
केदारनाथ में आई आपदा को पांच साल से ज्यादा का वक्त हो गया। धाम में पुनर्निर्माण कार्य 80 प्रतिशत पूरा हो चुका है, लेकिन जलप्रलय की कड़वी यादें आज भी उत्तराखंड के हर वासी के जहन में जिंदा हैं। आज भी कपाट खुलने के वक्त धाम में पहुंचे भक्त आपदा का जिक्र करते दिखाई दे रहे थे। आइए आपको बताते हैं उस समय का एक वाक्या…
साल 2013 में जून 16-17 को केदारनाथ में भयानक तबाही मची थी। इस दौरान केदारघाटी से लौटी देहरादून के डाक्टरों की टीम ने बताया था कि घाटी में महा विनाश देखकर पौराणिक कथाओं में वर्णित शिव तांडव याद आ गया। उस वक्त वहां लगातार भूस्खलन हो रहा था। आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्य के लिए यह टीम 2 जुलाई 2013 को गई थी और 10 जुलाई को वापस आई।
केदारनाथ में आये डाक्टरों की टीम को भयानक आवाजें सुनाई देती थीं। चट्टानों के गिरने से तेज धमाका होता था। 12 फीट मलबे में दबी लाशों पर चलकर उन्होंने राहत कार्य किया था। उनका कहना था कि मलबे में कितने लोग दबे हैं इसका अंदाजा ही नहीं है।
डाक्टरों की टीम ने बताया कि वहां मौजूद जानवरों का मिजाज उग्र हो गया था। आदमी को देखते ही खच्चर और गाय मारने को दौड़ पड़ते थे। केदारघाटी में शवों के दाह संस्कार के लिए गई टीम में विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ कुल 74 लोग शामिल थे।
टीम में डा. विमिलेश जोशी, पशु चिकित्सक डा. शैलेंद्र वशिष्ठ, डा. प्रदीप उनियाल भी थे। वह बड़ी मुश्किल से 16 शव निकाल पाए थे। उनका डीएनए सैंपल लिया गया। बताया कि घाटी में पुराने रास्ते खत्म हो गए थे। केदारघाटी में बचे खच्चर, गाय, भैंस और कुत्तों का मिजाज बदल गया था।
लोगों को देखकर कुत्ते काटने को दौड़ रहे थे। खच्चर और गाय भी लोगों को मारने के लिए दौड़ पड़ते थे। खच्चर, गाय, भैंसों ने उन लोगों के कपड़े तक चबा डाले थे। डाक्टरों का कहना था कि उन्होंने इतना भयानक दृश्य पहले कभी नहीं देखा।
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