दक्षिणी नेपाल के बैरियापुर गांव में गढ़ीमाई मंदिर स्थित है जहां हर पांच साल में एक मेले का आयोजन किया जाता है । इस मेले में हजारों पशुओं की बलि दी जाती है । ये मेला दो दिन तक चलता है जिसमें निरंतर पशु काटने का क्रम लगातार चलता रहता है । दो ही दिन में ये मेला दुनिया का सबसे बड़ा बूचड़खाना बन गया है ।
दक्षिणी नेपाल – काठमांडू से 100 किमी दूर बैरियापुर में स्थित गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल के बाद पशुओं का सामूहिक वध किया जाता है। 2009 के बाद से हालांकि मंदिर के संचालकों पर पशु बलिदान पर प्रतिबंध लगाने का दबाव बढ़ा है। यह उत्सव शक्ति की देवी गढ़ीमाई के सम्मान में आयोजित होता है। इसमें नेपाल के साथ ही भारत से भी लाखों लोग भाग लेते हैं। हजारों लोग पहले से ही मंदिर परिसर में अपने-अपने पशुओं की बलि देने के लिए पहुंच जाते हैं।
अगस्त 2016 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को गढ़ीमाई मंदिर मेले में पशु बलि रोकने का निर्देश दिया था। इसके जवाब में गढ़ीमाई पंचवर्षीय महोत्सव की मुख्य समिति ने कहा कि वह अदालत के आदेश का पालन करेगी और उन्होंने इस साल कबूतरों को नहीं मारने का फैसला किया।
पिछले उत्सव में मंदिर के मेले में हजारों अन्य जानवरों के साथ लगभग 10,000 भैंसों का वध हुआ था। इस तरह से यह जगह इतनी बड़ी संख्या में जानवरों के वध का दुनिया का सबसे बड़ा स्थल बन जाता है। हिमालयन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, यहां पत्रकारों और जनता को प्रवेश करने या फोटो लेने की अनुमति नहीं है।
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