क्या बचाया जा सकता था गांधी जी को?

30 जनवरी 1948 को ही नाथूराम गोड्से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। – फोटो : फाइल फोटो

तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के दौरान कमल हासन के बयान ने विवाद खड़ा कर दिया है। हासन ने कहा-

मैं ये इसलिए नहीं कह रहा कि यहां काफी संख्या में मुसलमान हैं। मैं ये महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने कह रहा हूं। आजाद भारत में पहला आतंकवादी एक हिंदू था। उसका नाम था- नाथूराम गोडसे

कमल हासन अरवाकुरिची विधानसभा क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे, जहां 19 मई को उपचुनाव होना है। फरवरी 2018 में मक्कल निधि मय्यम पार्टी का गठन करने वाले हासन के इस बयान ने बवाल खड़ा कर दिया है। इस दौरान हासन ने कहा है कि वो खुद को गौरवान्वित भारतीय मानते हैं जो भारत में एकता चाहता है। जो मानता है कि तिरंगे के तीन रंगों का एक मतलब हर धर्म को साथ रहने का संदेश भी है। हासन के मुताबिक वो 1948 में महात्मा गांधी की हत्या को लेकर जवाब मांगने पहुंचे हैं।

बहरहाल, कमल हासन के बयान के बाद एक बार फिर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और नाथूराम गोड्से चर्चा में है। इस साल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 71वीं पुण्यतिथि मनाई गई। 30 जनवरी 1948 को ही नाथूराम गोड्से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। माना जाता है कि गांधी जी की हत्या को लेकर उस समय सुरक्षा तंत्र अलर्ट तो था, लेकिन कहा यह भी जाता है कि केंद्र और बॉम्बे सरकार और सुरक्षा तंत्र चौकस रहा होता तो शर्तिया गांधीजी की हत्या टाली जा सकती थी।

दरअसल, आज़ादी मिलने के बाद अगस्त 1947 से जनवरी 1948 के बीच गांधीजी बहुत ज़्यादा अलोकप्रिय हो गए थे। उनके ब्रम्हचर्य के प्रयोग ने उन्हें उनके सबसे करीबी पं. जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल समेत कई लोगों के निशाने पर ला दिया था। ख़ासकर पाकिस्तान ने जब कश्मीर पर आक्रमण करवाया तो सरदार पटेल ने 12 जनवरी 1948 की सुबह इस्लामाबाद को क़रार के तहत दी जाने वाली 55 करोड़ रुपए की राशि को रोकने का फ़रमान जारी कर दिया। गांधीजी ने उसी दिन शाम को इस फ़ैसले के विरोध में आमरण अनशन शुरू करने की घोषणा कर दी। गांधीजी के दबाव के चलते दो दिन बाद भारत ने पाक को 55 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया। इससे पूरा देश गांधीजी से नाराज़ हो गया था।

गांधी जी की कम होने लगी थी लोकप्रियता

1946-48 के आसपास लोग मानने लगे थे कि अगर गांधीजी अनावश्यक ज़िद न करते तो बात इतनी न बिगड़ती और मुल्क के विभाजन की नौबत न आती।

1946-48 के आसपास लोग मानने लगे थे कि अगर गांधीजी अनावश्यक ज़िद न करते तो बात इतनी न बिगड़ती और मुल्क के विभाजन की नौबत न आती। – फोटो : फाइल फोटो

इसके अलावा देश के बंटवारे के समय हर जगह व्यापक पैमाने पर मारकाट मची थी। लोग संपत्ति ही नहीं अपनों को खो रहे थे। अपना घर बार, अपने जीवन भर की कमाई छोड़कर सुरक्षित जगह पलायन करने को मजबूर थे। एक बड़ा तबक़ा खासकर पंजाब (पाकिस्तान) और सिंध के विस्थापित लोग गांधी जी से नफ़रत करने लगे थे।

विभाजन की त्रासदी झेलने वाला सिंधी और पंजाबी समुदाय का हर व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर कहता था कि वह गांधीजी को गोली मार देगा। उस समय के अखबार, मीडिया और दस्तावेज कहते हैं कि लोगों में आक्रोश उनकी तुष्टीकरण नीति के कारण पनपा था। लोग मानने लगे थे कि गांधीजी की अहिंसा अव्यवहारिक है, क्योंकि इस अहिंसा के चलते अखंड भारत के 30 लाख नागरिक मारे गए और कई लाख लोगों का जमाया हुआ कारोबार नष्ट हो गया जिससे करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए थे।

