मशहूर संगीतकार खय्याम नहीं रहे, आज भी उनके संगीत की धुनें कानों में गूंजती है !

नई दिल्ली। भारतीय सिनेमा के बेशकीमती रत्न, मशहूर संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी ने 92 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 19 अगस्त 2019 को उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में आखिरी सांसें लीं. आज जब वो नहीं हैं तो उनके संगीत की धुनें कानों में गूंजती हैं.

 

‘कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है’, ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ जैसी दिल को छू लेने वाली धुन तैयार करने वाले खय्याम के म्यूजिक करियर की शुरुआत 17 साल की उम्र में हो गई थी. साल 1953 में उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री ली. पहली फिल्म थी ‘फुटपाथ’. फिल्मों में काम मिलना शुरू हुआ तो करियर की गाड़ी चल निकली और आखिरी खत, कभी कभी, त्रिशूल, नूरी, बाजार, उमराव जान और यात्रा जैसी फिल्मों के शानदार म्यूजिक ने खय्याम को दर्शकों के दिल में बैठा दिया.

ख़य्याम

अपने म्यूजिक से फैन्स के दिलों में राज करने वाले खय्याम शुरुआत में एक्टर बनना चाहते थे. वह फिल्मों में रोल पाने के लिए लाहौर जाया करते थे. वहां उन्होंने मशहूर पंजाबी म्यूजिक डायरेक्टर बाबा चिश्ती से म्यूजिक सीखा. एक दिन खय्याम चिश्ती से मिले और उनकी एक कंपोजिशन सुनकर बेहद इंप्रेस हुए. चिश्ती ने उन्हें बतौर असिस्टेंट साथ काम करने का ऑफर दिया. खय्याम ने 6 महीने तक चिश्ती के साथ काम किया और 1943 में लुधियाना लौट आए. इसके बाद वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई चले गए. यहां उन्होंने शर्माजी-वर्माजी म्यूजिक कंपोजर की जोड़ी के शर्माजी के तौर पर डेब्यू किया. फिल्म थी ‘हीर रांझा’. बंटवारे के बाद जब रहमान वर्मा पाकिस्तान चले गए तो खय्याम यानी कि शर्माजी ने अकेले काम करना शुरू किया.

अकेले काम करने के इस नए सफर में उन्हें ‘फिर सुबह होगी’ फिल्म ने पहचान दिलवाई. शोला शबनम, आखिरी खत, शगुन, फुटपाथ, कभी कभी, बाजार, दर्द, बेपनाह, खानदान उनके म्यूजिक से सजी बेहतरीन फिल्मों में से एक है.

 

 

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*