नई दिल्ली। मतों की गिनती में अब सिर्फ दो दिनों का वक़्त बचा है. इस बार के आम चुनावों में मतों की गिनती से पहले जहां चुनाव आयोग ने पुख्ता तैयारियां कर रखी हैं. उधर मतों की गिनती के केंद्र में इस बार वीवीपैट मशीनों की चर्चा भी है. दरअसल इस बार चुनाव आयोग ने वोटिंग मशीनों के साथ वीवीपैट मशीनों की व्यवस्था की थी जिसमें मतदाता वोट डालने के बाद एक पर्ची पर देख सकते थे कि उनका वोट सही उम्मीदवार को गया है या नहीं. इस पर्ची को पेपर ऑडिट ट्रेल भी कहा जाता है.
इन वीवीपैट मशीन की पर्चियों का इस्तेमाल ईवीएम के वोटों के आंकड़ों से मिलान के लिए भी किया जाएगा. शुरुआत में चुनाव आयोग ने हर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र से केवल एक वीवीपैट के मतों का ही ईवीएम से मिलान करने को कह रहा था. हालांकि विपक्षी पार्टियों की मांग थी कि कम से कम 50 फीसदी वीपीपैट मशीनों और ईवीएम के मतों का मिलान किया जाना चाहिए. अगर चुनाव आयोग इन पार्टियों की गुजारिश मान लेता तो औसतन उसे हर सीट पर 125 ईवीएम मशीनों के मतों का मिलान वीवीपैट मशीन के मतों से करना पड़ता.
द हिंदू अख़बार के राष्ट्रीय संपादक श्रीनिवास रमानी मानते हैं कि विपक्षी दलों की 50 फीसदी ईवीएम और वीवीपैट की गिनती एक रैंडम तरीके से की गई मांग थी. हालांकि अगर चुनाव आयोग पूरे देश को मिलाकर 750 से 1000 ईवीएम और वीवीपैट के मतों का मिलान कर देता है, तब भी इस व्यवस्था की सटीकता पर लोगों को विश्वास हो जाएगा. अभी जिस प्रक्रिया का पालन किया जाना है उससे लोकसभा के मामले में पूरे देश में करीब 2710 ईवीएम और वीवीपैट मशीनों के मतों का मिलान किया जाएगा. यह कुल ईवीएम और वीवीपैट मशीनों का 2 फीसदी होगा.
इस मामले में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को अपने जवाब के बारे में बताया था कि अगर चुनाव आयोग विपक्षी पार्टियों की मांग मानते हुए 50% वीवीपैट मशीन के मतों का ईवीएम के मतों से मिलान करे तो उसे चुनावों के नतीजे घोषित करने में 6 दिन की देरी होगी.
जिसके बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी दलों की एक याचिका पर सुनवाई की और निर्देश दिए कि हर लोकसभा क्षेत्र में कम से कम 5 EVM मशीनों के मतों का वीवीपैट के मतों से मिलान किया जाना चाहिए.
हालांकि इस मामले में फिर से विपक्षी दलों ने एक रिव्यू याचिका दाखिल की थी. विपक्षी दलों की मांग थी कि चुनाव आयोग कम से कम 25% या 33% ईवीएम और वीवीपैट मशीन के मतों का मिलान करे. हालांकि इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. रमानी मानते हैं कि ईवीएम और वीवीपैट में कोई गड़बड़ी न हो यह सुनिश्चित करने के दूसरे रास्ते भी हो सकते हैं. इसके लिए यह किया जा सकता है कि जिन सीटों पर जीतने वाले और दूसरे नंबर पर आने वाले उम्मीदवारों के बीच मतों का अंतर 1% से कम हो, उन सीटों पर ईवीएम और वीवीपैट मशीनों के मतों को आपस में मिलाया जा सकता है ताकि किसी प्रकार की गड़बड़ी की गुंजाइश न रह जाए.
रमानी का यह भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के 5 ईवीएम और वीवीपैट मशीनों के मतों के आपस में मिलान के आदेश के बाद किसी प्रकार की गड़बड़ी की आशंका बहुत कम हो गई है.श्रीनिवास रमानी का यह भी मानना है कि विपक्षी पार्टियों को इससे ज्यादा अब दूसरे चुनाव सुधारों पर ध्यान देना चाहिए. जैसे मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन में अब भी बहुत समस्याएं आती हैं और आज भी बहुत से ऐसे वोटर हैं, जिनका नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं हो सका है. बल्कि इन सबसे इतर सबसे जरूरी मुद्दा है चुनावी आचार संहिता को ठीक से लागू कराया जाना और इसे ठीक से लागू कराए जाने के लिए विपक्षी नेताओं को चुनाव आयोग पर दबाव बनाना चाहिए.
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