विभाजन का कारण मानते थे गांधी जी को? 
ज़्यादातर लोग मानते थे कि गांधीजी की तुष्टीकरण नीति के चलते ही भारत का दो देश में विभाजन हो गया। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना भी गांधीजी की तुष्टीकरण नीति की मुख़ालफ़त करते थे। लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि जिन्ना हैरान थे कि मुसलमानों की हर छोटी बड़ी समस्या में गांधीजी क्यों इतनी ज़्यादा दिलचस्पी लेते हैं।

दरअसल, गांधीजी ने जब ख़िलाफ़त आंदोलन (1919-1922) शुरू किया तो जिन्ना अचरज में पड़ गए, क्योंकि उसका संबंध भारतीय मुसलमानों से था ही नहीं। वह तुर्की का मामला था। अली बंधुओं समेत कई मुसलमान उस समय उस आंदोलन को हवा दे रहे थे। जबकि तब मुसलमानों की और भी समस्याएं थी, जो ख़िलाफ़त आंदोलन से ज़्यादा महत्वपूर्ण थीं और जिन्हें तत्काल हल करने की ज़रूरत थी। लेकिन गांधीजी हमेशा अपनी बात को ही सच मानते थे और अपने आगे किसी की भी नहीं सुनते थे। बहरहाल, सन् 1946-48 के आसपास लोग मानने लगे थे कि अगर गांधीजी अनावश्यक ज़िद न करते तो बात इतनी न बिगड़ती और मुल्क के विभाजन की नौबत न आती।

कैसे हुई गांधी जी की हत्या?

गांधी हत्याकांड की सुनवाई लालकिले में बनाई गई एक विशेष अदालत में हुई।

गांधी हत्याकांड की सुनवाई लालकिले में बनाई गई एक विशेष अदालत में हुई। – फोटो : फाइल फोटो

बहरहाल, गांधीजी के आमरण अनशन की ख़बर एजेंसी के ज़रिए 12 जनवरी की शाम पुणे से प्रकाशित अख़बार ‘हिंदूराष्ट्र’ के दफ्तर में पहुंची। नारायण आप्टे ऊर्फ नाना अख़बार का प्रकाशक और नाथूराम गोडसे संपादक थे। संभवतः उसी समय नाथूराम ने गांधीजी की हत्या करने का निश्चय कर लिया। क्योंकि अगले दो दिन उसने 3-3 हज़ार रुपए की दो बीमा पालिसीज़ का नॉमिनी अपने जिगरी दोस्त नारायण आप्टे उर्फ नाना, जिसे गांधीजी की हत्या की साज़िश में शामिल होने के आरोप में फांसी दे दी गई, की पत्नी चंपूताई आप्टे और छोटे भाई गोपाल गोडसे की पत्नी सिंधुताई गोडसे को बना दिया। यही बात नाना आप्टे और गोपाल के ख़िलाफ़ गई और दोनों गांधी की हत्या में फंस गए।

क्यों नहीं बढ़ाई गई बापू की सुरक्षा? जबकि एक हमला हो चुका था 
गांधीजी से लोग इस कदर चिढ़े हुए कि यह पता चलने के बाद भी कि उनकी हत्या होने वाली है, उनकी सुरक्षा चाक-चौबंद नहीं की गई और इसका नतीजा यह हुआ कि जिस बिडला हाउस में उनकी हत्या की कोशिश की गई थी, उसी जगह दस दिन बाद हत्या कर दी गई। दरअसल, देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से विस्थापित होने वाला मदनलाल पाहवा, जिसे गांधी हत्याकांड में आजीवन कारावास हुई थी, गांधीजी के ख़ून का प्यासा हो गया था। उसने 20 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस परिसर में गांधीजी के सभा स्थल के पास बम फोड़ा और घटनास्थल पर ही पकड़ा गया। दुर्भाग्य से उसी बिड़ला हाऊस में 30 जनवरी शाम गांधीजी के सीने में तीन गोलियां उतार कर नाथूराम गोडसे ने उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी।

गांधी जी की हत्या की सुनवाई 
गांधी हत्याकांड की सुनवाई लालकिले में बनाई गई एक विशेष अदालत में हुई। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से एमए और बंबई यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर चुके माटुंगा के रामनारायण रूइया कॉलेज में हिंदी भाषा पढ़ाने वाले डॉ. जगदीश जैन गांधी हत्याकांड के मुक़दमे में प्रमुख गवाह थे। उनकी गवाही 4 व 5 अगस्त 1948 को हुई।

