंने कई आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया। इसके बाद दूसरे बंकर पर धावा बोला जिसमें 4 आतंकी थे। इन्हें भी अकेले ही मौत के घाट उतारा। इसके बाद मेरे पीछे आ रही भारतीय टुकड़ी ने मुझे वहां से निकाला।

मंत्री बघेल के आतिथ्य में खेल महोत्सव का समापन

इससे पहले स्कूल में चल रहे वार्षिक खेल महोत्सव का समापन मंत्री सुरेन्द्र सिंह बघेल के मुख्य आतिथ्य में हुआ। उन्होंने विजेताओं को पुरस्कारों से नवाजा। इस अवसर पर विद्यालय के संस्थापक पुरुषोत्तम अग्रवाल भी मौजूद थे। प्राचार्य वंदना ओझा ने अतिथियों को विद्यालय का प्रतीक चिह्न भेंट किया और आभार व्यक्त किया।

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