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भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार दिलीप कुमार का बुधवार को निधन (Dilip Kumar Passes Away) हो गया है। मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में उन्होंने सुबह 7:30 बजे आखिरी सांसें लीं। उन्होंने करीब 58 साल तक सिनेमा की दुनिया पर राज किया। ‘ट्रेजडी किंग’ कहलाए। दर्द में जब पर्दे पर दिलीप कुमार की आंखें डबडबाती थीं तो पूरा थिएटर रो पड़ता था। एक ऐसा कलाकार, जिसकी पूरी दुनिया फैन रही। खुद अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) भी दिलीप कुमार के बड़े फैन थे। दिलीप साहब के निधन पर अमिताभ बच्चन ने ठीक ही कहा है कि वह सिनेमा की एक संस्था थे। यदि भारतीय सिनेमा का इतिहास लिखा जाएगा तो वह ‘दिलीप कुमार के पहले…’ और ‘दिलीप कुमार के बाद…’ ही लिखा जाएगा। अपने करियर में दिलीप साहब ने ‘मुगले-ए-आजम’ से लेकर ‘देवदास’ और ‘दाग’ से लेकर ‘सौदागर’ तक कई ऐसे किरदार (Dilip Kumar Top 10 Films) निभाएं, जिनकी बराबरी आज भी कोई नहीं कर सकता।
‘ज्वार भाटा’ से शुरुआत ‘दाग’ ने दिलाई पहचान
दिलीप कुमार ने साल 1944 में फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से डेब्यू किया था। लेकिन तब शायद ही किसी ने उन्हें पर्दे पर नोटिस किया। तीन साल बाद जब वह ‘जुगनू’ में नजर आए, तो सिनेमा की दुनिया के स्टार बन गए। यह दिलीप कुमार की पहली बॉक्स ऑफिस हिट फिल्म थी। इसके बाद 1948 में आई ‘मेला, 1949 में रिलीज ‘अंदाज’ और 1951 में रिलीज ‘दीदार’ ने उन्हें स्टारडम दिया। साल 1952 में रिलीज फिल्म ‘दाग’ ने दिलीप कुमार को सुपरस्टार का दर्जा दिया। इस फिल्म के लिए उन्हें पहली बार बेस्ट ऐक्टर के अवॉर्ड के लिए नॉमिनेशन भी मिला।
दिलीप कुमार को ‘देवदास’ ने बनाया ट्रेजडी किंग
पचास का दशक दिलीप कुमार के बॉलिवुड में बढ़ते स्टारडम के नाम रहा। ‘दाग’ के बाद उन्हें सबसे बड़ी सफलता 1955 में ‘देवदास’ ने दी। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर बनी इस फिल्म ने दिलीप कुमार को ‘ट्रेजडी किंग’ बना दिया। दिलीप कुमार ट्रैजिक यानी दुख भरे रोल्स में जान डाल देते थे। एक ऐक्टर के तौर पर वह रोल्स में इस कदर डूब जाते थे कि उन्हें डॉक्टर ने हल्की-फुल्की फिल्में करने की सलाह दे डाली थी। तब उसी दौर में उनकी ‘आन’, ‘आजाद’ और ‘कोहिनूर’ जैसी फिल्में भी रिलीज हुईं, जिनमें उनका किरदार थोड़ा हंसमुख था।
दिलीप कुमार पर्दे पर आखिरी बार 1998 में रिलीज ‘किला’ में नजर आए। लेकिन इससे पहले 1991 में रिलीज ‘सौदागर’ में राजकुमार के साथ उनकी दुश्मनी की कहानी दर्शकों के दिलों में बस गई। सुभाष घई की यह फिल्म सिल्वर जुबली साबित हुई। इस फिल्म के लिए सुभाष घई को बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था।
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