जैन ने अदालत को बताया, “मदनलाल पाहवा, जिसे बाद में हत्याकांड के षड़यंत्र में शामिल पाया गया और आजीवन कारावास की सज़ा हुई, 7 जनवरी 1948 को मेरे घर आया और बताया कि कुछ लोगों के साथ मिलकर वह गांधीजी की हत्या करने वाला है। मैंने उसकी बात को ज़्यादा अहमियत नहीं दी, क्योंकि उस समय हर सिंधी-पंजाबी गांधीजी की हत्या की बात करता था। लेकिन तीन दिन बाद जब मदनलाल फिर मुझसे मिला और बताया कि उसे गांधीजी की सभा में विस्फोट करने का काम सौंपा गया है, ताकि उनकी हत्या की जा सके। यह सुनकर मैं परेशान हो उठा।”
जैन ने कोर्ट को आगे बताया– “15 जनवरी को मदनलाल दिल्ली चला गया। 17 जनवरी को जेवियर कॉलेज में जयप्रकाश नारायण का भाषण हुआ। मैं उनसे मिलकर साज़िश के बारे में बताने की चेष्टा की, लेकिन उनके आसपास बहुत भीड़ होने से पूरी बात नहीं बता पाया, पर दिल्ली में गांधीजी की हत्या की साज़िश की संभावना से उन्हें अवगत करा दिया था। जब मैंने 21 जनवरी की सुबह अख़बारों में बिड़ला भवन में बम विस्फोट और मदनलाल की गिरफ़्तारी की ख़बर पढ़ी तो मेरे पांव तले ज़मीन खिसक गई। मैंने टेलीफोन पर सरदार पटेल को बताना चाहा, पर असफल रहा। कांग्रेस नेता एसके पाटिल से मिलने की कोशिश की, पर उनसे भी नहीं मिल सका। 22 जनवरी को शाम 4 बजे मुख्यमंत्री बीजी खेर से सचिवालय में मिला। तब गृहमंत्री मोरारजी देसाई भी मौजूद थे। मैंने मदनलाल की सारी बातें उन दोनों को बता दी।”

मोरारजी देसाई की गवाही

गांधी हत्याकांड में मोरारजी देसाई की गवाही 23, 24 व 25 अगस्त 1048 को हुई।

गांधी हत्याकांड में मोरारजी देसाई की गवाही 23, 24 व 25 अगस्त 1048 को हुई। – फोटो : फाइल फोटो

बहारहाल, गांधी हत्याकांड में मोरारजी देसाई की गवाही 23, 24 व 25 अगस्त 1048 को हुई। जैन के वक्तव्य की पुष्टि करते हुए उन्होंने कहा, “22 जनवरी 1948 को ही अहमदाबाद जाने से पहले मैंने डिप्टी पुलिस कमिश्नर जमशेद दोराब नागरवाला को रात 8 बजे बॉम्बे सेंट्रल रेलवे स्टेशन बुलाया और विष्णु करकरे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया। यह सूचना मैंने मुंबई के तत्कालीन (पहले भारतीय) पुलिस कमिश्नर जेएस भरुचा को भी दे दी थी। दूसरे दिन 23 जनवरी को सुबह सरदार पटेल से मिला और उन्हें भी सारी जानकारी दे दी और बता दिया कि करकरे को गिरफ़्तार करने का आदेश दे दिया गया है।”

सुरक्षा के बीच हत्या? आखिर क्या लिखा जज ने फैसले में
कहने का मतलब गांधीजी की हत्या की साज़िश रची गई है यह जानकारी सरदार पटेल, जयप्रकाश नारायण, बीजी खेर और मोरारजी देसाई जैसे नेताओं के अलावा गांधी हत्याकांड की जांच करने वाले जेडी नागरवाला और दिल्ली पुलिस कमिश्नर डीडब्ल्यू मेहरा और डिप्टी सुपरिंटेंडेंट जसवंत सिंह को भी थी। इसके बावजूद बिड़ला हाऊस की सुरक्षा शिथिल रही।

इसीलिए जज आत्माराम ने अपने फ़ैसले में लिखा, “20 से 30 जनवरी 1948 तक पुलिस की जांच पड़ताल में शिथिलता को मुझे सरकार के संज्ञान में लानी है। 20 जनवरी को मदनलाल की गिरफ्तारी के बाद उसका ब्यौरा पुलिस ने प्राप्त कर लिया था और जैन से गृहमंत्री मोरारजी देसाई और पुलिस को सूचना मिल चुकी थी। खेद की बात है कि अगर बंबई और दिल्ली की पुलिस ने तत्परता दिखाई होती और जांच पड़ताल में शिथिलता नहीं बरती होती तो कदाचित गांधीजी की हत्या की दुखद घटना टाली जा सकती थी।”

