महाराष्ट्र में 2014 में गठित हुई विधानसभा का शनिवार को आखिरी दिन है. लेकिन, अब तक नई सरकार के गठन को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी है. शिवसेना भले ही भाजपा को धमकी दे रही है कि वह दूसरे विकल्पों पर विचार कर सकती है, लेकिन उसने अब तक किसी भी दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाया है. इसके अलावा भाजपा भी अब तक सरकार गठन को लेकर पूरी तरह सक्रिय नहीं दिखी है. एक तरह से प्रदेश की सभी 4 प्रमुख पार्टियां भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा सरकार गठन पर ठहरी हुई दिखाई दे रही हैं. गुरुवार को भाजपा ने राज्यपाल से मुलाकात की और फूट के डर से शिवसेना ने अपने विधायकों को होटल में ठहराने का इंतजाम किया है। इस बीच सूत्रों के मुताबिक नितिन गडकरी शुक्रवार को मातोश्री में उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब गेंद पूरी तरह से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पाले में है कि वह सरकार गठन के लिए भाजपा से बात करते हैं या फिर राकांपा-कांग्रेस को साधते हैं. हालांकि अब तक शिवसेना और भाजपा के बीच किसी भी तरह की सहमति की बात सामने नहीं आई है. अब सरकार गठन के लिए महज दो दिनों का ही वक्त बचा है, ऐसे में सत्ता के 9 समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं.
1. पहला समीकरण यह है कि भाजपा राज्यपाल के पास सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सरकार बनाने का दावा पेश करे. इसके बाद वह अन्य दलों और निर्दलीय विधायकों से समर्थन जुटाने की कोशिश करे, जैसा कि उसने कई अन्य राज्यों में पहले भी किया है. भाजपा को 145 के जादुई समीकरण तक पहुंचने के लिए 40 विधायकों की जरूरत है. ऐसे में वह विपक्षी खेमे में ही सेंध लगा सकती है. ऐसा हुआ तो पहला टारगेट शिवसेना ही हो सकती है.
2. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि किसी भी दल में विभाजन की स्थिति होना मुश्किल है. क्योंकि ऐसा होने पर उन्हें अपने समर्थकों को जवाब देना होगा, जैसा कि हरियाणा में दुष्यंत चौटाला के भाजपा से गठबंधन करने पर हुआ. अब जाट मतदाता उनसे भाजपा संग जाने को लेकर सवाल पूछ रहे हैं.
3. यदि सरकार गठन के लिए कोई भी पार्टी जरूरी नंबर नहीं जुटा पाती है तो ऐसे में राष्ट्रपति शासन लागू होगा. मुंबईकर जिसे दिल्ली का मुंबई पर शासन कहते रहे हैं. ऐसी स्थिति में शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस अपने विधायकों को एकजुट करने की कोशिश में होंगी तो भाजपा इस वक्त का इस्तेमाल शिवसेना या अन्य दलों को साधने के लिए कर सकेगी.
4. यदि शिवसेना से भाजपा कोई समझौता चाहती है तो उसे दिल्ली से ही प्रयास करने होंगे, लेकिन वह कौन होगा? शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या फिर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से ही बातचीत पर अड़े हुए हैं. पहले कार्यकाल में शिवसेना को साथ रखने में सफल रहे देवेंद्र फडणवीस से अब वह बात करने के मूड में नहीं हैं. इसके अलावा हर दल में दोस्ती के लिए मशहूर नितिन गडकरी अब तक महाराष्ट्र में किनारे ही दिखे हैं. हालांकि अब भी वह एक अच्छे दूत साबित हो सकते हैं.
5. नितिन गडकरी का राजनीति में लंबा अनुभव है. उन्हें व्यवहारिक नेताओं में शुमार किया जाता है. शिवसेना भी उन्हें गंभीरता से लेती रही है. वह जब भाजपा के अध्यक्ष थे तो शिवसेना ही नहीं बल्कि राजनीति के साइलेंट प्लेयर कहे जाने वाले कॉर्पोरेट जगत का भी उन्हें समर्थन हासिल था. इसके अलावा आरएसएस का भी उन्हें समर्थन प्राप्त है. लेकिन, सवाल यह भी है कि क्या वह इस भूमिका में आना चाहेंगे? आखिर ऐसी सरकार के लिए जहां अगले 5 साल वह भी फिर से किनारे ही रखे जा सकते हैं.
6. यदि भाजपा इस बार सत्ता में लौटती है, जिसकी संभावना सबसे ज्यादा है तो वह अपनी दूसरी कतार के नेताओं को तैयार करने पर फोकस करेगी. एकनाथ खड़से, पंकजा मुंडे, विनोद तावड़े और प्रकाश मेहता जैसे नेताओं के किनारे लगने के चलते पार्टी के सामने अब यह भी एक चुनौती है.
7. इस पूरे खेल में शरद पवार एक ऐसे खिलाड़ी हैं, जो मैदान से बाहर हैं, लेकिन फिर भी खुश हैं. इस बार पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें जीतने वाली राकांपा के मुखिया राजनीति को बारीकी से समझते हैं. इस बार वह भले ही सत्ता की दौड़ में नहीं हैं, लेकिन संभावित समीकरणों का हिस्सा हैं.
8. इस चुनाव में 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को महाराष्ट्र में 16 फीसदी वोट ही मिले हैं. ऐसे में वह इस पूरी कवायद पर करीब से नजर रख रही है और भविष्य के लिए तैयारियों में जुटी हुई है.
9. आखिर में सब कुछ इस पर ही निर्भर करेगा कि भाजपा अपने लिए कौन सा रास्ता चुनती है. 2014 के विधानसभा में बहुमत के करीब पहुंची भाजपा इस बार भले ही 105 सीटें जीती है, लेकिन दो बार लोकसभा चुनाव में उसने एक तरह से क्लीन स्वीप किया है. शिवसेना से वह बड़ी पार्टनर बनकर उभरी है, राज्य में नरेंद्र और देवेंद्र की केमिस्ट्री ने काम किया है. यही नहीं देश के सबसे अमीर स्थानीय निकाय बीएमसी में भी उसने बढ़त बनाई है. ऐसे में अब यह देखने वाली बात है कि वह शिवसेना को साथ लेकर उसे अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका देती है या फिर आक्रामक रणनीति के साथ खुद आगे बढ़ती है.
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