नई दिल्ली। प्यार, मोहब्बत और इश्क की कितनी ही असफल प्रेम कहानियां आपने-हमने पढ़ी होंगी, जिसमें प्रेमी-प्रेमिका अथवा नायक-नायिका कहानी के अंत में मर जाते हैं। मसलन रोमियो-जूलियट, हीर-राझा, लैला-मजनूं और भी न जानें कितनी असफल प्रेम कहानियां, जिनमें प्रेमी-प्रेमिका दोनों ही अंत में मारे जाते हैं। … लेकिन 1915 में महान लेखक चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की कहानी ‘उसने कहा था’ एक अदि्वतीय रचना है, जिसमें नायक (प्रेमी) तो मर जाता है लेकिन नायिका (प्रेमिका) जीवित रह जाती है।
निश्छल प्रेम और त्याग की मिसाल पेश करती कहानी ‘उसने कहा था’ का अंत इतना शानदार है कि अंत में पाठक की आंखें नम हो जाती हैं। यह कहानी जिसने भी पढ़ी होगी वह कभी भी इसके नायक लहना सिंह और सूबेदारनी को नहीं भूल पाएगा। इस कहानी की रोचक बात तो यह है कि इसमें नायक का नाम तो है, लेकिन नायिका को कोई नाम लेखक ने नहीं दिया है। … सच बात तो यह है कि लेखक का नायिका का नाम न देना इसकी खूबसूरती भी है।
‘उसने कहा था’ को भारतीय साहित्य के इतिहास अद्भुत, अकल्पनीय और अप्रतिम कहानी माना गया है, तभी तो 100 साल से अधिक का समय बीतने पर भी यह कहानी भारतीय पाठकों, खासकर हिंदी पाठकों के मानस पटल पर छाई हुई है। दरअसल, शीर्षक ही अपने आपमें रहस्य और रोमांच लिए हुए है। पाठक यह जानने के लिए कहानी शुरू करता है कि उसने क्या कहा था और अंत में जब इसका रहस्य खुलता है तो पाठक का हृदय द्रवित और आंखें नम हो जाती हैं।
एक खूबसूरत मुलाकात से शुरू होती है कहानी
कहानी की शुरुआत दो मासूम और साफ दिल रखने वाले 12 साल के लहना सिंह और 8 साल की उस लड़की के साथ शुरू होती है, जो इस कहानी की रहस्यमय नायिका है। नायिका के नाम का खुलासा कहानी के मध्य में होता है या कहें नहीं होता है। नाम है-सूबेदारनी। नायक उसे इसी नाम से जानता है, क्योंकि वह सूबेदार की पत्नी है। 23 बरस पहले 12 साल का लहना सिंह और लड़की अमृतसर के बाजारों में किसी जगह मिले थे। एक हादसे में लहना सिंह ने खुद तांगे के पहिए के नीचे आकर भी लड़की की जान बचाई थी।
इसके बाद लहना ने पूछा था ‘तेरी कुड़माई हो गई’? और जवाब मिला था ‘धत्त’। यह सवाल मासूम सवाल कहानी के नायक द्वारा कई बार पूछा कहानी ‘उसने कहा था’ में प्रेमी का अकल्पनीय समर्पण है। 12 साल की उम्र में कहानी का नायक लहना सिंह अपनी जान पर खेलकर प्रेमिका की जान बचाता है। …और फिर 37 साल बाद अपनी जान देकर प्रेमिका के बेटे व पति की जान की खातिर खुद को मौत के हवाले कर देता है, क्योंकि उसने (प्रेमिका) कहा था कि मेरे पति और बेटे की हिफाजत करना।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद लिखी गई है कहानी
त्याग और समर्पण से सराबोर प्यार के इस खूबसूरत अहसास को समझना बहुत मुश्किल है। यही वजह है कि इस रुहानी इश्क के लिए मशहूर शायर अमीर खुसरो ने लिखा है- ‘खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार। जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।’ युद्ध की विभीषिका और परिणाम को लेकर विश्व साहित्य में तमाम मर्मस्पर्शी उपन्यास और कहानियां लिखी गई हैं। ये सभी रचनाएं एक ही नतीजे पर पहुंचती हैं कि युद्ध हमेशा प्रेमियों को मारता और मनुष्यता की हत्या करता है। खैर, यह कहानी इसीलिए अमर हो गई, क्योंकि 37 साल की उम्र में अपने परिवार की परवाह न करते हुए प्रेमिका सूबेदारनी को दिए वचन की रक्षा के लिए उसके घायल बेटे को उसके पति के साथ घर भेजकर खुद हंसते-मुस्कुराते मौत को दूसरी महबूबा की तरह गले लगा लेता है।
सामने थी मौत और लहना सिंह को याद था वचन
