सीता नवमी: आज ही के द‍िन प्रकट हुई थीं माता जानकी, इस वजह से रखा गया सीता नाम

नई द‍िल्‍ली। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी या जानकी नवमी कहते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। आज ही के द‍िन पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक ने संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए भूमि जोती थी और उसी समय उन्हें पृथ्वी में दबी हुई एक बालिका मिली थी। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को सीता कहते हैं। यही वजह थी क‍ि उनका नाम सीता रखा गया। जिस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म दिन एक उत्सव के रुप में मनाया जाता है। उसी प्रकार जानकी देवी के जन्म का महत्व है। जानकी नवमी व्रत सौभाग्यवती स्त्रियां अपने वैवाहिक जीवन की सुख-शान्ति के लिये यह व्रत करती है। पुरुषों में भगवान श्री राम को आदर्श पुरुष की संज्ञा दी गई है और जानकी के आदर्शों पर चलना हर स्त्री की कामना हो सकती है। जीवन की हर परिस्थिति में अपने पति का साथ देने वाली पतिव्रता स्त्री के रुप में माता जानकी को पूजा जाता है।जानकी नवमी व्रत माता सीता के जन्म दिवस के रुप में जाना जाता है. माता सीता का जीवन चरित्र सभी स्त्रियों के लिये मार्गदर्शक का कार्य करता है। भगवान राम को प्रसन्न करने के लिए भी देवी जानकी का व्रत किया जाता है। वैष्णव धर्म मत के अनुसार फाल्गुण कृ्ष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन जानकी नवमी व्रत किया जाता है। जब भगवान कृष्ण से मिलने द्वारका पहुंची थी राधा, इस तरह पूरी हुई ये अंतिम इच्छासीता माता के जन्म स्थली सीतामढी में जानकी जन्म दिवस एक उत्सव के रुप में मनाया जाता है। यह व्रत श्रद्वा और विश्वास के साथ-साथ उत्साह और उमंग लिये होता है। जानकी नवमी व्रत चार स्तम्भों का मंडप तैयार करके किया जाता है। मंडप बनाकर उसमें सीताजि व भगवान श्री राम की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके बाद इनके साथ राजा जनक, माता सुनयना, हल और माता पृ्थ्वी कि भी प्रतिमाएं पूजा के लिये रखी जाती है। पूजा का कार्यक्रम इस प्रकार रखा जाता है, कि वह जानकी का जन्म दिवस लगना चाहिए। मंगल गीत गाये जाते है। जानकी स्त्रोत का पाठ भी किया जा सकता है।जानकी नवमी व्रत करने के लिये व्रत तिथि में प्रात: सुबह उठना चाहिए। व्रत के दिन व्रत से जुडे सभी नियमों का पालन करना चाहिए और सुबह स्नान आदि करने के बाद माता जानकी का पूजन करना चाहिए। पूजन सामग्री के रुप में चावल, जौ, तिल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इस व्रत को करने के लिये संतान-लाभ संबन्धी इच्छाएं पूरी होती है। माता सीता को माता पार्वती ने आशिर्वाद दिया था। वही आशिर्वाद माता जानकी अपने उपावसक को देती है।

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