देख लाला मौसे पंगा न ले या होरी में, गोकुल में हुई छड़ीमार होली

  • बालकृष्ण और बलराम पर गोपियों ने जमकर किये छड़ियों के प्रहार, ढोल नगाड़ाें की धुनों पर झूमे भक्‍त
  • शोभायात्रा का पुष्प वर्षा करके किया भक्तों ने स्वागत
मथुरा। होरी खेलन आयौ श्याम, आज जाय रंग में बोरो री, और हा-हा खाय पड़ै जब पइयां तब जाय छोड़ो री…, होरी खेलन आयौ श्याम आज…। गोकुल, जो कन्‍हैया की बाल लीलाओं का प्रमुख स्‍थल है। जहां बाल रूप में कान्‍हा ने लीलाएं कीं और राधा के साथ प्रेम भरी अठखेलियां भी कीं। आज वही गोकुल फाग की उमंग से सराबोर है। रंग और अबीर गुलाल से यहां प्रतिदिन हो रही भोर है। फाग के इसी आगमन का उत्‍सव फाल्‍गुन की द्वादशी सोमवार को सुबह से ही गोकुल में छाया हुआ है। बरसाना, नंदगांव और जन्‍मभूमि में हुई लठामार होली के बाद आज बाल गोपाल के साथ राधा जी गोपियों संग छड़ी से होली खेल रही हैं
सोमवार को दोपहर 12 बजे से छाड़ीमार होली के पहले चरण की शुरुआत हुई। गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद किले के नंद भवन में ठाकुर जी के समक्ष राजभोग रखा गया। 12 बजे भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिए मुरली घाट को निकले। बाल स्वरूप भगवान के डोला को लेकर सेवायत चल रहे थे। उनके आगे ढोल नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में जगह जगह फूलों की वर्षा हाे रही थी और दोनों ओर खड़े भक्‍त अपने ठाकुर जी को नमन कर रहे थे। डोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं। विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थीं। नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा जहां भवगान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था। भजन कीर्तन, रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई।
बता दें कि छड़ी मार होली गोकुल में ही खेली जाती है। भगवान कृष्ण और बलराम पांच वर्ष की आयु तक गोकुल में रहे थे। इसलिये उनके लाला को कहीं चोट न लग जाए इसलिए यहां छड़ी मार होली खेली जाती है। गोकुल में भगवा कृष्ण पलना में झूले हैं वही स्वरूप आज भी यहां झलकता है। नंद किले के मैनेजर गिरधारी भटिया, सेवायत मोहन लाल, पांचीलाल मुखिया और मनमोहन शर्मा ने बताया कि यहां बल्लभ कुल संप्रदाय के तीर्थ यात्री अधिकांश होली खेलने के लिए आते हैं।
विदेशी भक्‍त और विधायक पर भी बरसी छड़ी
मथुरा। होली के हुल्‍लड़ में न कोई अपना होता है और न कोई पराया। न कोई माननीय होता है और न कोई एक देश का। बस एक रंग होता है कान्‍हा की भक्ति का। भक्ति के इसी रंग का असर था कि छड़ीमार होली के दौरान विधायक पूरन प्रकाश ने भी छड़ीमार होली का आनंद लेने में परहेज न किया तो वहीं विदेशी भक्‍त भी होली के इस उमंग में शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाए।
हर ओर है बस फाग का उत्‍साह 
मथुरा। होली के गीतों की तरंग के साथ पहले गुलाल, फिर फूल और उसके बाद टेसू के फूलों से बने रंग की मार खाने को हर कोई लालायित दिखाई दिया। गोकुल का छड़ी मार हुरंगा होली का अनोखा रूप था। भगवान कृष्‍ण और बलराम की शोभायात्रा गोकुल की गलियों से होती हुई मुरलीधर घाट जब पहुंची तो  यहां पर विश्व प्रसिद्ध उत्सव का वैभव श्रद्धालुओं को शामिल होने के लिए विवश कर दिया। गोपिकाएं ग्वाल वालों के साथ जमकर होली खेली। जैसे ही बालकृष्ण घाट पर विराजमान हुए वैसे ही भक्त उनके नयनाभिराम दर्शन करके जयजयकार कर उठे।

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