‘उसने कहा था’ कहानी की समीक्षा करने वाला मानना है कि लहना की भी एक पत्नी है पर उसका कोई जिक्र यह कहानी नहीं करती। ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु से ठीक पहले हर शख्स को अपना अच्छा-बुरा अतीत तेजी से याद आता है। उसके जेहन में वह सबकुछ तेजी से बीतता है, जो वह जीता है। लहना सिंह के साथ भी यही होता है, लेकिन लहना के जान गंवाते समय उसकी स्मृतियों में अमृतसर की गलियों वाली उसकी प्रेमिका (बाद में सूबेदारनी) याद आती है।…और याद आता है कि सूबेदारनी ने लहना सिंह से कहा था ‘मेरे पति और बेटे की रक्षा करना’ और जो उसने अपनी जान की बाजी लगाकर की भी।
कहानी में किरदार बहुत पर अमर लहना सिंह हुआ
कहानियां जीवन के अनुभव से निकलती हैं और लगता है ‘उसने कहा था’ के साथ भी ऐसा हुआ हो, क्योंकि लहना सिंह के साथ घटित कई बातें सच के करीब लगती हैं। खासकर अमृतसर की वह घटना जिसमें नायिका को लहना सिंह बचाता है और पूछता है ‘तेरी कुड़माई हो गई’ और जवाब मिलता है ‘धत्त’। फिर इन दोनों की आखिरी मुलाकात जिसमें लहना सिंह यह सवाल पूछता है ‘तेड़ी कुड़माई हो गई’ और जवाब मिलता है ’हां’, इसके बाद के दृश्य का वर्णन जिस तरह से लेखक ने किया है वह लाजवाब है। यहां पर बता दें कि कहानी भारत से शुरू होकर विदेश तक जाती है। ऐसे में इसमें बहुत से किरदार हैं। मसलन, लहना सिंह, सूबेदारनी, वजीर सिंह, बोधा के अलावा युद्ध के दौरान के कई पात्र, लेकिन नायक लहना और सूबेदारनी ही प्रमुख हैं।
तीन कहानियां लिखकर अमर हो गए चंद्रधर शर्मा गुलेरी
चंद्रधर शर्मा गुलेरी (1883-1922) संपादक के साथ-साथ निबंधकार और कहानीकार भी थे। उन्होंने कुल तीन कहानियां लिखी हैं – बुद्धू का कांटा, सुखमय जीवन और उसने कहा था। लेकिन हिंदी साहित्य में अमर कहानी बन गई ‘उसने कहा था और चंद्रशर्मा गुलेरी को एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है और लंबे समय तक माना भी जाता रहेगा।
पढ़िये- कहानी का वह अंश जो आपकी आंखों में ला देगा आंसू
भावों की टकराहट से मूर्छा खुली। करवट बदली। पसली का घाव बह निकला।
”वजीरा, पानी पिला” ‘उसने कहा था।’
स्वप्न चल रहा है। सूबेदारनी कह रही है, “मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। एक काम कहती हूं। मेरे तो भाग फूट गए। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में जमीन दी है, आज नमक-हलाली का मौका आया है। पर सरकार ने हम तीमियों की एक घंघरिया पल्टन क्यों न बना दी, जो मैं भी सूबेदार जी के साथ चली जाती? एक बेटा है। फौज में भर्ती हुए उसे एक ही बरस हुआ। उसके पीछे चार और हुए, पर एक भी नहीं जिया।’ सूबेदारनी रोने लगी, ”अब दोनों जाते हैं, मेरे भाग! तुम्हें याद है, एक दिन टाँगेवाले का घोड़ा दहीवाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे, आप घोड़े की लातों में चले गए थे, और मुझे उठा-कर दूकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे आंचल पसारती हूं।”
रोती-रोती सूबेदारनी ओबरी में चली गई। लहना भी आंसू पोंछता हुआ बाहर आया। ”वजीरासिंह, पानी पिला” … ‘उसने कहा था।’
लहना का सिर अपनी गोद में रक्खे वजीरासिंह बैठा है। जब मांगता है, तब पानी पिला देता है। आध घण्टे तक लहना चुप रहा, फिर बोला, “कौन! कीरतसिंह?”
वजीरा ने कुछ समझकर कहा, “हां”
“भइया, मुझे और ऊंचा कर ले। अपने पट्ट पर मेरा सिर रख ले”। वजीरा ने वैसे ही किया।
“हां, अब ठीक है। पानी पिला दे। बस, अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा। चाचा-भतीजा दोनों यहीं बैठ कर आम खाना। जितना बड़ा तेरा भतीजा है, उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था, उसी महीने में मैंने इसे लगाया था।”
वजीरा सिंह के आंसू टप-टप टपक रहे थे।
कुछ दिन पीछे लोगों ने अख़बारों में पढ़ा… फ्रान्स और बेलजियम… 68 वीं सूची… मैदान में घावों से मरा… नं 77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह।
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