कढ़ाही में बची चासनी जैसा स्वाद किसी मिठाई में नहीं आया

मथुरा। श्री अटल बिहारी वाजपेयी से सामान्य निकटता का सौभाग्य मुझे तब प्राप्त हुआ जब कि वह महाकवि सूरदास की पाँच सौ वीं जयन्ती के सम्बन्ध में गठित राष्ट्रीय सूर पंचशती महोत्सव समिति के अध्यक्ष थे और मैं उसका एक सामान्य सदस्य था। उन दिनों मैं पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय था। एक दिन अन्तरंग क्षणों में मुझे उनसे साक्षात्कार का सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्री अटल जी को ठंडाई, चाट-पकौड़ी और मिठाइयों का खूब शौक रहा था। साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि कभी वह सड़क मार्ग से जा रहे होते हैं और चाट-पकौड़ी का अच्छा सा खोंमचा देखते हैं तो गोल-गप्पे खाने के लिए रुक जाते हैं और जैसे ही पहचानने वाले आ जाते हैं तो भाग लेते हैं। उन्होंने कहा था कि गोल-गप्पे उन्हें इसलिए पसन्द हैं कि न तो उनमें भारीपन होता है न चिकनाई।
मैंने उनसे पूछा कि आपने तो सारा देश घूमा है, आपको कहाँ की क्या मिठाई सबसे अच्छी लगी? उन्होंने बताया कि जब वह बहुत छोटे थे तब उनके गाँव के पास करहल में एक बाबा ने यज्ञ किया था। पूरा गाँव यज्ञ में भाग लेने के लिए गया। वह भी बाबा के साथ गये थे। यज्ञ देर रात में समाप्त हुआ। गाँव के काफी लोग मेले में गये थे इसलिए खान-पान की दुकानों का सामान तब तक बिक गया था।
श्री अटल जी ने बताया कि उन्हें बहुत जोर की भूख लग रही थी, भूख के मारे वह बिलबिला रहे थे। बाबा कई दुकानों पर गये किन्तु कहीं कुछ नहीं मिला। बाबा ने एक दुकानदार से कहा कि इस बच्चे को बहुत जोर की भूख लग रही है, जो कुछ बचा हो वह दे दो। हलवाई के पास रखी कड़ाही के रसगुल्ले तो बिक चुके थे, चासनी बची थी। हलवाई ने तब उनके हाथ में कढ़ाही में से चासनी भर कर एक दौना दे दिया। वाजपेयी जी ने कहा कि उस चासनी में जैसा स्वाद आया वैसा कभी किसी मिठाई में नहीं आया।
वाजपेयी जी ने इसी क्रम में बताया कि हिमाचल और मणिपुर यद्यपि देश के दो छोरों पर हैं किन्तु वहाँ के स्वादिष्ट भोजन और परोसने की विधि एक समान हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि वह खाने और खिलाने दोनों ही के शौकीन रहे हैं। इसलिए उनकी खाने के शौकीनों से पट जाती है भले ही वह किसी भी राजनैतिक दल के हों।
—मोहन स्वरूप भाटिया

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