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प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू के चुनाव लड़ने से चर्चित रहा फूलपुर संसदीय क्षेत्र मौजूदा समय में जातीय समीकरणों के चक्रव्यूह में उलझ गया है। यहां से बाहुबली अतीक अहमद भी सांसद रहे। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भाजपा का जनाधार बढ़ा कर यहीं से पहली बार सांसद बने। ऐसे चर्चित क्षेत्र में हर दिन सियासी समीकरण बन बिगड़ रहे हैं। सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी जहां दोनों दलों के परंपरागत वोट हासिल करने का दम भर रहे हैं।
वहीं भाजपा प्रत्याशी मोदी मैजिक और राजनीतिक अनुभव को आधार मानकर प्रचार कर रही हैं। मुद्दे हाशिए पर हैं, मौजूदा हालात भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी में सीधी टक्कर के बने हैं। चुनावी बिसात पर प्रत्याशियों के बीच चल रहे शह मात के खेल में यहां अगड़े-पिछड़े, एससी-एसटी मतदाताओं के वोट निर्णायक होंगे। पटेल बहुल इलाके में प्रत्याशियों का जोर इस बिरादरी के वोटों का ध्रुवीकरण कराने पर है। ब्राह्मण, कायस्थ और वैश्य के साथ अन्य वर्गों को साधने का काम यहां लुप्त दिख रहा है। साफ है कि गांव के साथ शहर में मतों का विभाजन कराने वाले प्रत्याशी के पक्ष में ही परिणाम आएगा।
सबके अपने-अपने दावे : प्रचार में आगे दिख रहीं भाजपा प्रत्याशी केशरी देवी पटेल अपनी बिरादरी के साथ गांव और शहर में पार्टी के परंपरागत वोटों व अन्य वर्गों में सेंधमारी कर रही हैं, लेकिन गठबंधन की ताकत उन्हें डरा रही है। गठबंधन के प्रत्याशी पंधारी यादव को सपा-बसपा के परंपरागत वोटों के साथ मुस्लिम मतों का आसरा है। जातीय गणित में कुछ आगे, पर पार्टी में नाराजगी से मतों में बिखराव का खतरा सभी की कमजोरी बना है। कांग्रेस प्रत्याशी पंकज चंदेल अपना दल के सोने लाल पटेल को याद कर पटेल मतों के ध्रुवीकरण और पार्टी के परंपरागत वोटों के सहारे हैं। शिवपाल यादव की प्रसपा की प्रिया पाल सभी वर्ग के मतों के साथ यादव और सपा के वोटों में बिखराव की आस लगाए हैं।
केशरी को मोदी मैजिक का सहारा
जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं केशरी को पंचायत सदस्यों और प्रधानों से नजदीकी का लाभ वोटों के ध्रुवीकरण में सीधे तौर पर मिल रहा है। पहले टिकट मिलने के कारण वह प्रचार में आगे हैं। भाजपा के लिए यह सीट साख की बात है। यहां के संवेदनशील जातीय गणित पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह नजर रख रहे हैं। केशव का जोर शहर उत्तरी तो सिद्धार्थनाथ का शहर पश्चिमी का वोट बैंक बचाए रखने पर है। इन दो विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के परंपरागत वोट खासे निर्णायक होंगे, बशर्ते वोटर घर से बाहर निकलें।
सोनेलाल के नाम पर पटेलों को रिझा रहे
पहली बार लोकसभा चुनाव में हाथ आजमा रहे कांग्रेस प्रत्याशी पंकज चंदेल का जोर पटेल बिरादरी के वोटरों पर है। कांग्रेस के परंपरागत वोट उन्हें हासिल हों, इसका प्रयास वह कर रहे हैं। इस बीच उनके बाहरी होने की चर्चा पटेल मतों के ध्रुवीकरण में बाधा बन रही है। पिछड़े वर्गों के मतों में भी सेंधमारी और पुराने कांग्रेसियों का साथ उन्हें मिलता है तो वह चुनाव में कुछ नया कर पाएंगे। अन्यथा जातिगत गणित की उलझन उन पर भारी पड़ेगी।
पंधारी के सामने बड़ी चुनौती
गठबंधन प्रत्याशी पंधारी यादव के सामने बड़ी चुनौती उपचुनाव में हासिल सीट बचाने की है। टिकट वितरण में बढ़ी नाराजगी से भितरघात का खतरा सामने दिख रहा है। उनका सहारा बने हैं सपा के परंपरागत वोट और बसपा का जुड़ाव, लेकिन दोनों में ही बिखराव मुश्किल पैदा कर रहा है। इसकी काट मुस्लिम मतदाता बन सकते हैं, बशर्ते पूरी बिरादरी के वोट उन्हें इकतरफा मिले। राजनीतिक कौशल से वह रुठों को मनाने और शहरी क्षेत्र में सियासी गणित दुरुस्त करने में जुटे हैं। इसके बावजूद शिवपाल यादव के खास लोगों की मजबूत पकड़ उनकी कमजोरी का कारण बन सकती है।
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