फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका की पूजा करते हैं। इस दौरान होलिका पर कई चीजें चढ़ाई जाती हैं। देखने में ये चीजें भले ही साधारण रहें, लेकिन इनके पीछे कई मनोवैज्ञानिक तथ्य छिपे होते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है, लेकिन इसके पहले महिलाएं होलिका की पूजा करती हैं। इस बार पंचांग भेद के कारण होलिका 6 व 7 मार्च दो दिन किया जाएगा। होलिका की पूजा करते समय महिलाएं कई चीजें चढ़ाई जाती हैं जैसे- उंबी, गोबर से बने बड़कुले, नारियल व नाड़ा आदि। परंपरागत रूप से होली पर चढ़ाई जाने वाली सामग्री के पीछे भी कुछ भाव छिपे हैं, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। आगे जानिए होलिका पूजा में जो चीजें चढ़ाई जाती हैं, उसके पीछे क्या मनोवैज्ञानिक तथ्य छिपे हैं…
होलिका की पूजा करते या होलिका दहन के बाद गेहूं की बालियां चढ़ाई जाती हैं। कुछ स्थानों पर इन्हें होलिका की अग्नि में सेंककर खाया भी जाता है। उंबी नए धान का प्रतीक है, क्योंकि ये वो समय होता है जब गेहूं की फसल कटती है और नया धान घर में आता है। होलिका में उंबी समर्पित करने के पीछे मनोभाव है अच्छी फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद देना।
होलिका की पूजा करते समय गोबर से बने बड़कुल यानी छोटी उपलों की माला भी चढ़ाई जाती है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि अग्नि और इंद्र फाल्गुन पूर्णिमा के देवता हैं। गोबर के बड़कुले अग्नि को गहने के रूप में चढ़ाए जाते हैं। हालांकि ये परंपरा कई स्थानों पर लुप्तप्राय हो गई है।
होलिका की पूजा करते समय नारियल आवश्यक रूप से चढ़ाया जाता है। नारियल को धर्म ग्रंथों में श्रीफल भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी का भी एक नाम श्री है। किसी भी शुभ कार्य के दौरान नारियल का उपयोग आवश्यक रूप से किया जाता है। होलिका की पूजा करते समय इसे फोड़कर कुछ भाग चढ़ाया जाता है और बाद में इसे प्रसाद रूप में खाया जाता है।
होलिका की पूजा करते समय जनेऊ यानी पूजा का नाड़ा और मौली भी जरूर चढ़ाई जाती है। धर्म ग्रंथों में इसे वस्त्र का प्रतीक माना गया है। इसके पीछे छिपा मनोवैज्ञानिक भाव ये है कि किसी भी देवी-देवता की पूजा करते समय उन्हें वस्त्र जरूर चढ़ाने चाहिए। वस्त्र के अभाव में जनेऊ और मौली भी अर्पित की जा सकती है। साथ ही होलिका को श्रृंगारित करने का भाव इसमें निहित है।
Leave a Reply