यूपी: बंद शटर के पीछे हो रहा है अवैध निर्माण का खुला ‘खेल’

मेरठ में हापुड़ अड्डा चौराहा स्थित जिस कॉम्प्लेक्स का निर्माण सरकारी जमीन और बिना मानचित्र स्वीकृति के पाये जाने पर करीब दो साल पहले ध्वस्त किया गया था, उस पर सरकारी तंत्र की साठगांठ से फिर गुपचुप तरीके से निर्माण और मरम्मत का काम शुरू हो गया है। कॉम्प्लेक्स के गेट पर शटर लगाकर उसके पीछे धड़ल्ले से निर्माण कार्य चल रहा है। सरकारी जमीन का बोर्ड भी उखाड़कर फेंक दिया है। इस मामले में फिर से प्रशासन और एमडीए की भूमिका पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
फिर शुरू हुआ निर्माण
कुछ दिन पहले अचानक रातोंरात बिल्डर ने ध्वस्त कॉम्प्लेक्स के दो मेन गेट में से एक गेट की मरम्मत कराकर वहां शटर लगवा दिया और जिला प्रशासन की जमीन का बोर्ड भी गायब करा दिया। दूसरे गेट के रास्ते पर भीतर की तरफ ईंट से अस्थायी दीवार लगाकर बाहर लकड़ी का छप्पर खड़ा कर दिया। रात में यहां निर्माण का मैटीरियल आता है, जिसे शटर खोलकर भीतर कर दिया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां तेजी से गुपचुप दुकानों की मरम्मत कर दुकानदार स्थापित किए जाने की मंशा है। अगर एक बार फिर दुकानदार स्थापित हो गए, तो उन्हें हटाना मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी इस पूरे प्रकरण में अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व के यहां सुनवाई चल रही है, जो पूरी नहीं हुई है। बिना प्रकरण निस्तारण के बिल्डर कॉम्प्लेक्स में कैसे सक्रिय हो गया, इस सवाल को लेकर जिम्मेदार अधिकारी घेरे में आते दिख रहे हैं।

हटाया सरकारी जमीन का बोर्ड
तत्कालीन मंडलायुक्त की सख्ती के चलते एमडीए और प्रशासन की टीम ने एक अगस्त 2017 को इस कॉम्प्लेक्स के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की थी। बुलडोजर से कॉम्प्लेक्स के भीतर जाने वाले दोनों रास्तों के शटर तोड़ते हुए मुख्य गेट ध्वस्त किये गये, तो कॉम्प्लेक्स के भीतर भी दुकानों के शटर आदि तोड़ते कॉम्प्लेक्स के बाहर एक बोर्ड लगा दिया गया, जिस पर लिखा था ‘यह जमीन जिला प्रशासन की है’। यह बोर्ड भी हटा दिया।

चल रही है सुनवाई
इस सरकारी जमीन के 93 कब्जेदारों को जो नोटिस दिये गये थे, उन्हें लेकर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व के यहां सुनवाई चल रही है। अब तक 52 कब्जेदार अपना पक्ष रख चुके हैं।
ये था पूरा मामला
हापुड़ अड्डा चौराहा के पास खसरा नंबर 4632 नजूल की 4930 वर्ग मीटर जमीन है। इसमें से 1675 वर्ग मीटर जमीन पर बिल्डर ने अवैध रुप से कब्जा कर 66 दुकानों के कॉम्प्लेक्स का निर्माण कर लिया। दुकानें भी बेच दी गईं। अमर उजाला ने 21 जून 2017 के अंक में समाचार प्रकाशित करते हुए पूरे मामले का खुलासा किया था। तत्कालीन मंडलायुक्त डा. प्रभात कुमार ने मामले को पूरी गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन अपर जिलाधिकारी प्रशासन सत्यप्रकाश पटेल को जांच कराकर रिपोर्ट देने के लिए कहा। तहसील प्रशासन ने अगले ही दिन 22 जून को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। रिपोर्ट में बताया गया था कि 3991.65 वर्ग मीटर जमीन पर 93 लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है। इन लोगों में यूनुस का कॉम्प्लेक्स भी शामिल है। इस रिपोर्ट के बाद 29 जून 2017 को तत्कालीन अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व ने सभी कब्जेदारों को नोटिस जारी कर उनके मालिकाना हक के संबंध में साक्ष्य प्रस्तुत करने के नोटिस जारी किये थे। वहीं एमडीए की टीम ने 4 जुलाई 2017 को कॉम्प्लेक्स में बनी 66 दुकानों को खाली कराकर सील लगा दी थी। इसी मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट सचिन सैनी ने तहसील प्रशासन की रिपोर्ट और अमर उजाला में प्रकाशित खबरों को आधार बनाते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। जिस पर हाईकोर्ट ने दो माह के भीतर जिलाधिकारी को कार्रवाई का आदेश दिया था।

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