पुरानी पेंशन बहाल होगी या जारी रहेगा एनपीएस, छह दिन में साफ होगी तस्वीर

एक फरवरी को लोकसभा में पेश होने वाले अंतरिम बजट में ओपीएस/एनपीएस को लेकर, सरकार अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सकती है। ये तय है कि केंद्र सरकार, ओपीएस बहाली नहीं करेगी, लेकिन एनपीएस को ज्यादा से ज्यादा आकर्षक बनाने का मसौदा सामने आ सकता है। एनपीएस में जमा हो रहा कर्मियों का दस फीसदी पैसा और सरकार का 14 फीसदी पैसा, इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।

केंद्र सरकार, पुरानी पेंशन को लेकर बहुत जल्द अंतिम फैसला लेने जा रही है। जानकारों की मानें, तो छह दिन बाद ही यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि सरकारी कर्मी, पुरानी पेंशन के दायरे में आएंगे या एनपीएस ही जारी रहेगा। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार ने कर्मियों के साथ टकराव से बचने का रास्ता निकाल लिया है। एक फरवरी को लोकसभा में पेश होने वाले अंतरिम बजट में ओपीएस/एनपीएस को लेकर, सरकार अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सकती है। ये तय है कि केंद्र सरकार, ओपीएस बहाली नहीं करेगी, लेकिन एनपीएस को ज्यादा से ज्यादा आकर्षक बनाने का मसौदा सामने आ सकता है। एनपीएस में जमा हो रहा कर्मियों का दस फीसदी पैसा और सरकार का 14 फीसदी पैसा, इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। साथ ही पुरानी पेंशन में जिस तरह से ‘गारंटीकृत’ शब्द, कर्मियों को एक भरोसा देता है, कुछ वैसा ही एनपीएस में भी जोड़ा जा सकता है। डीए/डीआर की दरों में बढ़ोतरी होने पर एनपीएस में उसका आंशिक फायदा, कर्मियों को कैसे मिले, इस पर कुछ नया देखने को मिल सकता है।

देश में पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर सरकारी कर्मियों ने राष्ट्रव्यापी अनिश्चिकालीन हड़ताल करने की चेतावनी दी है। कर्मचारी संगठनों का धैर्य अब जवाब देता हुआ दिखाई पड़ रहा है। केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने आठ जनवरी से 11 जनवरी तक ‘रिले हंगर स्ट्राइक’ की है। इसका मकसद, सरकार को चेताना था। नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के संयोजक शिवगोपाल मिश्रा ने ‘रिले हंगर स्ट्राइक’ के अंतिम दिन सरकार को चेतावनी दे दी थी कि ओपीएस बहाली के लिए अब कोई धरना प्रदर्शन नहीं होगा। सरकार हमें, अनिश्चिकालीन हड़ताल करने के लिए मजबूर कर रही है। देश में अगर 1974 की रेल हड़ताल जैसा माहौल बना, तो उसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार होगी। जल्द ही सभी कर्मचारी संगठनों की बैठक बुलाई जाएगी। उस बैठक में देश भर में होने वाली अनिश्चितकालीन हड़ताल की तिथि तय होगी। हड़ताल की स्थिति में ट्रेनों व बसों का संचालन बंद हो जाएगा। केंद्र एवं राज्य सरकारों के दफ्तरों में कामकाज नहीं होगा।

1974 में जॉर्ज फर्नांडीस की अगुआई में रेल हड़ताल हुई थी। उस वक्त कहा गया था कि सरकार अगर कर्मचारियों की मांगों को पूरा करती, तो उस पर मुश्किल से दो सौ करोड़ रुपये खर्च होने थे, लेकिन सरकार को हड़ताल तोड़ने के लिए करीब दो हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे। इसके बाद रेल कर्मियों में असंतोष फैल गया था। वह हड़ताल 8 मई 1974 को प्रारंभ होकर 27 मई 1974 तक चली थी। इस दौरान रेलवे में सारा कामकाज ठप हो गया था। हजारों लोगों को जेल जाना पड़ा था। अनेक लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा था। शिवगोपाल मिश्रा का कहना था, हमने सरकार के समक्ष कई बार आग्रह किया है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए। सरकारी कर्मियों को बिना गारंटी वाली ‘एनपीएस’ योजना को खत्म करने और परिभाषित एवं गारंटी वाली ‘पुरानी पेंशन योजना’ की बहाली से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। इसके लिए समय-समय पर ज्ञापन सौंपे गए हैं। कैबिनेट सचिव के साथ बैठक में यह मुद्दा उठाया गया है।

