राष्ट्रपति चुनाव: भाजपा फिर फंसी 13 नंबर के फेर में, अब तीन मुख्यमंत्री तय करेंगे महामहिम तेरा या मेरा

जैसा कि भाजपा के साथ इतिहास में होता आया है, राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी वो ’13’ के अंक में फंस गई है। ‘अपने-अपने महामहिम’ के लिए पक्ष-विपक्ष की बीच जारी रस्साकशी में तीन राज्यों के मुख्यमंत्री किंगमेकर की भूमिका में हैं। भले ही भाजपा के लिए यह राह बहुत मुश्किल नहीं है, लेकिन विपक्ष अपनी तरफ से रोड़े बिछाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। खासकर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस युद्धस्तर से विपक्ष को एक छत्र तले लाकर भाजपा को चुनौती देने में लगी हैं, उसने मुकाबला थोड़ा-सा दिलचस्प बना दिया है। बता दें कि मानसून सत्र (Parliament Monsoon session 2022) 18 जुलाई से संभावित है। इसी दिन देश के नए राष्ट्रपति का भी चुनाव होना है। मानसून सत्र 12 अगस्त तक चलेगा। लिहाजा यह सत्र काफी हंगामेदार होने की संभावना है। राष्ट्रपति का चुनाव 18 जुलाई को होगा। 21 जुलाई को रिजल्ट आएगा।

भाजपा के लिए 13 का अंक शुभ और अशुभ दोनों ही रहा है। अकसर यह अंक किसी न किसी तरह से भाजपा के सामने आकर खड़ा हो जाता है। 1996 में अटल बिहार वाजपेयी की सरकार महज 13 दिन चल पाई थी। इसके बाद 1998 में AIADM की चीफ जयललिता की पेंचीदा शर्तों के चलते वाजपेयी सरकार फिर 13 महीने में ही गिर गई थी। 13 अंकों का यह इतिहास फिर से दुहराया जा रहा है। अगर 13 के अंक को लेकर मध्य प्रदेश का उदाहरण दें, तो 2018 के विधानसभा चुनावों के नतीजों में भाजपा को 230 में से 109 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 114 सीटें। इस तरह तेरह साल और तेरह दिनों के अपने कार्यकाल के बाद शिवराज को इस्तीफा देना पड़ा था।

बहरहाल, राष्ट्रपति चुनाव के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों के पास पर्याप्त वोट नहीं है। ऐसे में दोनों की उम्मीदें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर टिकी हैं। इनके बिना UPA और NDA की राह मुश्किल है। हालांकि इन तीनों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन ममता बनर्जी ने 15 जून को गैर बीजेपी दलों की बैठक बुलाई थी, इसमें TRS नहीं आई थी। तेलंगाना के मुख्यमंत्री और TRS चीफ के. चंद्रशेखर राव ने कांग्रेस को बुलाए जाने पर आपत्ति लेते हुए कहा था कि कांग्रेस के साथ मंच शेयर करने का सवाल ही नहीं उठता है।

खैर, NDA को बहुमत के लिए 13 हजार वोट और जुटाने होंगे। यानी यहां भी पेंच 13 पर आकर फंसा है। अगर जगमोहन रेड्डी और नवीन पटनायक में से किसी एक का भी सपोर्ट NDA को मिलता है, तो उसकी जीत तय। बता दें कि 2012, 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में भी नवीन पटनायक की डिमांड थी। इस समय उनके पास 30 हजार से ज्यादा वोट हैं। 2012 के चुनाव में नवीन पटनायक कहने पर NDA ने पीए संगमा को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन संगमा को UPA उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी ने हरा दिया था। 2017 में नवीन पटनायक ने रामनाथ कोविंद को सपोर्ट दिया। यानी हिसाब बराबर। अब नया खाता खुलेगा। अगर बात आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्‌डी की करें, तो। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पास 40 हजार से ज्यादा वोट हैं। रेड्डी का झुकाव NDA की तरफ है। लेकिन पत्ते खुलना बाकी हैं।

राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए 5,49,452 वोट चाहिए
कुल वोट वैल्यू 10,98,903 है
NDA के पास करीब 5.45 लाख वोट हैं
UPA के पास करीब 2.60 लाख वोट हैं
अन्य दलों के पास करीब 2.93 वोट हैं
2017 में BJP के साथ शिवसेना और अकाली दल थे, इस बार वे विरोधी हैं
तमिलनाडु में AIDMK सत्ता खो चुकी है
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में BJP सत्ता से बाहर है
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में BJP के विधायकों की घट गई है
2017 में 21 राज्यों में NDA की सरकार थी, लेकिन अब सिर्फ 17 राज्यों में है
भाजपा के खाते से महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखंड भी जा चुका है

केंद्र सरकार राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की कोशिश कर रही है। इस संबंध में बुधवार को केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से बात की। लेकिन इसी बीच यानी 15 जून को ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आह्वान पर 17 विपक्षी दलों की बैठक हुई। बैठक में यह फैसला लिया गया कि विपक्ष की ओर से आम सहमति से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार उतारा जाएगा। एनसीपी प्रमुख शरद पवार को चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं अभी सक्रिय राजनीति में हूं, इसलिए राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ना चाहता। विपक्ष ने अब अपनी तरफ से फारूक अब्दुल्ला या गोपालकृष्ण गांधी के नाम का सुझाव दिया है। खैर, बहुत जल्द पार्टियां अपने पत्ते खोलना शुरू करेंगी।

 

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