नई दिल्ली। टीम इंडिया सेमीफाइनल में न्यूज़ीलैंड से हारकर क्रिकेट वर्ल्ड कप 2019 से बाहर हो गई है. इस हार के बाद भारतीय टीम का तीसरा वर्ल्ड कप जीतने का सपना फिर एक सपना बनकर ही रह गया. एक ऐसा सपना, जिसे देखने में शायद पूरी टीम इतनी गहरी नींद में सो गई थी कि वो तब उठी जब वो सपना टूट गया।
अगर ऐसा न होता, तो वो न्यूज़ीलैंड (जिसकी आबादी 50 लाख है और जिसका राष्ट्रीय खेल रग्बी है, न कि क्रिकेट) उस टीम इंडिया को (जहां 130 करोड़ लोग क्रिकेट को पूजते हैं और जहां के खिलाड़ी विश्व क्रिकेट के दिग्गज माने जाते हैं) नहीं हरा पाती. टीम इंडिया के पास सब कुछ था. दुनिया का सबसे अच्छा बल्लेबाज़, दुनिया का सबसे अच्छा गेंदबाज़ और इस टूर्नामेंट का सबसे बेहतरीन खिलाड़ी.
न्यूज़ीलैंड के पास था, तो सिर्फ उनका कप्तान केन विलियमसन, जिसने अपनी टीम के लिए एक तिहाई रन बनाए थे. फिर ऐसा क्या हुआ, जिसने भारतीय टीम को जगा तो दिया, लेकिन शायद, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
खेल में खराबी नहीं, बस सोच में जल्दबाजी
जब भारत के गेंदबाज़ों ने कीवियों को 239 रनों पर रोक दिया था, तब भारत के बल्लेबाज़ों की ये ज़िम्मेदारी थी कि वो टीम को लक्ष्य तक पहुंचाएं. वो देश जिसे लक्ष्य का पीछा करने में सबसे बेहतरीन माना जाता है, अगर लगातार दो वर्ल्ड कप से लक्ष्य का पीछा करते हुए बाहर हो जाए, तो टीम को ये सोचने की जरूरत है कि क्या वाकई में वो इस टैग की हकदार है?
जब रोहित और विराट पारी की शुरुआत में ही पवेलियन लौट गए, तो मिडिल ऑर्डर के बल्लेबाज़ों को ये सोचना चाहिए था कि क्रिकेट एक टीम गेम है और हर मैच आप अपने 4 खिलाड़ियों के दम पर नहीं जीत सकते. लेकिन ऐसा कहां हो सकता था, सपना तब तक जारी जो था. इस चैलेंज के लिए ऋषभ पंत कुछ ज़्यादा ही युवा साबित हुए और हार्दिक पंड्या शायद अच्छा खेलते हुए सपने में इतने खो गए कि वे भूल गए कि ये आईपीएल नहीं वर्ल्ड कप चल रहा है. दिनेश कार्तिक ने उम्मीदों पर खरे उतरे न पिच पर. उन्हें अपना खाता खोलने में 21 गेंदे लग गईं. कार्तिक ने टीम की हार में 6 रनो का योगदान दिया वो भी ‘महज़’ 25 गेंदों में.
आखिरी फासला पार नहीं कर सकी टीम इंडिया
फिर आए भारत के संकटमोचक एम एस धोनी. जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को पिछले एक दशक में देखा है, वो सब ये जानते हैं कि धोनी के लिए इसमें कुछ भी नया नहीं था. एक समय पर टीम इंडिया का सपना पूरा करने वाले एम.एस. एक बार फिर अपने कंधों पर 130 करोड़ भारतीयों का सपना लिए दुनिया को दिखाने निकल पड़े कि क्यों टीम इंडिया को ‘सबसे अच्छा फिनिशर’ कहा जाता है. साथ में थे रवींद्र जडेजा, क्रीज़ पर भले ही माही थे, पर इस बार जडेजा मार रहे थे. जब जडेजा और धोनी खेल रहे थे, टीम और फैंस को फिर एक बार वो सपना याद आया, लेकिन इस बार देर शायद कुछ ज़्यादा हो चुकी थी. सपना देखते-देखते कप्तान और कोच ने ये एहसास ही नहीं किया कि अगर धोनी चले जाएंगे तो टीम की नैया पार कौन लगाएगा? ये तो सबको पता था कि धोनी एक बार फिर अपना बल्ला हवा में लहराएंगे लेकिन शायद जिस धोनी को नंबर 4 पर भेजकर पारी में स्थिरता लाई जा सकती थे, उसे 7 नंबर पर भेजकर टीम ने समझदारी भरा फैसला किया या नही, इसका पता तो नतीजे से चल ही जाता है.
इंडिया पर हमेशा भारी रहा है न्यूजीलैंड
अपने 8 में से 7 ग्रुप मैच जीतकर भारतीय टीम शायद इतना खो गई थी कि वो ये भूल गई कि उसका मुकाबला उस न्यूज़ीलैंड से हो रहा था जिसने टीम इंडिया को आईसीसी टूनामेंट में हमेशा परेशान किया था. जहां तक बात न्यूज़ीलैंड की है तो आंखें बंद कर सपना तो वह भी देख रही थी, जब वह अपने 6 में से 5 ग्रुप मैच जीतकर टूर्नामेंट में अजेय चल रही थी. इसी का नतीजा था कि उसने अपने आखिरी तीनों ग्रुप मुकाबले गंवा दिए. लेकिन, शायद न्यूज़ीलैंड के लिए ये अच्छा ही था, तब ही तो वह सेमीफाइनल में जाग गई और उसने भारत को ये बता दिया कि आंखें खोलकर सपने देखना आंखें बंद कर के सपने देखने से कितना बेहतर है. उम्मीद है कि भारत ने इस बात की अहमियत को ज़रूर समझा होगा और अगले टूर्नामेंट में टीम फैंस को जो सपना दिखाए, तो भले वो फैंस के लिए एक सुनहरा सपना हो पर टीम के लिए वो सुनहरी हकीकत होनी चाहिए.
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