पीएम मोदी ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे से जुड़ी कुछ अहम जानकारी शेयर की है। इसमें उन्होंने बताया है कि 22 जुलाई का हमारे इतिहास में विशेष महत्व है। 1947 में आज ही के दिन हमारे राष्ट्रीय ध्वज को अंगीकार किया गया था। बता दें कि इस साल हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस दौरान केंद्र सरकार 13 से 15 अगस्त के बीच तीन दिन देशव्यापी ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चलाने जा रही है। हर घर तिरंगा अभियान का मकसद देश के हरेक नागरिक के दिल में देशभक्ति का भाव जगाना है। हमारे राष्ट्रध्वज तिरंगा के लिए आखिर किसने झंडा गीत लिखा था, जिसे 1924 में पहली बार जवाहर लाल नेहरू ने कानपुर के फूलबाग में सामूहिक गान कराकर विश्व विजेता भारत की परिकल्पना आमजन के सामने रखी थी।
झंडा गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्ता (पार्षद) हैं। उन्होंने यह गीत जेल के अन्दर लिखा था। श्याम लाल गुप्ता (पार्षद) ने पहली बार ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ गीत की पंक्तियां 1924 में जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर कानपुर के फूलबाग मैदान में पंडित जवाहर लाल नेहरु के सामने गाईं थीं। जब यह गीत पंडित जवाहर लाल नेहरु ने सुना तो उन्हें गले से लगा लिया था। तब उन्होंने कहा था कि यह गीत अमर रहेगा। आजादी के बाद इस गीत को लाल किले से भी गाया गया था और इस गीत को ‘झंडा गीत’ कहा गया।
दरअसल, श्याम लाल गुप्ता 1919 में अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से बेहद आहत थे। उस वक्त देश के लिए बलिदान हुए लोगों की याद में उन्होंने झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत लिखा था।
इतिहासकार डॉ.ओमप्रकाश अवस्थी के मुताबिक 1923 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने श्यामलाल गुप्ता को झंडा गीत लिखने के लिए प्रेरित किया। जब झंडा गीत लिखने में हो रही देरी को लेकर विद्यार्थी जी ने टोका तो श्यामलाल गुप्ता दो दिन तक सोए ही नहीं। इसके बाद उन्होंने 3 मार्च 1924 को इस गीत की रचना की। बाद में गणेश शंकर विद्यार्थी ने इस गीत में कुछ संशोधन भी कराया था।
श्यामलाल लाल गुप्ता का जन्म कानपुर के नरवल गांव में 9 सितम्बर 1896 को हुआ था। वे बहुत ही साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे। बचपन से ही उनका लगाव साहित्य की ओर था। इसके साथ ही उनके अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। यही वजह थी कि देश की आजादी के लिए उन्होंने 1921 में संकल्प लिया था कि जब तक हमें आजादी नहीं मिल जाएगी, वो नंगे पैर ही रहेंगे।
कानपुर के रहने वाले श्याम लाल गुप्ता ने आजादी की लड़ाई में फतेहपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया। गणेश शंकर विद्यार्थी व प्रताप नारायण मिश्र के साथ मिलकर वे भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल हुए थे। वो 19 साल तक फतेहपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 19 अगस्त सन 1972 को उन्हें अभिनंदन व ताम्रपत्र दिया गया। इसके साथ ही 26 जनवरी, 1973 को उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 4 अगस्त 1997 को पार्षद जी के नाम डाक टिकट जारी किया गया।
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