गर्मी से लोगो का हाल-बेहाल, उफ गर्मी मार डालेगी

भारत के किसी भी शहर में चले जाएं, वहां लोग ये कहते हुए मिल जाएंगे, “ऐसा पहले नहीं होता था। जब हम बच्चे थे, इतनी गर्मी नहीं होती थी।” आपने लोगों को यह भी कहते हुए अक्सर सुना होगा, “मैं पहले भी इस शहर में आ चुका हूं, लेकिन उस वक्त इतनी गर्मी नहीं थी। इस साल काफी भीषण गर्मी है।”

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और इसकी वजह क्या है, इस पर सोचने की जरूरत है। पिछले हफ्ते भारत के कई शहरों, जैसे विदर्भ और तेलंगाना का अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया। भारतीय मौसम विभाग का कहना है कि 1901 के बाद साल 2018 में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ी थी।

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल औसत तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। स्काइमेट वेदर के मुताबिक महाराष्ट्र के ब्रह्मपुरी का तापमान 46.4 डिग्री, उत्तर प्रदेश के वाराणसी का 46, चंद्रपुर का 45.5, बांदा का 45.4 और वर्धा का तापमान 44.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया जा चुका है।

जलवायु वेबसाइट एल डोराडो के जारी आंकड़ों को मुताबिक पिछले शुक्रवार को मध्य भारत पृथ्वी के सबसे गर्म क्षेत्रों में से एक था। वेबसाइट के मुताबिक मध्य भारत के कुछ शहरों को दुनिया के 15 सबसे गर्म शहरों में शामिल किया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि इस बार की गर्मी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अधिक भीषण होगी।
सिर्फ ग्लोबल वार्मिंग है वजह?
भारतीय शहरों का स्वरूप पिछले कुछ दशकों में काफी बदला है। यहां की हरियाली में दिनों-दिन कमी आ रही है। धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं। इमारतों की संख्या बढ़ रही है। घरों में एसी का इस्तेमाल बढ़ रहा है। पक्की सड़कों का विस्तार तेजी से हो रहा है। और यही वजह है कि तापमान भी उसी रफ्तार में बढ़ रहा है।

ऐसे में शहर को अब ‘अर्बन हीट आइलैंड’ या फिर ‘हीट आइलैंड’ कहा जाने लगा है। अगर हवा की गति कम है तो शहरों को अर्बन हीट आइलैंड बनते आसानी से देखा जा सकता है। शहरों में जितनी ज्यादा जनसंख्या होगी, हीट आइलैंड बनने की गुंजाइश उतनी ही ज्यादा होगी। जब हम शहरों की सीमा पार करते हैं, हमें राहत महसूस होती है।

महाराष्ट्र की सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर डॉ. अमित धोर्डे कहते हैं कि शहरों में बढ़ते निर्माण कार्यों और उसके बदलते स्वरूप के चलते हवा की गति में कमी आई है।

डॉ. धोर्डो कहते हैं, “हरियाली वाले क्षेत्र कम हो रहे हैं। टार की सड़कों का विस्तार हो रहा है। यही वजह है कि तापमान तेजी से बढ़ रहा है। साल 2007 में हमलोगों ने एक अध्ययन किया था, जिसमें हमने पाया कि शहरों के अधिकतम तापमान में वृद्धि हुई है।”

“यूरोप में न्यूनतम तापमान बढ़ रहा है। अधिकतम तापमान में भी वृद्धि हो रही है।” इसी विश्वविद्यालय की मानसी देसाई भारतीय शहरों और उसके बढ़ते तापमान पर शोध कर रही हैं। वो कहती हैं, “तापमान वृद्धि में ग्लोबल वार्मिंग एक वजह जरूर है, लेकिन अगर हम शहरों का अध्ययन करें तो हमें पता चलता है कि जमीन का बदलता उपयोग भी इसकी बड़ी वजह है।”

