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राजनीतिक गुरू नत्थू सिंह ने 1967 में छोड़ दी थी अपनी सीट, तीन विधानसभा चुनाव भी हार चुके हैं मुलायम सिंह यादव, आपातकाल के दौरान बड़े नेताओं के साथ दी थी गिरफ्तारी
मैनपुरी।
मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक सफर की उस समय बड़ी शुरुआत हुई जब उनके राजनीतिक गुरू नत्थू सिंह यादव ने उन्हें विधायक बनवाया था। 1967 में नत्थू सिंह ने अपनी परंपरागत जसवंतनगर सीट मुलायम सिंह के लिए छोड़ दी थी। मुलायम ने मैनपुरी सीट से पांच लोकसभा चुनाव लड़े और जीते। यहां से चुनाव जीतकर वे देश के दो बार रक्षामंत्री और एक बार प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। उस समय वे मैनपुरी के सांसद थे। यहां से इस्तीफा देकर उन्होंने सूबे की कमान संभाली थी।
छात्र राजनीति से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गुरू स्व. चौ. नत्थू सिंह यादव 1962 में जसवंतनगर सीट से विधायक थे। मुलायम की काबलियत को देख नत्थू सिंह ने अपनी सीट छोड़ दी और उनको उम्मीदवार बना दिया। 1967 में मुलायम चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने। 1969 में उपचुनाव हुआ तो खरदोली के कांग्रेस नेता विशंभर सिंह यादव ने उनको हरा दिया। 1980 के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर सीट पर बलराम सिंह यादव के हाथों मुलायम को फिर हार का सामना करना पड़ा। नत्थू सिंह के पुत्र पूर्व राज्यमंत्री सुभाषचंद्र यादव कहते हैं कि मुलायम उनके पिता के लिए बड़े बेटे की तरह थे।
राम मंदिर आंदोलन की आग में खड़े रहे मुलायम
90 के दशक में मुलायम को कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा। राम मंदिर आंदोलन की आग पूरे देश में फैली हुई थी। मुलायम के लिए मैनपुरी की राजनीति चुनौती बन चुकी थी। लेकिन इस चुनौती से पार पाने में मुलायम सफल हुए। 1991 में उन्होंने उदयप्रताप को जीत दिलाई और 1996 में मैनपुरी से खुद सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे।
आपातकाल में 20 महीने रहे जेल में
1969 में चुनाव हारने के बाद मुलायम ने समाजवाद के बैनरतले किसानों की लड़ाई शुरू कर दी। 1975 में आपातकाल की घोषणा होते ही सड़कों पर लोग उतर पड़े। राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी शुरू हो गयी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, राजनरायन सिंह, जॉर्ज फर्नाडिज जैसे नेताओं के साथ सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने भी गिरफ्तारी दी। वे 20 महीने तक जेल में रहे। इससे पहले उन्होंने आपातकाल के फैसले का पुरजोर विरोध किया और सड़कों पर हो रहे धरना प्रदर्शनों की अगुवाई की।
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा…
मुलायम की सियासत हमेशा हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा के इर्द-गिर्द घूमती रही। सैफई से पहले लखनऊ और फिर दिल्ली की सत्ता का सफर तय करने वाले मुलायम ने हमेशा अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर नजर रखी। राजस्व मंत्री बाबूराम यादव, धुरविरोधी दर्शन सिंह यादव, बलराम सिंह यादव जैसे नेताओं को मुलायम ने हमेशा टारगेट पर रखा और इन्हें अपने पाले में भी मिलाया।
मुलायम ने सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए समकक्ष नेताओं से दोस्ती भी की। यूपी की सियासत के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाया तो बसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ मिलकर इटावा लोकसभा सीट को भी जीता। मुलायम ने भाजपा के जन्मदाता माने जाने वाले कल्याण सिंह की पार्टी राक्रांपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा। मैनपुरी के क्रिश्चियन मैदान में कल्याण और मुलायम की संयुक्त रैली भी हुई। लेकिन ये गठबंधन सफल नहीं हुआ।
