साड़ी के बजाए अधिकांश कारखानों में होरही है ‘तिरंगों’ की छपाई
गिरधारी लाल श्रोत्रिय
यूनिक समय, मथुरा। स्वतंत्रता की 75वीं जयंती पर सरकार द्वारा ‘हर घर तिरंगा’ कार्यक्रम की घोषणा ने जहां आम जनता में देश भावना का अनोखा संचार किया है, वहीं मथुरा के साड़ी उद्योग के लिए यह कार्यक्रम रोजगार का एक नया मौका लेकर आया है। जिससे दम तोड़ रहे साड़ी कारखानों और उनके कारीगरों को यह संजीवनी के समान महसूस हो रहा है। जनपद के कम से कम साढ़े तीन दर्जन कारखानों को ढाई करोड़ से अधिक झण्डे बनाने का आॅर्डर मिलने से उन्हें ‘आॅक्सीजन’ मिलती प्रतीत हो रही है।
पिछले दो दशक से जल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बना यह उद्योग ठप होकर रह गया है। कई बड़े साड़ी कारखानों के मालिक दूसरों के द्वारा बनाई साड़ियां बेचने के लिए मजबूर हो गए हैं। उनके कारखाने ठप हो गए हैं, और कारीगर बेरोजगार। लेकिन अब करोड़ झण्डों की छपाई का काम निकल आने से ठप हो चुके कारखानेदारों में भी कुछ जान पड़ गई है। वे अब साड़ी छपाई न कर तिरंगा झंडा छाप रहे हैं। ‘हर घर तिरंगा’ कार्यक्रम 11 से 17 अगस्त तक आयोजित किया जाएगा। राज्य के प्रत्येक जिले को पांच से 10 लाख तिरंगे झंडे की आवश्यकता है। इतनी बड़ी डिमांड की आपूर्ति किसी एक कम्पनी या स्वयं सहायता समूह के बस की बात नहीं है।
इस समय इंडस्ट्रियल एरिया स्थित 42 साड़ी कारखानों में सिर्फ तिरंगा झंडे का निर्माण हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि इन कारखानों को 2 करोड़ 55 लाख तिरंगा झंडों का आॅर्डर मिल चुका है। साड़ी उद्योग से जुड़े़ मुकेश गर्ग, अतुल गर्ग, ओमप्रकाश मित्तल आदि ने बताया कि उनको आठ अगस्त तक इन आॅर्डरों की सप्लाई संबंधित विभागों को करनी है। इस काम के लिए सैकड़ों की संख्या में मजदूर जुटे हैं। छपाई, कटाई, सिलाई के कार्य कर रहे हैं। कुछ अन्य व्यवसायियों ने बताया कि अब उन्होंने झंड़ों का आॅर्डर लेना बंद कर दिया है। क्योंकि अब तक जो आर्डर आया है उसकी पूर्ति निर्धारित समय में करना जरूरी है।
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