क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है आखिरकार पूजा-पाठ के बाद देवी-देवताओं की मूर्ति की परिक्रमा क्यों लगाई जाती है?
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा और मंत्रों के जाप करने से जीवन में शांति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मंदिर में पूजा-पाठ के कई तरह के नियम होते हैं जिसमें भगवान के दर्शन करने के बाद परिक्रमा भी लगाई जाती है। क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है आखिरकार पूजा-पाठ के बाद देवी-देवताओं की मूर्ति की परिक्रमा क्यों लगाई जाती है? आइए जानते हैं मंदिर में भगवान की पूजा-पाठ और साधना के बाद देव मूर्तियों की परिक्रमा करने से बारे में क्या कहते हैं शास्त्र…
इसलिए लगते हैं भगवान की परिक्रमा
परिक्रमा के नियम
परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। हम अपने इष्ट देवी-देवता की मूर्ति की, विविध शक्तियों की प्रभा या तेज को परिक्रमा करके प्राप्त कर सकते हैं। उनका यह तेजदान विघ्नों,संकटों,विपत्तियों का नाश करने में समर्थ होता है।
किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए
शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग-अलग संख्या तय की गई है।
महिलाओं द्वारा वटवृक्ष,पीपल एवं तुलसी की एक या अधिक परिक्रमा करना सौभाग्य प्रदान करता है।
शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है। लेकिन ध्यान रहे भगवान शिव की परिक्रमा करते समय जलहरी की धार को न लांघे।
देवी दुर्गा मां की एक परिक्रमा करते समय नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है।
गणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है।
श्री विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए ।
सूर्य को अर्घ्य देकर “ॐ भास्कराय नमः” का जाप कई रोगों का
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