भारत ने Chandrayaan 2 लॉन्च कर दिया है और यह देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज हम आपको चांद पर चलने वाली पहली कार और उसकी टेक्नोलॉजी के बारे में बता रहे हैं।
नई दिल्ली। आज भारत ने चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) लॉन्च कर दिया है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह यात्रा हमारे देश के सबसे यादगार पलों में से एक है, लेकिन आज हम आपको उस कार के बारे में बता रहे हैं जो कि पहली बार चांद पर चली थी। आज से 50 साल पहले ही इंसान ने पहली बार चंद्रमा पर पैर रखा था और उसके बाद से नए-नए कदम उठाए गए। जब 1971 में अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा पर पैर रखा था तो उनके साथ एक ऑफ-रोडर कार लूनर रोवर भी थी।
नासा लूनर रोवर व्हीकल (LRV) की में ब्रेक, एस्केलेटर्स, 4 पहिये और एकरमैन स्टीयरिंग दिया गया था। उस दौरान चांद पर छोटी गाड़ी रोवर को पहली बार पृथ्वी से परे एक दुनिया की सतह पर चलाया गया था। नासा ने सबसे पहली बार सन 1971 में अपोलो मिशन के तहत मानव रहित यान चंद्रमा पर भेजा था। उस मिशन के तहत सबसे पहली चंद्रमा पर आपोलो लूनर रोविंग व्हीकल का प्रयोग किया गया था। इसमें 2 नॉन रिर्चाजेबल जिंक बैटरी का प्रयोग किया गया था जो कि कार के हर पहिये में लगभग एक चौथाई हॉर्स पॉवर की शक्ति प्रदान करती थी।
अपोलो 15 चंद्रमा पर पुरुषों को उतारने वाला चौथा मिशन था और यह एलआरवी का उपयोग करने वाले तीन मिशनों में से पहला था। रोवर में लगभग 460 पाउंड यानी कि 208 किलो का द्रव्यमान था और इसे फोल्ड करने के लिए डिजाइन किया गया था ताकि यह लूनर मोडुल के एक डिब्बे के अंदर फिट हो सके। यह उस समय की बात है जब भारत से कोई भी इंसान चांद पर नहीं पहुंचा था। देश से पहली बार चांद पर पहुंचने वाले राकेश शर्मा पहले भारतीय और विश्व के 138 वे थे।
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