नवरात्रि की तीन जरूरी परंपराएं, इनमें छिपी है हमारे पूर्वजों की गहरी वैज्ञानिक सोच

यूनिक समय, मथुरा। शारदीय नवरात्रि देवी आराधना का पर्व है। इस बार ये पर्व 26 अक्टूबर, सोमवार से शुरू हो चुका है, जो 4 अक्टूबर, मंगलवार तक मनाया जाएगा। इन 9 दिनों में देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। इस नवरात्रि में कई परंपराओं का पालन किया जाता है। इनमें से कुछ परंपराओं के पीछे धार्मिक तो कुछ के पीछे वैज्ञानिक तथ्य जुड़े हैं। आज हम आपको नवरात्रि से जुड़ी कुछ ऐसी ही परंपराओं के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है….

व्रत करना
नवरात्रि के दौरान अधिकांश लोग व्रत रखते हैं। ये व्रत भी कई तरह के होते हैं। कोई पूरे नौ दिन तक सिर्फ फलाहार भी करता है तो कोई सिर्फ एक समय ही भोजन करता है। कुछ लोग तो सिर्फ गर्म पानी पीकर भी माता की आराधना करते हैं। नवरात्रि के दौरान व्रत रखने के पीछ वैज्ञानिक तथ्य जुड़ा है। चूंकि ये समय दो ऋतुओं (वर्षा और शरद) के संधिकाल के दौरान मनाया जाता है, इसलिए इस दौरान खान-पान पर नियंत्रण रखना जरूरी होती है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने इस दौरान व्रत रखने की परंपरा बनाई।

जवारे बोना
नवरात्रि के पहले दिन माता की स्थापना करते समय जवारे बोए जाते हैं, जो 9 दिन में काफी बड़े हो जाते हैं। जौ बोने की यह प्रथा हमें यह सीख देती है कि हम सदैव अपने अन्न और अनाज का सम्मान करें। वहीं आयुर्वेद के अनुसार, जवारे एक प्रकार की औषधि है। इसका रस पीने से अनेक रोगों में आराम मिलता है। जवारों का रस शरीर के लिए शक्तिशाली टॉनिक है। इस तरह इस परंपरा से वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तथ्य जुड़े हैं।

कन्या पूजा करना
नवरात्रि के दौरान कन्या पूजा एक अनिवार्य परंपरा है। ये परंपरा हमें महिलाओं का सम्मान करना सीखाता है। इसके पीछे ये भाव छिपा है कि बिना स्त्रियों के ये संसार शून्य है। भगवान शिव भी बिना शक्ति के अधूरे हैं। भगवान ने महिलाओं को ही नवजीवन उत्पन्न करने की शक्ति प्रदान की है, इसलिए वे पुरुषों से कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं। देवी आराधना के दौरान कन्या पूजा की परंपरा हमें यही सीख देती है।

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