“तारकोल की सड़क और कंक्रीट की इमारत ऊष्मा को अपने अंदर सोखती है और उसे दोपहर और रात में छोड़ती है। नए शहरों के तापमान तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले से बसे महानगरों की तुलना में ये ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं।”
हवा का रुख बदला है
भारतीय मौसम विभाग के निदेशक डॉ. रंजन केलकर कहते हैं शहरों में बढ़ते तापमान को लोग ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ कर देखते हैं। लेकिन इसके लिए सिर्फ वह ही जिम्मेदार नहीं है।

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “1893 में भी तापमान अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा था। हमें यह भी दावा करने वाली खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि तापमान ने पिछले 100 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। यदि 100 साल पहले भी ऐसा हुआ था तो जाहिर है कि तापमान 100 साल पहले भी इतना ही बढ़ा होगा। इसलिए ऐसी हर घटना को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ना सही नहीं है।”

वो कहते हैं कि तापमान को देखने से पहले हमें हवा के रुख को भी देखना चाहिए। अगर हवा राजस्थान की तरफ से आ रही है तो जाहिर सी बात है ये ज्यादा गर्म होगी। अगर तूफान की दिशा बदल जाती है तो शहरों का तापमान भी बदल जाता है। जैसे की इन दिनों फैनी चक्रवात की वजह से उत्तर और मध्य भारत के शहरों का तापमान बदला है। कई जगहों पर इसकी वजह से बारिश भी हुई हैं।

डॉ. केलकर एक उदाहरण से समझाते हैं कि मुंबई और पुणे के बीच कई शहर बस गए हैं, जहां लंबी-लंबी इमारते खड़ी कर दी गई हैं। पहले समुद्री हवाएं बिना रोक-टोक के मुंबई से पुणे पहुंच जाती थीं, लेकिन अब उनकी दिशा बदल गई है। वो कहते हैं, “50 साल पहले पुणे में हम लोगों को पंखे की जरूरत नहीं होती थी, लेकिन अब हवाओं का रुख बदला है, जिसकी वजह से शहर दिनों दिन गर्म होता जा रहा है।”

मौसम विभाग में पश्चिमी सर्कल के प्रमुख कृष्णानंद होसालीकर का कहना है कि गर्मी के मौसम में मध्य भारत में बसे शहरों का तापमान बढ़ना आम है। होसालीकर कहते हैं, “विदर्भ, मराठवाड़ा, और रायुपर में पिछले हफ़्ते जिस तरह तापमान बढ़ा उसे ‘कोर हीट जोन’ कहते हैं। हमने पहले ही अनुमान लगाया था कि इन इलाकों में इस साल तापमान औसत से ज्यादा रहेगा। तामपान बढ़ने का असर अप्रैल के तीसरे हफ्ते से ही दिखने लगा था। हालांकि अब ये थोड़ा सामान्य हो गया है।”
आदतों में बदलाव
हमने गर्मियों में मौसम बदलने की वजह से हादसों और लोगों की मौत के बारे में भी चर्चा की। गर्मी आते ही लू लगने से मौत की खबरें आनी शुरू हो जाती हैं। डॉक्टर केलकर का मानना है कि इसके दोषी हम सब हैं। वो कहते हैं, “हमें बदलते मौसम के अनुसार अपना खाना-पीना और कपड़े पहनने का तरीका बदलने की जरूरत होती है। ऐसे हादसे इसलिए भी होते हैं क्योंकि हम अपनी जिंदगी में जरूरी बदलाव नहीं करते।”

“राजस्थान में अमूमन तामपान 45 डिग्री सेल्सियस होता है लेकिन लेकिन वहां लोग सिर ढंके बिना बाहर नहीं निकलते। वहां पीने का पानी हर जगह मौजूद होता है। वो पानी पीने के बाद ही घर से बाहर निकलते थे। वो लोगों को जबरन पानी पिलाते हैं। उन्होंने गर्मियों के मुताबिक अपनी जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव भी किए हैं।”

“बाकियों को उनसे सीखना चाहिए। अगर उत्तर भारत में आप धूल भरी आंधी के वक्त घर से बाहर निकलते हैं तो निश्चित तौर पर खतरे में होंगे। इसलिए आपको सारी चीजें सोचने-समझने के बाद ही घर से बाहर निकलना चाहिए।”

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