मथुरा। बुद्ध पूर्णिमा वैसाख माह की पूर्णिमा को कहते हैं। इसी दिन भगवान बुद्धजी की जयंती भी है। इसी दिन उनको बुद्धव की प्राप्ति हुई थी।
बौद्ध और हिन्दू दोनों के लिए यह पवित्र दिन है। बुद्ध को विष्णु जी का नवम अवतार माना जाता है। इसी दिन बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। बौद्ध धर्म के अनुयायियों का यह सबसे बड़ा त्यौहार है। देश विदेश में इसे एक बड़े त्यौहार के रूप में बौद्ध धर्म के अनुयायी मानते हैं।इस दिन भगवान बुद्ध की मूर्ति का अभिषेक करके उनपर पुष्प इत्यादि समर्पित करते हैं। महात्मा बुद्ध शांति दूत थे। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमेशा रहेंगे। सत्य और अहिंसा का मार्ग ही उनका प्रिय बताया मार्ग है। बुद्ध ने पुनर्जन्म को स्वीकार किया है। आज लोग नश्वर संसार में सुख सुविधाओं के पीछे पागल हैं वहीं बुद्ध ने राज पाठ का परित्याग कर ज्ञान की तलाश की। जीवन के मर्म को जाना। अस्तेय और अपिरग्रह का मार्ग चुनना आसान नहीं होता।
सत्य का मार्ग ही तप का मार्ग है। बुद्ध ने सामाजिक समरसता की दिशा में कार्य किया। आज जब समाज में ऊंच नीच और अस्पृश्यता की बुराई कहीं नजर आती है तो इसकी इजाजत कोई धर्म नहीं देता। बौद्ध धर्म समानता का धर्म है। बुद्ध का ज्ञान की तलाश में इतना समय लगना उनकी तप, ध्यान और एकाग्रता का फल है जिसका लाभ उनके उपदेशों के रूप में आज सारे विश्व को मिल रहा है। वह अहिंसा के विरोधी थे। सनातन धर्म में भी कहा गया है अहिंसा परमो धर्म। बुद्ध ने मध्यम मार्ग को चुना। इस प्रकार वो बहुत सहज और सरल हो गए। कर्म के सिद्धांत को प्रतिपादित किया। कर्म का फल तो व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है।
उनके बुद्धत्व में ज्ञान है, भाईचारा है और विश्व शांति है। उनके उपदेश को आत्मसात करने से मन में व्याप्त अज्ञान रूपी अहंकार का स्वतः समूल नाश हो जाएगा। इस दिन लोग चिड़ियों को आजाद भी खिलाते हैं क्योंकि उनका संदेश अहिंसा का है। उनके बताए मार्ग प्रगतिवादी हैं क्योंकि कर्मवादी हैं। उनके उपदेशों को हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा स्थान प्राप्त है। उनकी मूर्तियां हिन्दू अपने घरों में लगाते हैं। उनको अपने घर के मंदिर में स्थापित करते हैं क्योंकि हिन्दू धर्म के अनुसार वो वैष्णव अवतार हैं।
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