दिल्ली में सरकारी कर्मियों की कई रैलियां हो चुकी हैं। इनमें केंद्र और राज्यों के लाखों सरकारी कर्मियों ने हिस्सा लिया था। इतना कुछ होने पर भी केंद्र सरकार ने कर्मियों की इस मांग की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। केंद्र सरकार, अड़ियल रवैया अख्तियार कर रही है। कर्मियों को स्ट्राइक करने के लिए मजबूर कर रही है। मिश्रा ने कहा, कोविड में हमने 11 हजार गाड़ियां चलाई थीं। हमारे 3000 कर्मी शहीद हुए थे। हर साल चार सौ से अधिक रेल कर्मी मारे जा रहे हैं। क्या कोविड में कोई मंत्री/एमपी/एमएलए शहीद हुआ। अब धरना खत्म है, हम हड़ताल पर जाएंगे। सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि 1974 की रेल हड़ताल के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी। उसके बाद उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। मौजूदा सरकार, ऐसी नौबत सरकार न लाए।

नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु का कहना है, केंद्र सरकार एनपीएस में संशोधन करने जा रही है। हम ऐसे किसी भी संशोधन के लिए आंदोलन नहीं कर रहे हैं। कर्मियों को गारंटीकृत पुरानी पेंशन ही चाहिए। अगर कोई भी कर्मचारी नेता या संगठन, सरकार के एनपीएस में संशोधन प्रस्ताव पर सहमत होते हैं, तो ‘2004’ वाली गलतियां, ‘2024’ में भी दोहराई जाएंगी। एनपीएस एक डस्टबीन है। करोड़ों कर्मियों का दस फीसदी पैसा और सरकार का 14 फीसदी पैसा, डस्टबीन में जा रहा है। यह स्वीकार्य नहीं है। पुरानी पेंशन बहाली तक, कर्मियों का आंदोलन जारी रहेगा। वित्त मंत्रालय की कमेटी की रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं है। यह रिपोर्ट पेश हो या न हो। इससे कर्मियों को कोई मतलब नहीं है। वजह, यह कमेटी ओपीएस लागू करने के लिए नहीं, बल्कि एनपीएस में सुधार के लिए गठित की गई थी।

एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार का कहना है, लोकसभा चुनाव से पहले ‘पुरानी पेंशन’ लागू नहीं होती है, तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक है। यही वजह है कि कर्मचारी संगठन, अब विभिन्न राजनीतिक दलों से संपर्क कर रहे हैं। अगर वे कर्मचारियों की मांग मान लेते हैं, तो दस करोड़ वोटों का समर्थन संबंधित राजनीतिक दल के पक्ष में जा सकता है। देश के दो बड़े कर्मचारी संगठन, रेलवे और रक्षा (सिविल) ने अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए अपनी सहमति दे दी है। स्ट्राइक बैलेट में रेलवे के 11 लाख कर्मियों में से 96 फीसदी कर्मचारी ओपीएस लागू न करने की स्थिति में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के लिए तैयार हैं। इसके अलावा रक्षा विभाग (सिविल) के चार लाख कर्मियों में से 97 फीसदी कर्मी, हड़ताल के पक्ष में है। केंद्र सरकार एनपीएस में ही ओपीएस जैसे कुछ प्रावधानों को शामिल कर सकती है। जैसे, रिटायरमेंट पर मिली बेसिक सेलरी का, एनपीएस में 40 से 45 फीसदी भुगतान बतौर पेंशन देने पर विचार हो रहा है। ऐसे किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जाएगा। ये बातें केवल ‘ओपीएस’ से ध्यान भटकाने का प्रयास है।

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