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मां आखिर मां होती है। मां की जगह कोई नहीं ले सकता। मां अपने बच्चो के लिए मौत से भी लड़ सकती हैं। मां के बलिदान के यूं तो हजारों किस्से हैं लेकिन यहां हम ऐसी दो माताओं का जिक्र कर रहे हैं, जिन्होंने बेटो को किडनी देकर जान बचाई। मौत के मुह से वापस आने के बाद घर वालों से उनका एक ही सवाल था, कैसा है उनका लाल। कोई दिक्कत तो नहीं है। आज भी वो खुद से ज्यादा अपने बेटों का ख्याल रखती हैं।
मां की ममता के यह दोनों ही किस्से मथुरा के नौहझील के गांव बरौठ के हैं। इस गांव के दो युवकों की किडनी खराब हो गई। कुछ दिन तो दवा चली लेकिन बाद में डॉक्टरों ने कह दिया कि बगैर ट्रांसप्लांट के काम नहीं चलेगा। डॉक्टरों ने जब जवाब दे दिया तो सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि किडनी देगा कौन। उधर दोनों युवकों की तबियत बिगड़ती जा रही थी। बाद में दोनों की माताओं ने अपने जिगर के टुकड़ों को बचाने के लिए किडनी देने का फैसला कर लिया।
प्राइवेट स्कूल में शिक्षक हैं चंद्रवीर (36)। चंद्रवीर को 2010 में पता चला कि उसकी दोनों किडनी खराब हो गईं हैं। पहले तो दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज चला। लेकिन बाद में डॉक्टरों ने कह दिया कि किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा। चंद्रवीर की मां चंद्रवती देवी ने अपनी किडनी देकर बेटे की जान बचाई। बताया जाता है कि जब चंद्रवती ऑपरेशन थियेटर से बाहर आईं तो परिवार वालों से पूछा कि चंद्रवीर कैसा है। वो ठीक तो है न। डॉक्टरों से भी अपने बेटे के बारे में जानकारी ली थी। अब मां और बेटे दोनों ही ठीक हैं।
डॉक्टरों ने कहा थी कि एक दो महीने में किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हुआ तो दिक्कत हो सकती है। परिवार वालों ने किसी तरह से ऑपरेशन के लिए पैसे का इंतजाम किया। लेकिन फिर सवाल आया कि किडनी कौन देगा। अनिल की मां बीना देवी ने कहा कि वो अपने बेटे को किडनी देगी। ऑपरेशन के बाद किडनी ट्रांसप्लांट कर दी गई।
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