UP :आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा के लिए चुनौतियां भी कम नहीं है। 2014 और 2019 का प्रदर्शन अपनी जगह है। बेहतर परिणाम के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। हारी और कम अंतर से जीती 20 से ज्यादा सीटों पर लड़ाई आसान नहीं है।
विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा यूपी में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2014 में कर चुकी है। अब सभी 80 सीटें जीत पाना तो दो पत्थरों के बीच दूब उगाने जैसा होगा। हालांकि, ऐसा करिश्मा आपातकाल के बाद हुए 1977 के आम चुनाव में हो चुका है। तब जनता पार्टी उस समय की सभी 85 सीटों पर अपना परचम फहराने में कामयाब हुई थी। सियासी पंडितों का तर्क है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा 16 सीटें हार गई थी। उपचुनाव में आजमगढ़ और रामपुर दो सीटें जीतीं जरूर, लेकिन मुकाबला कड़ा रहा।
सपा के गढ़ वाली मैनपुरी और कांग्रेस का किला रही रायबरेली दो ऐसी सीटें हैं, जो भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण रही हैं। पिछले चुनाव में हारी और कड़े मुकाबले वाली 20 से ज्यादा सीटों के हालात अब भी पिछले आमचुनाव से ज्यादा भिन्न नहीं हैं। उल्टा कई सीटों पर मोदी फैक्टर की जगह प्रत्याशी फैक्टर हावी है। अब तक घोषित 63 सीटों में से करीब 10 ऐसी हैं, जहां मतदाता इस बार भाजपा से नए चेहरे की उम्मीद कर रहा था। पर, पार्टी ने ‘रामलहर’ का प्रभाव मानकर पुराने को ही उतार दिया
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