यूनिक समय, वृंदावन (मथुरा)। कात्यायनी सिद्ध पीठ के शताब्दी समारोह से वृन्दावन का कोना-कोना भक्ति रस से सराबोर हो गया है। दो दर्जन से अधिक विदेशी भक्तों ने यज्ञ में आहुतियां दी । सभी विदेशी भक्त अमेरिका के मूल निवासी हैं। आचार्य मनीष शुक्ला ने वैदिक मंत्रों के मध्य सभी विदेशी भक्तों से यज्ञ में आहुतियां दिलाई एवं सभी को देवी का आशीर्वाद दिया ।
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार देवी भागवत पुराण में 108, कलिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51 , दुर्गा सप्तसती और तंत्र चूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है किंतु सामान्यतया 51 शक्तिपीठ ही माने जाते हैं। ब्रहृम वैवर्त पुराण, आद्या स्त्रोत एवं आर्यशास़्त्र में वृन्दावन की कात्यायनी शक्ति पीठ का वर्णन मिलता है।
शक्ति पीठ के बारे में कात्यायनी ट्रस्ट के सचिव रवि दयाल ने बताया कि महादेव शिवजी की पत्नी सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान बर्दास्त नही कर पाईं तो वे उसी यज्ञ के हवनकुण्ड में कूदकर भष्म हो गईं। सती के भष्म होने का पता चलने पर भोलेनाथ ने अपने गण वीरभद्र को भेजकर न केवल यज्ञस्थल को उजड़वा दिया बल्कि राजा दक्ष का सिर भी काट दिया गया। इसके बाद शिवजी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए चारों ओर घूमने लगे, जहां जहां माता के केश या आभूषण गिरे वे शक्तिपीठ बन गए। जिस स्थान पर आज कात्यायनी पीठ है। वहां पर भी माता के केश गिरे थे। इसलिए कात्यायनी शक्ति पीठ की गणन 51 शक्ति पीठों में होती है। यह भी कहा जाता है कि कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रज की गोपियों ने राधाबाग में कात्यायनी देवी का पूजन किया था ।
शतचंडी यज्ञ में भाग लेते विदेशी भक्त।
उन्होंने बताया कि सिद्ध संत श्यामाचरण लाहिड़ी महराज के शिष्य योगी स्वामी केशवानन्द ब्रह्चारी महराज ने अपनी कठोर साधना तथा भगवती के आदेशानुसार वृृन्दावन के राधाबाग क्षेत्र में कात्यायनी मन्दिर को बनवाया था तथा मन्दिर एक फरवरी 1923 को बनकर तैयार हुआ था। इस मन्दिर का विग्रह सिद्ध है। इसी कारण ब्रजवासियों का इस मन्दिर में आगमन अनवरत होता रहता है।
मां कात्यायनी मंदिर के शताब्दी समारोह में प्रसाद ग्रहण करते विदेशी भक्त।
ट्रस्ट के पूर्व सचिव नरेश दयाल ने बताया इस मन्दिर की गणपति महराज की मूर्ति अंग्रेज डब्ल्यू आर यूल की पत्नी द्वारा लंदन ले जाई गई किंतु मूर्ति का कुछ अंग्रेजों द्वारा यूल की पत्नी के घर में खिल्ली उड़ाने और उनके द्वारा इसका प्रतिरोध न करने पर मूर्ति ने अपना असर दिखाया और उसकी बेटी को उसी रात न केवल तेज बुखार हुआ बल्कि उसके ठीक होने के लाले पड़े तो उसने मूर्ति को वापस भारत भेज दिया। स्वामी केशवानन्द ब्रह्चारी महराज इसे कलकत्ता से वृन्दावन लाए तथा इसकी प्राण प्रतिष्ठा मन्दिर में कर दी। इस विग्रह के भी चमत्कार आये दिन सुनने और देखने को उसी प्रकार मिलते हैं, जिस प्रकार अष्टधातु की कात्यायनी देवी के देखने और सुनने को मिलते हैं।
वैसे तो शताब्दी समारोह के अन्तर्गत वर्ष पर्यन्त धार्मिक कार्यों का आयोजन किया जाएगा किंतु 29 जनवरी को प्रारंभ हुए प्रथम चरण के कार्यक्रम में वर्तमान में नित्य सिद्धपीठ की विशेष पूजा के साथ साथ श्रीमदभागवत ज्ञान यज्ञ ब्रज संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान एवं राधारमण मन्दिर के सेवायत आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी द्वारा किया जा रहा है इस ज्ञान यज्ञ में भाग लेने के लिए रोज न केवल समूचा वृन्दावन उमड़ता है बल्कि वृन्दावन आने वाले तीर्थयात्री इस सिद्ध पीठ की ओर चुम्बक की तरह खिंचे चले आ रहे हैं।
Leave a Reply