मथुरा। एस0के0एस0 आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेज एण्ड हाॅस्पीटल के विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा बठैनकला गाॅव में निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया जिसमें कि सैकड़ों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। इस शिविर का उद्घाटन गांव के प्रधान के द्वारा किया गया। स्वास्थ्य शिविर के उपरान्त शिविर के प्रभारी डा0 पवन गुप्ता द्वारा जनता को जागरुक करते हुए बताया गया कि मलेरिया वर्षा ऋतु में अधिक फेलने वाला बेहद खतरनाक रोग है। यह एक वाहन जनित संक्रामक व्याधि है तथा यह एक भयंकर जन स्वास्थ्य समस्या है। यूनिसेफ के अनुसार विश्व भर में प्रतिदिन लगभग 1000 से अधिक बच्चों की मृत्यु का कारण मलेरिया है। इंसानो में मलेरिया संक्रमण मादा एनाफलिश मच्छर के काटने से होता है। संक्रमित मच्छर जब किसी स्वस्थ्य मनुष्य को काटता है तो उसमें मौजूद परजीवी मच्छर अपना संक्रमण रक्त में लार के रूप में छोड़कर व्यक्ति को संक्रमित कर देते हैं। लीवर में फेलने वाले छोटे जीव मैक्रोजोटिव बनने लगते हैं। यह मैक्रोजोटिव लीवर से रक्त में फैलकर लाल रक्त कोशिकाओं को प्रभावित कर तेज गति से बढ़ जाते हैं जिससे लालरक्त कण टूटने लगते है और व्यक्ति को मलेरिया होने लगता है। जब कोई संक्रमित मच्छर व्यक्ति को काटता हेै तो रक्त में मौजूद मलेरिया के परजीवी उस मच्छर में पहुंच जाते हैं। अब यह संक्रमित मच्छर जब किसी व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति को मलेरिया हो जाता हैै। इस प्रकार मलेरिया मच्छरों से इंसानों में संक्रमित होता है। मच्छर के काटने के अलावा, संक्रमित गर्भिणी माता के रक्त द्वारा शिशु को हो सकता हैं, संक्रमित रक्त आॅरगन ट्रांसप्लांट या ब्लड ट्रांसप्लेंट के समय हो सकता है और मलेरिया से संक्रमित रक्त की सूई या इंजेक्शन से दोबारा उपयोग से हो सकता है। इस बीमारी के लक्ष्णों में ठण्ड लगलगकर बुखार आता हैं पूरा शरीर काॅपने लगता है, शरीर की त्वचा ठण्डी पड़ने लगती है, जी मलचाना, उल्टी होना, सिर दर्द होने लगता है बाद में तेज हो जाता है, शरीर थकान से भर जाता है व पूरी शरीर कमजोर होने लगता है, बहुत बार मलेरिया के लक्षणों में आॅखें लाल हो जाती है, बुखार तेजी से चढ़कर 102 डिग्री से 106 डिग्री तक पहुंच जाता है। मलेरिया की बीमारी के कई बुरे प्रभाव होते हैं जैसे-खून की कमी व शरीर में कमजोरी आ जाती है, जिगर व तिल्ली बढ़ जाती है, मलेरिया का किडनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है व पाचन तंत्र भी बिगड जाता है। मलेरिया की बीमारी के मच्छर छत पर रखी पानीं की खुली टंकी, गमलों, टायरों, कूलर, सड़के के गड्डे व नालियों में जमा गंदे पानी में पनपने लगते हैं। इस बीमारी से बचने के लिए पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए तथा छत पर सोते समय मच्छरदारी का प्रयोग व घरों के आस-पास मच्छरों को मारने वाली दवा का छिड़काव, शरीर को अच्छी तरह कपड़े से ढकें व घरों में जालीदार खिड़की व दरवाजे लगवायें जिससे मच्छर घर के अन्दर प्रवेश न कर सकें। मलेरिया के उपचार के लिए मैथी के दानों का चूर्ण, तुलसी के पत्तों का रस, नीम गिलोय का अर्क, आयुष चैसठ, छोटी पीपल व नीम का काढ़ा आदि आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग तथा समय-समय पर चिकित्सकीय जांच व परीक्षण द्वारा भी इससे बचा जा सकता है। एस0केएस0 गु्रप के वाइस चेयरमैन श्री मयंक गौतमजी का कहना है कि आज के दौर में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा मिलना जरूरी है। चूँकि आयुर्वेदिक में स्वस्थ्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा के उपायों वर्णन हैं व आयुर्वेदिक के द्वारा ही मनुष्य स्वस्थ्य रहकर निरोगी जीवन व्यतीत कर सकता है। समस्त गाॅव वासियों ने मलेरिया की जानकारी व संस्थान की सेवा की भावना से गदगद् होते हुए डा0 पवन गुप्ता, डा0 संदीप तथा स्टाॅफ मैम्बर शेखर, नारायण चैधरी, गोविन्द तथा बलवीर का अभिनन्दन व आभार प्रकट कर कृतज्ञता दिखाई।
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