महंगाई की मार से बताशा की कमर टूटी

कम मजदूरी मिलने के चलते उपलब्ध नहीं होते हैं मजदूर

चौमुहां। घर में कोई शुभ कार्य हो या फिर शादी विवाह हो और वहाँ बतासा न हो ऐसा हो नहीं सकता, लेकिन आजकल महंगाई और कम मजदूरी के चलते कस्बे का बतासा कारोबार अपनी पहचान खोता जा रहा है। वर्तमान में आलम यह है कि जरूरत के मुताबिक कमाई ना होने से अधिकांश कारीगर इस धंधे को छोड़कर नगरों, महानगरों में परिवार के भरण पोषण के लिए पलायन कर चुके हैं।
शासन-प्रशासन भी इस कारोबार संचालन में कोई सहयोग मुहैया नहीं करा रहा है। कस्बा में कुछ एक कारीगरों के दम पर कारोबार जिंदा है। जिसमें अधिकांश कारीगर तो वृद्ध हो चुके हैं। कस्बा में बनने वाले बतासा की अलग पहचान थी। इनको बनाने के लिए कस्बा में दर्जनभर से अधिक बतासा बनाने का कार्य कारीगरों द्वारा किया जाता था। जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे महंगाई और कम मजदूरी मिलने से कारोबार धीरे-धीरे लुप्त होता गया। वर्तमान में एक-दो स्थानों पर बतासा बनाने का कार्य हो रहा है। इस कार्य में लगे लोगों ने कारोबार बंदी की मुख्य वजह दिनों दिन बढ़ रही महंगाई को बताया। इस कार्य में लगे मजदूर कारीगर को उचित मजदूरी नहीं मिल पा रही है। इसमें कारीगरों को परिवार का भरण पोषण करने में दिक्कत आ रही है। कई कारीगर तो कस्बा से अन्य नगरों , महानगरों में रोजी रोटी की तलाश में पलायन कर गए हैं।
सरकार द्वारा भी लघु उद्योग के लिए कोई सहायता नहीं मिल रही है । और न ही इस कार्य की ओर किसी जनप्रतिनिधि का कोई ध्यान है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में एक कुंतल बताशा बनाने में 400 रुपये कारीगर और बतासा छुड़ाने वाले मजदूर को 2 सौ रुपए मिलते हैं ।
महंगाई को देखते हुए मजदूरी कम है। इसमें कारीगर और मजदूरों को बच्चों के भरण-पोषण में दिक्कत आ रही है । बतासा कारीगर ने बताया कि यह कार्य हमारे परिवार में कई पीढ़ियों से होता चला आ रहा है। अभी है कार्य वह स्वयं कर रहे हैं। इस कार्य को हम न करें तो उनके पास परिवार के भरण-पोषण का कोई साधन नहीं है। कारीगरों ने बताया कि 10 वर्ष पूर्व बतासा खांड से बनाया जाता था वर्तमान में खांड के स्थान पर चीनी से तैयार किया जा रहा है।

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