क्या कहा था  नाथूराम गोड्से ने गवाही में 
बहरहाल, नाथूराम ने एक बार जेल में ही गांधी-हत्या का ज़िक्र करते हुए गोपाल गोडसे को बताया था, “30 जनवरी को मैंने छह गोलियों से लोड अपने रिवॉल्वर को लेकर बिड़ला हाऊस में शाम 4.55 बजे प्रवेश किया। रक्षकों ने मेरी तलाशी नहीं ली। 5.10 बजे गांधीजी मनु गांधी और आभा गांधी के कंधे पर हाथ रखे बाहर निकले। जैसे ही मेरे सामने आए सबसे पहले मैंने देश की शानदार और महान सेवा के लिए उनका ‘नमस्ते’ कहकर उनका अभिवादन किया और देश का नुकसान करने के लिए उन्हें ख़त्म करने के उद्देश्य से दोनों कन्याओं को उनसे दूर किया और फिर 5.17 बजे 3 गोलियां गांधीजी के सीने में उतार दी।”

शाम 5:45 बजे आकाशवाणी ने गांधी के निधन की सूचना

शाम 5:45 बजे आकाशवाणी ने गांधी के निधन की सूचना – फोटो : फाइल फोटो

नाथूराम ने आगे बताया– “दरअसल, मेरी गोली जैसे ही चली, गांधीजी के साथ चल रहे 10-12 लोग दूर भाग गए। मुझे लगा था कि जैसे ही मैं गांधीजी को मारूंगा, मेरी हत्या कर दी जाएगी, लेकिन सब लोग आतंकित होकर दूर भाग गए। मैंने गांधीजी की हत्या करने के बाद रिवॉल्वर समेत हाथ ऊपर उठा लिया। मैं चाहते था, कोई मुझे गिरफ़्तार कर ले। लेकिन कोई मेरे पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। मैं पुलिस-पुलिस चिल्लाया। फिर मैंने एक सिपाही को आंखों से संकेत किया कि मेरी रिवॉल्वर ले लो। उसे विश्वास हो गया कि मैं उसे नहीं मारूंगा और वह हिम्मत जुटाकर मेरे पास आया और मेरा हाथ पकड़ लिया। इसके बाद लोग मुझ पर टूट पड़े और मुझे मारने लगे।” 

बहारहाल, डीएसपी जसवंत सिंह के आदेश पर दसवंत सिंह और कुछ पुलिस वाले नाथूराम को तुगलक रोड थाने ले गए। रात को क़रीब पौने दस बजे बापू की हत्या की एफ़आईआर लिखी गई। इसे थाने के दीवान-मुंशी दीवान डालू राम ने लिखा था।

गांधी जी के निधन की सूचना 
जब शाम 5:45 बजे आकाशवाणी ने गांधी के निधन की सूचना दी और कहा कि नाथूराम गोडसे नाम के व्यक्ति ने उनकी हत्या की तो सारा देश हैरान रह गया कि मराठी युवक ने यह काम क्यों किया, क्योंकि लोगों को आशंका थी कि कोई पंजाबी या सिंधी व्यक्ति गांधीजी की हत्या कर सकता है।

बहरहाल, गांधीजी हत्या में नाथूराम के अलावा नारायाण आप्टे, मदनलाल पाहवा, गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, विनायक सावरकर, शंकर किस्तैया और दिगंबर बड़गे गिरफ्तार कर लिए गए। बाद में और दिगंबर बड़गे वादा माफ़ सरकारी गवाह बन गए। उनकी गवाही को आधार बनाकर नाथूराम और नाना की फ़ांसी दी गई। इस केस के सबसे चर्चित आरोपी सावरकर को अदालत ने बरी कर दिया।

नोटः  लेख में शामिल तथ्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दुखद हत्या के बाद मुख्य गवाह एससी जैन की किताब- Gandhi : The Forgotten Mahatma by SC Jain (who was one of the main witness) और गांधी जी की हत्या के आरोपी नाथूराम गोड्से की मराठी किताब Gandhi Vadh aani me (गांधीवध और मैं -गोपाल गोडसे) से लिए गए हैं। दोनों ही किताबों में हत्याकांड की सुनवाई पर बनी फाइल का जिक्र है इसके अलावा लेख को गांधी हत्याकांड से संबंधित अन्य दस्तावेजों के आधार पर भी वरिष्ठ पत्रकार हरगोविंद विश्वकर्मा ने तैयार किया है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।आप भी अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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