मायावती से प्रभावित थे मुलायम सिंह
मुलायम के सहयोग से ऐसा ही एक गठबंधन 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ भी हुआ। मैनपुरी के क्रिश्चियन मैदान में मुलायम और मायावती की बड़ी रैली हुई। जनसभा में मुलायम ने भारी भीड़ के बीच कहा था कि मायावती से वे प्रभावित हैं। हालांकि मुलायम की पार्टी के लिए ये गठबंधन बेमेल साबित हुआ।
मायावती का जीवन भर एहसान नहीं भूलेंगे
19 अप्रैल 2019 को मुलायम और मायावती एक साथ मंच पर आए तो पूरे देश ने उनके गठबंधन को समझने का प्रयास किया। मायावती ने मुलायम की तारीफ की तो मुलायम ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे मायावती का हमेशा सम्मान करें। मुलायम ने ये भी कहा कि वह मायावती का सम्मान करते हैं आदर करते हैं। वह मायावती का एहसान जीवन भर नहीं भूलेंगे।
30 साल में भी सपा के तिलिस्म को नहीं भेद पाए विरोधी
1989 में कांग्रेस के हाथों से मैनपुरी सीट छीनने वाली सपा ने यहां 2 लाख 39 हजार 660 वोट हासिल किए। इसके बाद 1991 के चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत घट गया। सपा प्रत्याशी उदयप्रताप सिंह को जीत तो मिली लेकिन उन्हें 1 लाख 26 हजार 463 वोट ही मिल सके। 1996 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से ताल ठोंकी। मुलायम ने 2 लाख 73 हजार 303 वोट तो हासिल किए लेकिन दूसरे नंबर पर रहे। भाजपा के उपदेश सिंह चौहान को भी 2 लाख 21 हजार 345 वोट मिले। 1999 के लोकसभा चुनाव में भी सपा प्रत्याशी और भाजपा प्रत्याशी के बीच नजदीकी मुकाबला हुआ।
2004 के लोकसभा उपचुनाव में धर्मेंद्र बने सांसद
वर्ष 2004 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने यहां से फिर दावेदारी की तो उन्हें रिकार्ड 4 लाख 60 हजार 470 वोट मिले। उन्होंने निकटतम प्रत्याशी बसपा के अशोक यादव को 3 लाख 37 हजार 870 वोटों से पराजित किया। मैनपुरी सीट से मुलायम ने इस्तीफा दिया तो धर्मेंद्र यादव ने उपचुनाव लड़ा तो फिर सपा का वोट प्रतिशत गिर गया। धर्मेंद्र यादव ने 3 लाख 48 हजार 999 वोट हासिल किए। दूसरे नंबर पर रहे बसपा के अशोक शाक्य को 1 लाख 69हजार 286 वोट मिले। यह चुनाव धर्मेंद्र यादव 18971 वोटों से जीते जबकि 6 माह पूर्व ही सपा सुप्रीमो को इस चुनाव में 3 लाख 37 हजार 870 वोटों से जीत हासिल हुयी थी।
2009 में मुलायम के आगे ठहर नहीं पायी थी बसपा
वर्ष 2009 में सपा सुप्रीमो ने फिर यहां से चुनाव लड़ा। मुलायम सिंह को अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप 3 लाख 92 हजार 308 वोट मिले लेकिन दूसरे नम्बर पर रहे बसपा के विनय शाक्य को भी मतदाताओं ने 2 लाख 19 हजार 243 वोट दिए। फलस्वरूप मुलायम की जीत का अंतर 1 लाख 73 हजार 59 पर आकर ठहर गया। यानी उपचुनाव में धर्मेन्द्र यादव को मिली जीत के अंतर पर भी असर पड़ा। 2014 में मुलायम यहां से फिर प्रत्याशी बने। उन्हें 6 लाख 96 हजार 918 वोट मिले। एसएस चौहान ने भाजपा से चुनाव लड़ा लेकिन वे 2 लाख 31 हजार 252 वोट ही पा सके और दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। मुलायम के इस्तीफे के बाद तेजप्रताप यादव ने उपचुनाव लड़ा। उन्हें 6 लाख 52 हजार 686 वोट मिले। उन्होंने भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को हराया। प्रेमसिंह को 3 लाख 32 हजार 537 वोट ही मिल सके।
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