कहते हैं कि भारत गांवों में बसता है। लिहाजा विकास की राह भी यहीं से होकर गुजरनी चाहिए। ‘इंडिया’ भले ही विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो चुका है, लेकिन ‘भारत’ के पिछड़े गांवों लिए विकास की राह अब भी ऊबड़-खाबड़ है। इसमें नदी-नाले भी पड़ते हैं और यह रपटीली भी है। ग्रामीण विकास को बड़ी-बड़ी योजनाएं चल रही हैं, लेकिन विकास की राह में चलने भर से काम नहीं चलता है। इसमें तो दौड़ना पड़ता है। जो नहीं दौड़ता है वह पिछड़ जाता है। ‘भारतवासियों’ को यह बात समझ में आ चुकी है। सिस्टम की अनदेखी-अनसुनी से आजिज हो वे अपनी राह खुद तैयार करने लग गए हैं। कोई पुल बांध रहा है तो कोई रपटा बना रहा है।
इलाहाबाद के ग्रामीण क्षेत्र उपरौध की डेड़ लाख की आबादी ने विकास को खुद ही अपने गांव तक लाने का मन बना लिया है। अपने प्रयासों से ही बेलन नदी पर रपटा बनवा रहे हैं, जो अब आधा बन चुका है। श्रमदान कर रहे हैं, आर्थिक सहयोग से राज मिस्त्री का मेहनताना दे रहे हैं और सीमेंट, बालू आदि खुद ही जुटा रहे हैं। करीब साढे़ नौ सौ फीट लंबे और 12 फीट चौड़े इस रपटे के निर्माण में मानव श्रम सहित 30 लाख रुपये तक खर्च होने का अनुमान है। अभी इन्हें अपने ब्लाक मुख्यालय मांडा तक पहुंचने में 35 किमी. और तहसील मुख्यालय कोरांव पहुंचने में 26 किमी. का सफर तय करना होता है। बेलन नदी पर रपटा या पुल बनवाने की मांग आजादी के पहले से की जा रही है।
मंत्रियों, यहां तक कि प्रधानमंत्री ने भी आश्वासन दिया, पर रपटा नहीं बना। रपटा बन जाने से ब्लाक मुख्यालय मांडा की दूरी लगभग 10 किमी., तहसील मुख्यालय कोरांव की दूरी 18 किमी. रह जाएगी। साधन सहकारी समिति माझिगवां की दूरी 20 किमी. कम होने से किसानों को राहत मिलेगी। ग्राम पंचायत बेरी के राजकीय इंटर कालेज की दूरी 25 किमी. कम होने से छात्रों को पढ़ने का अवसर मिलेगा। इलाहाबाद के जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने कहा कि ग्रामीणों की मांग के अनुरूप बेलन नदी पर बेहतर तरीके से रपटा बनवाया जाएगा।
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