
यूनिक समय, नई दिल्ली। भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक धरोहर को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है। श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर में शामिल किया गया है। यह कदम भारत की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर मान्यता देने वाला एक ऐतिहासिक क्षण है। अब भारत की 14 कृतियां इस विशेष सूची का हिस्सा बन चुकी हैं।
केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने इस अवसर पर इसे भारत की सांस्कृतिक चेतना के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। उन्होंने लिखा, “श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र केवल ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि ये भारत की सोच, जीवन दृष्टि और कला के बुनियादी स्तंभ हैं। इन ग्रंथों ने भारत को दिशा दी और विश्व को आत्मा और सौंदर्य की नई दृष्टि से परिचित कराया।”
यूनेस्को के ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर में उन धरोहरों को शामिल किया जाता है, जो मानवता के इतिहास, संस्कृति और ज्ञान को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुशी जताते हुए इसे हर भारतीय के लिए गर्व का विषय बताया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल होना हमारे शाश्वत ज्ञान और सांस्कृतिक वैभव की वैश्विक पहचान है। इन ग्रंथों ने सदियों से मानवता को दिशा दी है और आज भी उनकी शिक्षाएं दुनिया को प्रेरित करती हैं।”
इससे पहले भी भारत की अन्य प्रमुख कृतियां जैसे ऋग्वेद, तवांग धर्मग्रंथ, और संत तुकाराम की अभंग रचनाएं इस सूची में शामिल हो चुकी हैं। विशेष रूप से ऋग्वेद, जो मानवता का सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ माना जाता है, 2007 में पहले ही यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर में जगह पा चुका था।
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